उधर पूर्वोत्तर राज्यों से आए चुनाव नतीजों ने साबित किया कि कांग्रेस पार्टी का बुरा हाल है, तो इधर राहुल गांधी अपनी दाढ़ी छोटी किए, सूट-बूट पहने निकले पश्चिम की तरफ। विलायत के लिए रवाना हुए कैंब्रिज विश्वविद्यालय के किसी बिजनेस स्कूल में व्याख्यान देने। विषय था ‘इक्कीसवी सदी में सुनने की आदत कैसे डाली जाए’। लेकिन उनके भाषण के जो हिस्से मैंने सुने, उन सबमें एक ही बात पर जोर दिया राहुलजी ने : भारत में लोकतंत्र खतरे में है, क्योंकि मोदी ने पिछले नौ वर्षों में लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर कर दिया है। इस तरह की बातें बहुत बार कह चुके हैं गांधी परिवार के वारिस, लेकिन क्या यह समय नहीं है अपने राजनीतिक दल के हाल पर ध्यान देने का?
मेघालय और नगालैंड जैसे राज्य कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था
मेघालय और नगालैंड जैसे राज्य कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था। इसलिए कि कांग्रेस की ‘सेक्युलर’ नीतियों ने इन राज्यों में कभी ईसाई प्रचार को रोका नहीं। रोकने की कोशिश की है अगर किसी राजनीतिक दल ने, तो वह है भारतीय जनता पार्टी, जो बहुत सालों से कहती आई है कि सरहद पर स्थित इन राज्यों में अराजकता और अलगाववाद फैलाने का काम किया है उन पादरियों और मिशनरियों ने, जो वहां जाते रहे हैं अपने मजहब का प्रचार करने।
BJP अपनी कोशिशों में सफल रही
चुनाव परिणाम बताते हैं कि भारतीय जनता पार्टी काफी हद तक अपनी इस कोशिश में सफल रही है। बात करें त्रिपुरा की, तो वहां भारतीय जनता पार्टी दुबारा सरकार बनाने जा रही है, बावजूद इसके कि कुछ महीने पहले उसकी सरकार इतनी अलोकप्रिय हो गई थी कि मुख्यमंत्री को बदलने की जरूरत पड़ी थी। जीत हमेशा जीत होती है, चाहे इस बार भारतीय जनता पार्टी की सीटें कुछ कम हुई हैं और वोट फीसद भी।
इस साल जितने भी विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, उनकी खास अहमियत है। इसलिए कि अब लोकसभा चुनावों को सिर्फ एक साल रह गया है। इस बात को प्रधानमंत्री बिल्कुल नहीं भूलते हैं कभी, तो पूर्वी राज्यों से नतीजे आने के पहले ही उन्होंने अपना रुख किया कर्नाटक की तरफ। ऐसा क्या राहुल गांधी को भी करना नहीं चाहिए था? उनके कौन से सलाहकार हैं, जो उनको विदेश में घूमने भेज रहे हैं ऐसे वक्त, जब उनको अपने देश में रह कर अपनी पूरी ताकत लगानी चाहिए कांग्रेस में नई ऊर्जा डालने में?
माना कि उनकी भारत जोड़ो यात्रा काफी सफल रही। कन्याकुमारी से कश्मीर तक इस यात्रा की अगुआई राहुल गांधी ने खुद की थी और जहां-जहां से यात्रा गुजरी, वहां हजारों की तादाद में लोग आए अपना समर्थन जताने, अपनी शिकायतें राहुल के सामने रखने।
आम लोगों के अलावा कई बड़ी हस्तियां सामने आईं राहुल गांधी के साथ समर्थन जताने। फिल्मी दुनिया से मशहूर अभिनेता आए कुछ दूर तक राहुल के साथ कदम मिलाकर चलने के लिए। इसमें कोई शक नहीं कि यात्रा ने कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं में एक नया जोश पैदा कर दिया है। लेकिन इस जोश का करेंगे क्या, जब अपनी इस सबसे पुराने राजनीतिक दल की जड़ें इतनी कमजोर हो गई हैं कि सारा ढांचा खोखला हो गया है?
माना कि पार्टी को पुनर्जीवित करने की जिम्मेदारी अब कांग्रेस के नए अध्यक्ष की है, लेकिन मल्लिकार्जुन खड़गे को इतने कम लोग जानते हैं उत्तर भारत की देहातों में कि यह काम उनके लिए मुश्किल नहीं नामुमकिन है। यह ऐसा काम है, जो सिर्फ उस परिवार के सदस्य कर सकते हैं, जिनके अस्तित्व से रहा है कांग्रेस का अस्तित्व दशकों से। राहुल की माताजी ने हाल में हुए कांग्रेस अधिवेशन में इशारा किया कि वे अब कांग्रेस के कामकाज से दूर रहना चाहती हैं।
तो क्या सोनिया गांधी राजनीति से दूर होंगी
फिर जब सवाल उठने लगे कि क्या इसका मतलब है कि वे राजनीति से भी दूर होना चाहती हैं, तो कांग्रेस प्रवक्ता लग गए साबित करने में कि ऐसा बिल्कुल नहीं है। सोनिया गांधी अध्यक्ष रही हैं कांग्रेस की पिछले तेईस वर्षों से। उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने दो आम चुनाव जीते और इतनी ताकतवर हुई यह पार्टी कि जब तक नरेंद्र मोदी नहीं आए राष्ट्रीय राजनीतिक मंच पर तब तक ऐसा लगा था कि कांग्रेस को कोई नहीं हरा सकता है।
सोनिया जी की सबसे बड़ी गलती रही है कोई, तो वह यह कि 2014 की हार के बाद उन्होंने ईमानदारी से कोई कोशिश नहीं की जानने की कि कांग्रेस की हार के कारण क्या थे। इतना घमंड था सोनिया जी में कि 2017 के इंडिया टुडे कान्क्लेव में उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा, ‘मोदी को हम दोबारा वापस आने नहीं देंगे’।
जब मोदी 2019 में फिर से पूर्ण बहुमत हासिल करके आए, तो ऐसा लगा कि कांग्रेस बौखला गई है। इतनी बेहाल दिखी कि कई वरिष्ठ नेता उसको छोड़ कर चले गए, सिर्फ इसलिए कि ऐसा लगने लगा था कि कांग्रेस अब अपनी अंतिम सांस ले रही है। भारत जोड़ो यात्रा ने कुछ हद तक कांग्रेस के टूटते हुए ढांचे में नई जान फूंकी है, लेकिन अब वक्त है यात्रा के काम को आगे ले जाने का।
देश के लिए बहुत जरूरी है कांग्रेस का पुनर्जीवन। किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए खतरे की घंटी तब बजने लगती है जब विपक्ष की जगह खाली रहती है। विपक्ष में एक ही राजनीतिक पार्टी है, जो भारतीय जनता पार्टी का मुकाबला कर सकती है और वह है कांग्रेस। लेकिन एक भारत जोड़ो यात्रा से काम नहीं चलेगा।
अगले आम चुनाव से पहले कांग्रेस को अपनी कमजोर हुई जड़ों को फिर से मजबूत करना होगा और यह तभी होगा, जब कांग्रेस के आला नेता भारतीय जनता पार्टी के आला नेताओं से सीखें कि राजनीति में किसी को छुट्टी लेने की फुर्सत नहीं होती है। जनता की सेवा करने जो निकलते हैं, उनमें दिन-रात काम करने की शक्ति होनी चाहिए।
