जो एंकर कल तक कहा करता था कि पूर्णबंदी ने देश को बचा लिया कि ‘सामुदायिक संक्रमण’ नहीं हो पाया, वही अब कहने लगा है कि हम सामुदायिक संक्रमण में हैं। इसमें उसका क्या दोष! उसे जैसा सिखाया जाएगा, वैसा ही तो गाएगा!
एक शाम एक चैनल देश के आगे ‘दो खतरे’ बताने लगा- एक खतरा ‘कोरोना’, दूसरा तूफान! उसी शाम एक अन्य चैनल ने देश के आगे तीन तीन खतरे बताए- पहला कोरोना का, दूसरा तूफान का, तीसरा लद्दाख के पास नियंत्रण सीमा रेखा पर चीन के सैनिकों के जमावड़े का, चीन की युयुत्सा का। बताइए, ऐसे में आप देश बचाएंगे कि देश की आलोचना करके दुश्मनों के हाथ मजबूत करेंगे?
ऐसे में जरा-सा बेतुका सुर लगा कि एंकर ने ‘साइलेंट’ किया! टीवी स्क्रीन में दिखता है कि व्यक्ति के होंठ बोल रहे होते हैं, लेकिन आवाज बंद कर दी जाती है। आप मूक फिल्म का आनंद पाते हैं!
‘गला टीपना’ भी एक निरंकुश कला है! चाहे अमेरिकी पुलिसकर्मी द्वारा जॉर्ज फ्लॉयड का घुटने से गला टीपा जाए या उसकी नकल पर राजस्थान की पुलिस जोधपुर में एक युवक का घुटने से गला टीपे या कोई एंकर किसी की आवाज का गला टीपे, यह निरंकुश कला इन दिनों बड़ी ही लोकप्रिय है।
अब कोरोना सिर्फ एक आंकड़ा है। चैनल रुटीन तरीके से बताते रहते हैं कि संक्रमण की संख्या के हिसाब से पहला नंबर महाराष्ट्र का है और तीसरा दिल्ली का है। ऐसी खबरों के बाद उद्धव सरकार निशाने पर रहती है तो इधर ‘आप’ की सरकार निशाने पर रहती है, मानो अन्य प्रदेशों की सरकारें अपने-अपने यहां स्वर्ग स्थापित कर चुकी हों!
यों तो अपने चैनल ‘सत्य’ के लिए जान देने के दावे करते हैं, लेकिन खबरों और चर्चा करते कराते वक्त वे अपने-अपने ‘सुख क्षेत्र’ कभी नहीं छोड़ते! एक शाम एक अंग्रेजी चैनल ‘बायकॉट चाइनीज गुड्स’ का नारा लगा कर चर्चा कराता है, जिसमें ‘डिकोडिंग ग्रेट चाइनीज प्लान’ के बहाने एंकर से बात करते एक चीन विशेषज्ञ माइकेल पिल्सबरी कहते हैं कि चीन कोरोना वायरस को अपने हित में हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है और कुछ रियायत चाहता है। इसके बरक्स महबूबानी थोड़ा नरम तरीके से कहते हैं कि ‘चीन-अमेरिकी पंगा’ बढ़ना है, ऐसे में भारत को ‘भू-राजनीतिक समझ’ से काम लेना चाहिए।
उक्त चैनल की देखा-देखी एक अन्य अंग्रेजी चैनल ‘बायकॉट चाइना’ का नारा देता है। चर्चा के शुरू में ही, सोनम वांचुक कहते हैं कि यही समय है कि हम चीन पर अपने ‘बटुए’ का दबाव डालें। उसका सामान न खरीदें। लेकिन जवाब में बीजिंग से बोलने वाले आइनर तेनजिंग बोलते रहे कि बहिष्कार में दोनों का नुकसान होगा और भारतीय उपभोक्ता पर अतिरिक्त बोझ पडेगा।
एक दिन ज्यों ही दिल्ली पुलिस ने दंगों के लिए ताहिर हुसैन और मित्रों को दंगों के लिए जिम्मेदार ठहराया, त्यों ही एक चैनल ने ‘लॉबी प्लान्ड रॉयट’ पर बहस कराई और देखते-देखते सारी बहस ‘इस्लामोफाबिया’ बरक्स ‘हिंदू फोबिया’ में बदल गई। ‘फोबिया’ से ‘फोबिया’ की फाइट चल ही रही थी कि एक चर्चक ने दूसरी चर्चक को ‘किटीपार्टी जर्नलिस्ट’ कह दिया, जिसके बाद बहस एकदम निजी और जहरीली हो गई। ‘इस्लामोफोबिया’ और ‘हिंदू फोबिया’ दोनों देर तक आमने-सामने तने रहे! ऐसी हर बहस ‘धार्मिक ध्रुवीकरण’ बढ़ाती है!
फिर एक चैनल ‘तबलीगी जमात के लोगों को ममता बनर्जी द्वारा पास देकर ढाका’ भेज देने के आरोप पर उत्तेजित नजर आया और ‘देशभक्ति’ बनाम ‘देशद्रोह’ के ‘विलोम’ में बहस कराने लगा। फिर चैनल ने चार्जशीट के हवाले से तबलीगी जमात का संबंध दिल्ली के दंगों से जोड़ कर बहस कराई। लेकिन न किसी ने यह पूछा कि महाराज! मरकज के मौलाना साद को अब तक चार्जशीट क्यों नहीं किया गया या अब तक गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया?
यह ‘अनलॉकिंग वन’ का दौर है। इसके बाद तेजी से बढ़ते संक्रमणों ने कोरोना को और भी डरावना बना दिया है। जो एंकर कुछ दिन पहले तक कहते थे कि पूर्णबंदी ने ‘सामुदायिक संक्रमण’ से बचाया है, अब वही कह रहे हैं कि साथी! हम ‘सामुदायिक संक्रमण’ में हैं! जो लोग शुरुआती दिनों में कोरोना से ताल ठोंक कर लड़ने की बात करते थे, उन्होंने अब सबको ‘अनलॉकिंग वन टू थ्री’ के भरोसे छोड़ दिया है।
दावा करने वाले दावा करके चले जाते हैं कि सरकारों के पास संक्रमितों के लिए पर्याप्त ‘बेड’ हैं, लेकिन अगले ही पल कोई न कोई ‘स्टिंग’ पोल खोल देती है कि अव्वल तो ‘बेड’ मिलते नहीं और अगर मिलते हैं तो तीन-चार लाख अग्रिम लेते हैं। सरकारें उपलब्धियों की बीन बजाती रहती हैं, लेकिन सच्चाई सरकारी दावों पर हंसती रहती है!
ऐसा लगता है कि अपने लोग क्रूरता में भी टॉप पर हैं। एक गर्भवती हथिनी को एक हत्यारा अनानास में पटाखे भर कर खिलाता है भोली हथिनी उसे खा लेती है और खाते ही वह उसके जबडों में फट जाता है। वह पानी में तड़प-तड़प कर मरती है और उसके बाद इस पर राजनीति होने लगती है कि उसे किसी किसान ने अपनी फसल बचाने के लिए मारा कि उसके पीछे सरकार का हाथ है? पहले पटाखे से मारा। अब राजनीति से मारा!
ऐसे ही एक दिन स्वास्थ्य मंत्रालय बुजुर्गों की हिफाजत के लिए एक ‘एडवायजरी’ जारी कर बैठे कि बुजुर्ग लोग खबरें कम देखा करें, क्योंकि उनसे निराशा बढ़ती है। एक एंकर नाराज होकर बोली कि प्रधानमंत्री तो चैनलों की तारीफ करते हैं और मंत्रालय हमारी खबरों को खतरनाक बता रहा है? यह तो उनको सूचना से वंचित करना है! लेकिन आश्चर्य कि सरकारी प्रवक्ता के साथ विपक्ष के दो प्रवक्ता भी मंत्रालय की हां में हां मिलाते रहे!
हमें क्या मालूम था कि कोरोना से आंख मूंद कर भी लड़ा जा सकता है! सच! आप धन्य हैं! सीधे ही कह देते सर जी कि ‘मूंदहु आंख कतहुं कछु नाहीं’!
