शीला दीक्षित का निधन हुआ तब जाकर उनके चिर विरोधियों और चैनलों को ज्ञात हुआ कि वे कितनी महान थीं!
एक टिप्पणीकार ने फरमाया : वे सचमुच ‘स्थितप्रज्ञ’ थीं। उन्होंने अपनी शालीनता (ग्रेस) कभी न छोड़ी।
कुछ चैनल चहके : उन्होंने दिल्ली का चेहरा बदल दिया। कुछ विपक्षी बहके : दिल्ली को विश्व स्तर की नगरी उन्होंने ही बनाया।
कोई पांच-छह साल पहले कुछ इसी किस्म के नेता, एंकर और रिपोर्टर बढ़-चढ़ कर शीला पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते दिखते थे, शीला के जाते ही वे अपने कहे को भूलते दिखे और शीला के गुण गाने में व्यस्त हो गए। अपनी संस्कृति यही है :
महान बनना है तो पहले मर जाइए और चुनाव आते हों तो अवश्य ही मर जाइए!
चंद्रयान-दो अंतत: छोड़ ही दिया गया और भारत दुनिया का चौथा चंद्रमागामी देश बन गया। पर इस बार खबर चैनलों की देशभक्ति कम बरसी। इस बार उतना ‘हाइप’ न नजर आया, जितना पहले वाले प्रक्षेपण के ‘असफल राउंड’ में दिखा।
लगता है कि टीएमसी में प्रशांत किशोरीय ‘फैक्टर’ काम करने लगा है, तभी तो इस बार ममता दीदी ने कोलकाता की रैली में प्रधानमंत्री जी का नाम एक बार भी नहीं लिया, बल्कि सिर्फ भाजपा को कोसा। एक पत्रकार की टिप्पणी रही कि ममता दीदी समझ गई हैं कि प्रधानमंत्री की ‘पापुलरिटी’ ‘टॉप’ पर है, उन पर ‘अटैक’ उलटा पड़ेगा, इसलिए बच के चलो।
इस बीच शिया नेता कल्बे जब्बाद ने कह डाला कि अगर सरकार ने मुसलमानों की सुरक्षा पर ध्यान नहीं दिया, तो हथियार खरीद कर देंगे। इसके बाद वही हुआ, जो खबर चैनलों में होता रहता है कि चैनलों में एक ओर हिंदुत्ववादी विराज गए, जो इसे सीधे धर्मयुद्ध के खुले ऐलान की तरह बताने लगे। दूसरी ओर कुछ इस्लामवादी भी मैदान में आ गए, जो इस हथियारबंदी के ऐलान को सही बताने लगे। लेकिन सप्ताह की सबसे मजेदार खबर ट्रंप ने बनाई। इमरान के साथ बैठे हुए ट्रंप ने कह दिया कि कश्मीर को लेकर कुछ दिनों पहले उनको मध्यस्थ बनने को कहा गया था और वे इसके लिए तैयार हैं।…
इस बयान का आना था कि जो भक्त एंकर कल तक अमेरिका में इमरान की उपेक्षा पर खुश थे, अचानक ट्रंप को ‘सीरियल लायर’ और ‘जेनेटिकली झूठा’ बताने लगे और आंकड़े देने लगे कि ट्रंप तो जन्मना झूठिस्तानी हैं, कि आठ सौ दिनों में ट्रंप ने दस हजार सात सौ सत्तानबे बार से अधिक झूठ बोला है।
ट्रंप की बात पर संसद में विपक्ष उत्तेजित रहा कि सफाई दी जाए कि कश्मीर के मसले पर ट्रंप से थर्ड पार्टी बनने को कहा गया कि नहीं कहा गया? विदेश मंत्री ने संसद में बयान देकर साफ किया कि ऐसी कोई ‘रिक्वेस्ट’ नहीं की गई है। कश्मीर हमारे लिए एक द्विपक्षीय मुद्दा है।
इसी बीच उनचास सेलीब्रिटी बुद्धिजीवियों ने पीएम को एक चिठ्ठी लिख कर ‘जय श्रीराम’ के नाम पर अल्पसंख्यकों और दलितों की मॉब लिंचिंग को रोकने के लिए कहा गया। दस्तखत करने वालों में एक से एक तोप-तमंचे रहे, जैसे अपर्णा सेन, श्याम बेनेगल, शुभा मुद्गल, आशीष नंदी, अडूर गोपाल कृष्णन…
लेकिन इस बार ‘लिबरलों’ के पत्र के ‘एकतरफा’ नजरिए की जैसी ठुकाई हुई वैसी न कभी देखी न सुनी। टाइम्स नाउ ने आंकड़ा देकर बताया कि लिंचिंग एकतरफा नहीं हुर्इं। अगर कहीं मुसलिमों की लिंचिंग हुई है, तो हिंदुओं की भी हुई है। ये लिबरल सिर्फ ‘एकपक्ष’ की बात करते हैं, ‘दूसरे पक्ष’ की नहीं करते। यह सब बेहद पक्षपातपूर्ण है। आप लिंचिग मात्र के खिलाफ क्यों नहीं बोलते?
पर यह कैसा दैव दुर्विपाक कि इधर सेलीब्रिटीज कुछ सुर्खरू हुए ही थे कि बंगाल के हुगली के एक कॉलेज की खबर ने उनको ढेर कर दिया। चैनलों की खबरें बताती रहीं कि ‘जय टीएमसी’ न कहने पर टीएमसी के छात्रों के हाथों एक प्रोफेसर की लिंचिंग होते होते रह गई।
उधर कंगना रानौत से लेकर प्रसून जोशी जैसे ‘बासठ’ फिल्मी हस्तियों ने एक दिन पहले वाले ‘सुपर उनचास’ पर लिंचिंग के मुद्दे पर ‘सेलेक्टिव’ होने का आरोप लगाया और जम के लताड़ा। मगर जिस ‘क्वालिटी’ की ‘रस लंपटता’ आजम खान ने संसद में दिखाई, उसकी तुलना नहीं।
कुछ पक्षधर कहते रहे कि वे शायरी कर रहे थे, लेकिन गालिब किसी गली छाप के हाथ पड़ेंगे तो ऐसा ही होगा। देखते-देखते चैनलों की बहसों में आजम खान की गली छाप, ‘यौनवादी’, ‘स्त्री-विरोधी’ रस-लंपटता का हंस कर साथ देने वाले अखिलेश की भी सात पुश्तें नप गर्इं।
आजम खान के जिस ‘सेक्सिस्ट कमेंट’ आग लगाई वो कुछ इस तरह से घटा : चेयर मैडम जी ने आजम से कहा कि आप हमारी तरफ देख कर बात करें। इस पर आजम खां ने कुछ इस तरह कहा कि आप मुझे इतनी अच्छी लगती हैं कि मैं तो आपको इतना देखूं कि देखता ही रहूं… फिर कहा कि आप इतनी प्यारी लगती हैं कि दिन भर आंखों में आंखें डाल कर बैठा रहूं।
आजम खां को शायद ‘गालिब’ समझ अखिलेश न केवल हंसते रहे, बल्कि उनको ‘डिफेंड’ करते रहे। अगले रोज मायावती ने उनको ट्वीट कर ठोका और मांग की कि सिर्फ संसद से नहीं, सारी महिलाओं से माफी मांगें आजम खान। यही नहीं, बहस के वक्त चेयर में रहीं रमा देवी जी ने स्वयं कहा कि आजम खान अपने कहे पर माफी मांगें! संसदीय बहस में भाजपा की स्मृति ईरानी और निर्मला सीतारामन ने आजम खान के ‘सेक्सिस्ट’ व्यवहार की जम कर आलोचना की। लेकिन एक महिला सांसद ने उनका पक्ष लेते हुए कहा कि वे उर्दू शायरी का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। उर्दू जुबान में कुछ मिठास ज्यादा है।… ‘मिठास’ का मतलब क्या ‘रस लंपटता’ है?
