कम से कम जहां तक भारत का संबंध है, साल 2016 को चिह्नित करने वाला पद या शब्द रहा ‘सर्जिकल स्ट्राइक’। यह शब्द- जो तथ्य से ज्यादा भावना से ताल्लुक रखता है- अधिकतर भारतीयों के लिए अनजाना ही था। बातचीत और भाषणों में मैंने पहले यह शब्द नहीं सुना था। mसर्जिकल स्ट्राइक सहज और समझने में आसान है, और सबसे बढ़ कर यह कि यह बताता है कि वांछित परिणाम पाने के लिए शरीर और दिमाग एक हो गए हैं। यह कई और गुणों की तरफ भी इशारा करता है, जैसे टीम-वर्क, काफी सावधानी से की गई तैयारी, बारीकी से क्रियान्वयन, वांछित परिणाम, और कामयाबी। हालांकि मुझे बुरा लगा, जब 29 सितंबर 2016 की सीमा पार की कार्रवाई के लिए इस शब्द का पहली बार अधिकृत रूप से इस्तेमाल किया गया, लेकिन फिर झुंझलाते हुए मैंने मान लिया कि इस शब्द के इस्तेमाल के पीछे सियासी चतुराई काम कर रही होगी।

दुर्भाग्य से, एक सीमा पार की कार्रवाई और कुछ भी हो, सर्जिकल स्ट्राइक नहीं है। इसका मकसद एक दूसरे पर नजरें गड़ाए दो सीमारक्षक बलों के बीच संतुलन बहाल करना होता है, इसके सिवा और कुछ नहीं। इसमें शत्रु-पक्ष को जान-माल का थोड़ा नुकसान जरूर होता है, पर सैन्य-शक्ति को कोई खास क्षति नहीं होती। इससे यथास्थिति में कोई बदलाव नहीं आता। भारतीय सेना यह जानती है, फिर भी कुछ वजहों से उसने सुर में सुर मिलाया, जब सरकार- और खासकर रक्षामंत्री- ने सर्जिकल स्ट्राइक का ढिंढोरा पीटना शुरू किया, जो पाकिस्तान को सबक सिखाएगा और सीमा पार से होने वाली सारी घुसपैठ का खात्मा कर देगा।
क्या कोई फर्क पड़ा है?
2016 की शुरुआत पठानकोट में वायुसैनिक ठिकाने पर आतंकी हमले से हुई। तब से और कई हमले हुए हैं। 2 जनवरी : वायुसेना का ठिकाना, पठानकोट। 18 सितंबर : ब्रिगेड हेडक्वार्टर, उड़ी।
29 सितंबर : ‘सर्जिकल स्ट्राइक’। 2 अक्तूबर : बटालियन हेडक्वार्टर, राष्ट्रीय राइफल्स, बारामूला। 29 नवंबर : कार्प्स हेडक्वार्टर, उत्तरी कमान, नगरोटा।
इन सब में एक पैटर्न दिखता है। सैनिक प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया जाता है। मुट्ठी भर फिदायीन हमले को अंजाम देते हैं। रात में घुसपैठ होती है और तड़के हमला। वे सुरक्षा घेरे के भीतर घुसने में सफल हो जाते हैं। फिदायीन मरने के लिए तैयार रहते हैं।
जम्मू-कश्मीर में जमीनी हकीकत पिछले साल से भी ज्यादा खराब है। पांच दिसंबर, 2016 तक मौतों की तुलनात्मक तस्वीर इस प्रकार थी:
2015 2016
उग्रवादी 107 146
सुरक्षा बल 39 81
नागरिक 22 17
नगदी पर सर्जिकल स्ट्राइक
जबकि सीमा पार के सर्जिकल स्ट्राइक का मुलम्मा उतरने लगा था, एक और सर्जिकल स्ट्राइक 8 नवंबर 2016 को हुआ। इस बार बारी थी पांच सौ और हजार के नोटों की। जैसी कि घोषणा की गई, मकसद था जाली मुद्रा, आतंकवादी फंडिंग, काले धन व भ्रष्टाचार को खत्म करना। लोगों को होने वाली ‘असुविधा’ कुछ ही दिनों तक रहनी थी। अपेक्षित ‘लाभ’ बहुत बड़ा था: काले धन पर विराम लगने के साथ ही सरकार को उम्मीद थी कि 3,00,000 करोड़ रुपए उसे रिजर्व बैंक से विशेष लाभांश के रूप में प्राप्त होंगे।
जैसा कि जाहिर है, एक महीना भी नहीं बीता कि नगदी पर हुए सर्जिकल स्ट्राइक का मुलम्मा उतरने लगा। बैंकों और एटीएम के बाहर अब भी लंबी-लंबी कतारें लग रही हैं। बैंकों के खुलते ही कुछ घंटों के भीतर उनकी नगदी खत्म हो जाती है, और ज्यादातर एटीएम सूखे हैं, काम नहीं कर रहे। सभी बड़े बाजार बंद हैं या बुरी तरह लड़खड़ाए हुए हैं। खुदरा व्यापार अस्सी फीसद तक गिर गया है। किसानों के पास खाद या बीज खरीदने और मजदूरों को देने के लिए नगद पैसा नहीं है। करोड़ों लोग महीने भर की अपनी दिहाड़ी या आमदनी से हाथ धो बैठे हैं।
सबसे कड़वा तथ्य- सरकार के लिए- राजस्व सचिव (और नीति आयोग के उपाध्यक्ष) की यह स्वीकारोक्ति है कि विमुद्रीकृत की गई लगभग सारी राशि के बैंकिंग सिस्टम में लौट आने के आसार हैं! उन्होंने अपने कहे से इनकार किया और सफाई दी, लेकिन संवाददाता अपनी खबर पर अड़ा रहा और उसने उनके शब्दों को ज्यों का त्यों उद्धृत कर दिया। अगर सारे विमुद्रीकृत किए गए नोट- जिनका कुल मूल्य लगभग 15,44,000 करोड़ रुपए था- बैंकों और डाकघरों में जमा हो जाते हैं, तो सवाल है कि सरकार ने ऐसा बिना सोचा-समझा जोखिम क्यों उठाया, जिसके असर से अर्थव्यवस्था भी कराह रही है और करोड़ों लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी भी त्रासद हो गई है?
कोई मकसद नहीं सधा
*क्या इस सर्जिकल स्ट्राइक ने काले धन का खात्मा किया है? कम से कम दो बड़ी, शाहखर्ची वाली शादियां हुई हैं, और तब जबकि उनके बजट में कतर-ब्योंत से काम चलाया गया! कई व्यक्तियों के पास से दो हजार रुपए के नए नोटों की भारी मात्रा बरामद हुई है (106 करोड़ रुपए तमिलनाडु में!)।*क्या इस सर्जिकल स्ट्राइक से भ्रष्टाचार खत्म हुआ है? नोटबंदी के कुछ ही दिनों के भीतर दो हजार रुपए के नए नोटों में घूस लेते और देते गिरफ्तारियां हुई हैं- महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्र प्रदेश, ओड़िशा, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक में!
*क्या इस सर्जिकल स्ट्राइक से जाली मुद्रा खत्म हुई है? तनिक इंतजार करें और आप देखेंगे कि दो हजार के जाली नोट कैसे प्रकट होते हैं। *क्या इस सर्जिकल स्ट्राइक ने सरकार को काफी लाभ की स्थिति में ला दिया है? रिजर्व बैंक ने उस सपने को पलीता लगा दिया है। सात नवंबर को रिजर्व बैंक के गवर्नर ने कहा कि ‘विमुद्रीकरण से रिजर्व बैंक की देनदारी में कोई कमी नहीं आई है, इसलिए फिलहाल उसकी बैलेंस शीट पर कोई असर नहीं पड़ा है।’ यह पूछे जाने पर कि क्या रिजर्व बैंक अपने लाभ को सरकार को हस्तांतरित करेगा, गवर्नर मिस्टर पटेल ने कहा, ‘अभी इसका सवाल ही नहीं उठता।’ यह कहने के बाद उन्होंने रही-सही कसर भी पूरी कर दी, 2016-17 में जीडीपी का अनुमान 7.6 फीसद से घटा कर 7.1 फीसद कर दिया!किसने सोचा था कि 2016 का अंत ऐसा होगा: सरहद पर विकट हालात और मौतों में होती बढ़ोतरी, गरीबों का कंगालीकरण तथा अर्थव्यवस्था को भारी चोट। सरकार का दावा है कि आने वाले दिन अच्छे होंगे। बहुत-से लोग कहेंगे कि इससे तो पुराने दिन ही अच्छे थे।