अधिकतर शब्दकोशों के अनुसार, ‘शुल्क’ शब्द संज्ञा है और इसका अर्थ होता है — किसी देश में आयात पर लगने वाला कर। कभी-कभी, निर्यात पर भी कर लगता है। बहुत कम मामलों में ‘शुल्क’ शब्द का प्रयोग क्रिया के रूप में किया जाता है। मगर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की कृपा से अब ऐसा प्रयोग आम हो गया है। उन्होंने दुनिया के ज़्यादातर देशों पर शुल्क लगा दिया है, जिसमें हर्ड और मैकडोनाल्ड नामक दो द्वीप भी शामिल हैं – जहां जीवित प्राणी के रूप में केवल पेंगुइन पाए जाते हैं, और पेंगुइन संयुक्त राज्य अमेरिका को कुछ भी निर्यात नहीं करते हैं।
सात राज्यों का जुनून
ट्रंप का मानना है कि अमेरिका में आयातित वस्तुओं पर कठोर शुल्क लगाकर ‘अमेरिका को फिर से महान बनाया जा सकेगा’ (मागा)। दो अप्रैल, 2025 को उन्होंने शुल्क की एक तालिका जारी की। जैसे-जैसे तालिका सामने आती गई, यह स्पष्ट होता गया कि शुल्क की ‘गणना’ एक सरल सूत्र पर आधारित थी, जिसे सरल लोगों को समझने के लिए अपनाया गया था। किसी लक्षित देश के लिए शुल्क, लक्षित देश के साथ व्यापार घाटे का आधा था, जिसे लक्षित देश द्वारा अमेरिका को निर्यात किए गए माल के मूल्य से विभाजित किया गया था।
वर्ष 2024 में दो तटों के बीच फैले अमेरिका के विशाल क्षेत्र में रिपब्लिकन की उपस्थिति लाल रंग में थी, जिसमें चार राज्य शामिल नहीं थे। 2024 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को एक सवाल तक सीमित कर दिया गया था: सात ‘स्विंग राज्यों’ या उनमें से अधिकांश में कौन जीतेगा? ट्रंप ने एरिज़ोना, जॉर्जिया, मिशिगन, नेवादा, उत्तरी कैरोलिना, पेंसिल्वेनिया और विस्कॉन्सिन के सभी सात राज्यों में जीत हासिल की और उनके 93 चुनावी वोट हासिल किए। उनका निर्वाचन क्षेत्र सात स्विंग राज्य हैं। उनमें समान विशेषताएँ हैं: उद्योगीकरण में कमी, उच्च बेरोज़गारी, मुद्रास्फीति, आव्रजन और श्वेत पुरुष औद्योगिक श्रमिकों की प्राथमिकताएँ जैसे मुद्दों पर राजनीतिक चर्चा। चूँकि ट्रंप ने सभी सात राज्यों में जीत हासिल की है, इसलिए उनका मानना है कि इन राज्यों से संबंधित मुद्दे संयुक्त राज्य अमेरिका से संबंधित मुद्दे हैं और उन्हें उन मुद्दों को संबोधित करना चाहिए।
अर्थव्यवस्था पर असर
द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद से अस्सी वर्षों में, दुनिया को श्रम, वस्तुओं और सेवाओं की मुक्त आवाजाही से बहुत लाभ हुआ है, और सबसे बड़ा लाभार्थी देश संयुक्त राज्य अमेरिका है। यह दुनिया का सबसे धनी, सबसे शक्तिशाली, सबसे अभिनव देश है। इसमें दुनिया की सबसे अच्छी कंपनियाँ, सबसे अच्छे विश्वविद्यालय, सबसे अच्छी प्रयोगशालाएँ और सबसे अच्छे एथलीट हैं। अमेरिकी डॉलर सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किया जाता है और यह दुनिया की आरक्षित मुद्रा है। अमेरिकी ग्रीन कार्ड और अमेरिकी पासपोर्ट सबसे प्रतिष्ठित दस्तावेज हैं। चीन और भारत सहित अधिकांश देश अपने विदेशी मुद्रा होल्डिंग का महत्त्वपूर्ण हिस्सा अमेरिकी बांड में निवेश करते हैं, जिससे अमेरिका दुनिया का एकमात्र ऐसा देश बन जाता है, जिसे राजकोषीय घाटे की चिंता नहीं होती। दुर्भाग्य से, केवल सात राज्यों के मतदाता ऐसे लोग हैं, जो यह मानते हैं कि इन सभी ‘अतिशयोक्तिपूर्ण’ बातों से उनके जीवन को कोई लाभ नहीं हुआ है। ट्रंप साहब तथ्यों से ज़्यादा उनके प्रति वफादार हैं।
जोरदार विरोध
ट्रंप के काम में बाधा डालने संबंधी निर्णय के दूरगामी परिणाम होंगे। अमेरिका में प्रतिभाओं का प्रवेश अगर रोका नहीं गया, तो धीमा हो जाएगा। वस्तुओं के व्यापार पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा और आपूर्ति शृंखलाएँ बाधित होंगी। सेवाओं के व्यापार में, कम से कम अस्थायी रूप से, बाधाएँ आएँगी। पूँजी प्रवाह को शुल्क और जवाबी शुल्क की नई व्यवस्था के अनुकूल होने में समय लगेगा। कुछ सेवाएँ पूँजी का अनुसरण करेंगी और बाधित होंगी।
ट्रंप के एकतरफावाद के सामने कई विकसित देशों ने सराहनीय संयम के साथ व्यवहार किया है। यह स्पष्ट है कि ट्रंप साहब भ्रमित और झाँसा दे रहे हैं। वे और अमेरिकी लोग अमेरिका में आयातित और लोगों द्वारा उपभोग की जाने वाली वस्तुओं पर उच्च शुल्क बर्दाश्त नहीं कर सकते। आपूर्ति में अड़चन आएगी, मुद्रास्फीति और नौकरियाँ खत्म हो जाएँगी। अमेरिकी नाराज़ होंगे, यहाँ तक कि ‘मागा’ के समर्थक अमेरिकी भी मुद्रास्फीति की ताप महसूस करेंगे। हजारों लोग पहले ही अमेरिका के बड़े शहरों की सड़कों पर आ चुके हैं। अगर मुद्रास्फीति और बेरोज़गारी बढ़ती है, तो हजारों और लोग सड़कों पर आ जाएँगे। ट्रंप तब पीछे हटेंगे जब उनकी धोखाधड़ी उजागर होगी, जैसा कि उन्होंने नौ अप्रैल को किया था, जब उन्होंने चीन को छोड़कर सभी देशों के लिए ‘पॉज़ बटन’ दबा दिया था। कहानी में और भी मोड़ आएँगे। ट्रंप दो चीज़ों पर नज़र रखेंगे: मागा-अमेरिकियों की प्रतिक्रिया और अमेरिकी बांड पर ‘यील्ड कर्व’। जब दोनों ही उनके खिलाफ हो जाएँगे, तो वे बेशर्मी से अपनी नीतियों को बदल देंगे।
अर्थव्यवस्था मज़बूत होगी
इसका सामना करने वाले देशों में कनाडा और यूरोप मज़बूत, दृढ़ और ज़िम्मेदार बने हुए हैं। चीन जवाबी शुल्क लगाने पर अड़ा हुआ है। अगर अमेरिका उसे शुल्क युद्ध के लिए बाध्य करता है, तो चीन पीछे नहीं हटेगा। भारत ने शुल्क युद्ध पर कोई टिप्पणी नहीं की है और उसने अमेरिका के साथ व्यापार समझौते को आगे बढ़ाने का विकल्प चुना है, लेकिन भारत भीरुता का आभास नहीं दे सकता। न ही भारत यह दिखावा कर सकता है कि उसे इस बात की चिंता नहीं है कि दुनिया की अर्थव्यवस्था का क्या होगा। भारत को एक रुख अपनाना चाहिए। उर्सुला वॉन डेर लेयेन, मार्क कार्नी, कीर स्टारमर और कुछ अन्य नेता ऐसे उदाहरण हैं, जिनका भारत को अनुसरण करना चाहिए।
ट्रंप के शुल्क पर रोक लगाने से दुनिया को यह भरोसे की कुछ उम्मीद बनी है कि उन्हें आर्थिक समझदारी आएगी। हालाँकि, अगर ट्रंप ‘रोक’ हटाते हैं और दो अप्रैल को घोषित शुल्कों को फिर से लागू करते हैं, तो वे दुनिया की अर्थव्यवस्था को तहस-नहस कर देंगे। अधिकतर अर्थशास्त्री वैश्विक मंदी की भविष्यवाणी करते हैं। भारत के लिए जो सबसे बुरा हो सकता है, वह है मंदी, मुद्रास्फीति, कम निर्यात, कम एफपीआई और एफडीआई का कड़वा मिश्रण। भारत को अपने सहयोगियों को चुनना होगा, उनके साथ व्यापार का विस्तार करना होगा और ट्रंप को पीछे धकेलना होगा। आखिर, अर्थशास्त्र के नियम ट्रंप साहब को परास्त कर देंगे। जीत के उस क्षण में भारत हारने वाले के साथ खड़ा नहीं दिख सकता।