रे देशवासी भाइयो और बहनो,
मैं आप सबको इस दिन की बधाई देता हूं, 26 मई 2016 की, जिस दिन मेरी सरकार ने दो साल पूरे किए हैं। आमतौर पर ऐसे मौके पर आत्मप्रशंसा से सराबोर भाषण देने और पुराने वादे दोहराने तथा नए वादे करने का चलन रहा है। मैंने इस परिपाटी को तोड़ने और देश की मौजूदा हालत का ईमानदार तथा निष्पक्ष आकलन पेश करने का निश्चय किया है।
आप सबकी फिक्र सबसे ज्यादा अर्थव्यवस्था को लेकर है। आज, एक बिजनेस समाचारपत्र के संपादकीय में शुरू के शब्द हैं, ‘‘जबकि नरेंद्र मोदी सरकार दो साल पूरा कर रही है, अर्थव्यवस्था के पटरी पर आने की प्रक्रिया, जो कि 2013 की आखिरी तिमाही में शुरू हुई थी, अब और तेज हो रही है…’’
स्थिर अर्थव्यवस्था की विरासत
यह सही है। अर्थव्यवस्था के संभलने की प्रक्रिया यूपीए सरकार के रहते 2013 में ही शुरू हो गई थी। वर्ष 2008 से 2012 के उतार-चढ़ाव भरे वर्षों के बाद अर्थव्यवस्था ने स्थिरता हासिल कर ली थी: महंगाई की दर तेजी से कम होते हुए नवंबर 2013 के 11.5 फीसद से जून 2016 में 6.7 फीसद पर आ गई; राजकोषीय घाटा 2013-14 के आाखर में 4.4 फीसद पर आ गया, चालू खाते का घाटा कम होकर 1.7 फीसद पर था और विदेशी मुद्रा भंडार 314 अरब डॉलर की बुलंदी पर। फिर भी, आम धारणा यही थी कि माहौल प्रतिकूल था और नई सरकार को अहम चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
दो साल बाद, मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि कुछ उपलब्धियां हैं जिनका श्रेय हमें जाता है। अप्रत्याशित रूप से तेल और जिन्सों की कीमतें कम रहने से हमें उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई दर को जून 2014 के 6.7 फीसद से अप्रैल 2016 में 5.4 फीसद पर लाने में कामयाबी मिली। 2015-16 के आधे-अधूरे कदम के बाद, जो कि एक गलती थी, हमने फरवरी 2016 में राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के रास्ते पर लौटने का तय किया, और मैं आपको आश्वस्त करता हूं कि हम 2017-18 में तीन फीसद का लक्ष्य हासिल कर लेंगे।
मुझे केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) के आंकड़ों पर विश्वास है, जो बताते हैं कि यूपीए सरकार ने जो अर्थव्यवस्था सौंपी थी उसकी वृद्धि दर 2013-14 में 6.9 फीसद थी। वृद्धि दर 2014-15 में 7.2 फीसद रही और 2015-16 में (अनुमानित) 7.6 फीसद। अतिरंजित दावों के बरक्स, सच तो यह है कि भारत की नई ‘सामान्य’ जीडीपी वृद्धि दर सात फीसद के आसपास मालूम पड़ती है, जो कि पर्याप्त नहीं है।
ऊंची वृद्धि दर की कुंजी है राजकोषीय स्थिरता, सही नीतियां और निवेश में बढ़ोतरी। और ऊंची वृद्धि दर ही रोजगार के नए अवसर पैदा करती है। अभिभावकों और युवाओं का मुख्य सरोकार रोजगार है। सरकार के एक शुभचिंतक अखबार में, एक सर्वे पर आधारित रिपोर्ट छपी है, जिसमें लोगों की अपेक्षाएं बताई गई हैं। ये अपेक्षाएं हैं रोजगार सृजन, सूखे के हालात को संभालना तथा किसानों की परेशानियां दूर करना और महंगाई कम करना। लोगों (छप्पन फीसद) की मांग है विकास और आर्थिक वृद्धि। इसके विपरीत, सिर्फ दस फीसद लोग चाहते हैं कि हिंदुत्व को बढ़ावा दिया जाए। हालांकि मेरी पार्टी और सरकार में भी कुछ लोग अलग राय के हैं, पर मेरा दृढ़ निश्चय है कि मैं लोगों की बात सुनूंगा।
रोजगार सृजन में नाकाम
सच कहें तो हम रोजगार सृजन में नाकाम रहे। हम ग्रामीण भारत की तकलीफों को समझने और उन्हें दूर या कम करने में भी नाकाम रहे, खासकर किसानों द्न खेतिहर मजदूरों की तकलीफों की बाबत। कृषि क्षेत्र -0.2 फीसद तक सिकुड़ गया और पिछले दो साल में इसकी वृद्धि सिर्फ 1.1 फीसद रही। डॉ अशोक गुलाटी की चेतावनी मेरे ध्यान में है कि ‘‘सरकार को तेजी से आगे बढ़ने और कृषि के मोर्चे पर साहसिक कदम उठाने की जरूरत है, अगर वह काश्तकारों की भलाई और गरीबी उन्मूलन चाहती है।’’
सड़क निर्माण, ऊर्जा उत्पादन और फर्टिलाइजर उत्पादन को हिसाब में लें, तो हमें जरूर एक हद तक कामयाबी मिली है। हमें पिछली सरकार के कार्यक्रमों को आगे ले जाने में भी महत्त्वपूर्ण सफलता मिली है। मैं जानता हूं कि मुझ समेत मेरी पार्टी ने मनरेगा का मखौल उड़ाया था और ‘आधार’ की वैधानिकता तथा उपयोगिता पर सवाल उठाए थे। मुझे यह स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं है कि हम गलती पर थे। हालांकि परिवर्तन जरूरी है, पर पिछली सरकार की सोच-समझ कर बनाई गई योजनाओं तथा कार्यक्रमों को जारी रखने में ही बुद्धिमानी है।
इसी तरह, मेरी सरकार ने पिछली सरकार के समय शुरू हुए निर्मल भारत अभियान और राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन से भी काफी लाभ उठाया है। हमने इन दोनों कार्यक्रमों की गति और बढ़ा दी, जो अब स्वच्छ भारत और स्किल इंडिया के नाम से चलाए जा रहे हैं।
आगे की मुश्किलें
अभी हमें बहुत-सी चढ़ाइयां पार करनी हैं। इस समय आर्थिक वृद्धि से संबंधित कई संकेतक चिंताजनक हैं। इनमें कंपनियों की सालाना बिक्री (-5.77 फीसद), मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों की सालाना बिक्री (-11.15), ऋण (9.77), वस्तुओं का निर्यात (-15.55) और औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (2.4) जैसे संकेतक शामिल हैं। यानी अर्थव्यवस्था अपनी गति बनाए रखने में भले सक्षम दिख रही हो, इसकी सेहत पूरी तरह ठीक नहीं है। सात फीसद की नई ‘सामान्य’ वृद्धि दर से रोजगार पैदा नहीं होंगे, खासकर उन करोड़ों युवाओं के लिए, जिन्होंने आठ या दस साल से ज्यादा स्कूली शिक्षा नहीं पाई है और जिनके पास कोई विशेष हुनर नहीं है। अगर हम श्रम बाजार में हर साल प्रवेश करने वाले लगभग एक करोड़ लोगों के लिए उपयोगी रोजगार नहीं पैदा कर सकते, तो जनसांख्यिकी दृष्टि से जो लाभकारी पहलू है वह दुखद पहलू में बदल जा सकता है।
इसलिए मैंने संबंधित मंत्रालयों को निर्देश दिया है कि वे अमुक काम करने के लिए उपयुक्त उपाय जल्दी से जल्दी सुझाएं:
* इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के लिए धन कहां से आए, जिसमें लंबी अवधि के लिए वित्तीय ढांचा बनाने तथा निवेश इकट्ठा करने की बात भी शामिल है।
* निर्यात के मद््देनजर मैन्युफैक्चरिंग नीति क्या हो।
* विशाल आबादी वाले शहरों का, सुशासन के नए मॉडल के साथ, पुनर्निर्माण हो, ताकि वे शहर रहने लायक हो सकें।
* वित्तीय क्षेत्र विधायी सुधार आयोग की सिफारिशें लागू करने के लिए समय-सारिणी बनाएं।
इस सबके अलावा, विपक्षी पार्टियों से मशविरा और उनके नजरिए को समाहित करके मैं उनका समर्थन जुटाना चाहता हूं।
मैंने अर्थव्यवस्था की स्थिति पर विस्तार से चर्चा की है। पर दूसरे भी, इतने ही अहम मुद्दे हैं। मुझे उन मुद्दों की चर्चा करने दें…