आतंकवादी हमले की खबरों के लाइव प्रसारण की तमीज सीखनी हो तो उस फ्रांसीसी खबर चैनल से सीखें, जिसका नाम ‘फ्रांस चौबीस’ है, जो अंगरेजी में है और भारत में आसानी से उपलब्ध है। यह एकदम सधा हुआ प्रसारण था। सामान्य फ्रांसीसी नागरिकों के बड़ी संख्या में क्रूर संहार की खबर देते हुए एंकर के चेहरे पर जरा-सी भी घबराहट और दृश्य में कोई चीख-पुकार या अफरा-तफरी नहीं थी!
एकदम सामान्य चेहरे से एंकर खबर दिए जा रही थी। वह ऐन घटना स्थल को दूर से लाइव दिखा रही थी। देर तक और बार-बार दिखाए गए फुटेज फुटबाल मैदान के रहे, जिनमें खेल के बीच एक बड़े विस्फोट की आवाज सुनाई पड़ती थी और एक खिलाड़ी उसे सुन कर खेलते-खेलते ठिठका दिखता था।
बीच में राष्ट्रपति ओलांदे का आतंकवाद के आगे न झुकने और उससे फाइट करने का दृढ़ संकल्प वाला बयान आया और लंदन से ‘जी 20’ के नेताओं के बयान इस आतंक के बीच हिम्मत बढ़ाने का काम करते थे।
घोर संकट की खबर के प्रसारण के दौरान चैनल या एंकर को किस तरह ‘संकटग्रस्त’ नहीं दिखना चाहिए, इसकी एक मिसाल देखने को मिली। दुखी लोग दिखे, लेकिन बिलखते हुए नहीं, मृतकों की याद में मोमबत्तियां जलाते या फूल रखते हुए। फ्रांस चौबीस को ऐसी चेतावनी देने की जरूरत नहीं पड़ी कि सावधान, आगे के दृश्य आपको व्याकुल कर सकते हैं!
लंबे प्रसारण में एक भी क्षत-विक्षत शरीर नहीं दिखाया गया, न लोगों को ज्यादा भागते-दौड़ते दिखाया गया। सब कुछ लांग शॉट में रहा। दृश्य में कैमरामेनों की भीड़ नहीं दिखी (जैसी हमारे यहां दिखा करती है), न वहां चश्मदीदों से तुरंत पूछा जा रहा था कि आपको कैसा लगा?
फ्रांस चौबीस से कवरेज उधार लेने वाले अंगरेजी चैनल टीआरपी के दावे के लिए अपनी-अपनी बगलें बजाने में व्यस्त थे कि वही सबसे पहली खबर दे रहे हैं, जबकि सबके पास एक-सी खबरें रहीं और टाइमिंग भी कमोबेश एक-सी रही। शुरू में जो कुछ दिखाया वह चैनल फ्रांस चौबीस के सौजन्य से लिया गया!
टाइम्स नाउ का रिपोर्टर निरंजन स्वामी उस कंसर्ट हॉल से कवर करता दिखा, जिसमें आइएस के आतंकियों ने घुस कर सौ से ज्यादा लोगों को मार डाला। वह बताता रहा कि उस सुबह एक आदमी अपनी साइकिल पर अपना पियानो लेकर आया और किस तरह पियानो को सड़क पर उतार कर उसने मरने वालों के लिए एक शोकगीत गाया, फिर उसे बंद करके रोने लगा और फिर चुपचाप चला गया!
लेकिन आदत कहां जाती है? एक फ्रांसीसी महिला से हमारे रिपोर्टर ने पूछ ही तो लिया कि आज सुबह यहां क्या-क्या देखा? फिर बताता रहा कि वारदात की जगह किसी को नहीं जाने दिया जा रहा, पुलिस ने कार्डन कर दिया है। वह महिला आखिर में बिना उत्तेजित हुए बोली कि फ्रांस की आत्मा को कोई नहीं कुचल सकता। वह फिर उठ खड़ा होगा!
दो दिन में कई बार चैनल फ्रांस चौबीस देखा। उस पर विशेषज्ञों की भीड़ नहीं जुटाई गई। एक वक्त में एक से बात की जाती। अपने यहां की तरह दस-दस के बीच फाइट नहीं कराई जाती और विवाद नहीं पैदा किए जाते।
एक विशेषज्ञ बताता रहा कि ऐसे हमलों से फ्रांस का लिबरल जनक्षेत्र संकुचित होगा और दक्षिणपंथी घोर अनुदारवादी ‘ल पेन’ की पार्टी को फायदा मिलेगा। लेकिन एक बात वह भी कहना नहीं भूला कि फ्रांस किसी के आगे झुकने वाला नहीं। वह फिर खड़ा होगा!
संकट के प्रसारण को किस तरह विनम्र तरीके से राष्ट्रवादी आत्मविश्वास की ओर मोड़ा जाता है, इसका यह एक अन्यतम उदाहरण रहा, जिसमें किसी खास दुश्मन को नाम लेकर निशाना नहीं बनाया जाता।
अपने यहां तो दूसरे दिन ही राजनीतिक दंगल खुल गया। आइएस के आतंक का ‘पक्ष’ पैदा हो गया और प्रसारित भी हो गया। देखते-देखते आइएस के आतंक पर बहस का ऐसा डरावना देशज संस्करण बना कि उसे देख आइएस समेत सभी तरह के आतंकवादियों को मजा आ गया होगा।
बहसें सीधी हिंदू बरक्स मुसलमान बना दी गर्इं। टाइम्स नाउ के एंकर ने एक पैनलिस्ट से पूछा कि आप कंडेम करते हैं, तो कहने वाला कहने लगा कि हां कंडेम करता हूं, ‘लेकिन’ न अमेरिका इराक में जाता, न सीरिया में जाता न असद को उखाड़ने के लिए आइएस को मदद करता, न ये होता। इसके आगे एक से एक ‘लेकिन किंतु-परंतुवादी’ मैदान में आ डटे। तारिक फतह ने ज्यों ही कहा कि हिंसा इस्लाम के अंतर्गत ही अनुस्यूत है, तो कहर बरपा हो गया और दो वक्ताओं ने उनको तुरंत रोक दिया और आरोप लगाया कि आप कुरआन को गलत तरीके से उद्धृत कर रहे हैं!
आइएस के आतंकवाद पर सबसे तीखी जुबान आजम खां साहब की रही, जिनने विवाद का ऐसा गोला दागा और देखते-देखते वे हर चैनल पर छा गए। जिन बयानों को एक लाइन नहीं देनी चाहिए थी, उसे लेकर एक अंगरेजी एंकर ने आधा घंटे बातचीत प्रसारित की। फिर वे दूसरे चैनल पर भी नमूदार हुए।
आतंकवाद पर इस तरह की चैनलीय कबड््डी के बाद लगभग हर चैनल लाइन लगा कर दर्शकों से पूछने लगा कि ‘क्या हम तैयार हैं?’ यानी क्या हम पेरिस में हुए आइएस के हमले की तरह के हमले के लिए तैयार हैं?
पेरिस को कवर करने के तुरंत बाद लगभग सभी देसी चैनल देश की सुरक्षा की चिंता में दुबले होने लगे। किसे नहीं मालूम कि कितनी तैयारी है? ऐसी लाइनें आइएस वाले देखते होंगे तो अट्टहास करते होंगे। जब अपने ही लोग आइएस को ‘लेकिन और किंतु-परंतुओं’ के कवच पहनाने लगें तब कैसी तैयारी और कैसी चर्चा?
ऐसे संकटापन्न दिनों में भी अपने मणिशंकरजी का जवाब नहीं। पाकिस्तानी टीवी की बहस में बोल आए कि नरेंद्र मोदी को हटाएं तब पाकिस्तान से बातचीत हो! अब आप लाख सफाई दें कि हमने तो यह बात अगले चुनाव के मद्देनजर कही थी, लेकिन यह तो बताएं सरजी कि घर की बात घर में की जाती है कि दुश्मन के अखाड़े में? इसी तरह सलमान खुर्शीद, नवाज शरीफ की शराफत में चार चांद लगा आए। जब तक ऐसे कांग्रेसी नेता मैदान में हैं, तब तक उसे दुश्मनों की जरूरत नहीं। एंकर तक कांग्रेस पर तरस खाते रहे, लेकिन कांग्रेसी प्रवक्ता अपने बंदों को इस हाल में भी डिफेंड करते रहे!