जिस दिन अंतरराष्ट्रीय अदालत ने कूलभूषण जाधव मामले में फैसला सुनाया पिछले हफ्ते, मैंने सारा दिन टीवी की चर्चाएं देखने में गुजारा। एक चैनल से दूसरा चैनल बदलती रही और इत्तेफाक से ‘आजतक’ पर पहुंची, जब रोहित सरदाना एक पाकिस्तानी महिला से 26/11 के बारे में पूछ रहे थे। इस महिला पत्रकार ने कहा कि चाहे ‘डीप स्टेट’ ने यह करवाया हो या अजमल कसाब ने, बहुत बुरा किया। रोहित ने जब उनसे पूछा कि क्या वे कबूल करती हैं कि पाकिस्तान में ‘डीप स्टेट’ है, तो मुस्करा कर इस पत्रकार ने जवाब दिया, ‘नहीं मैं इंडिया की ‘डीप स्टेट’ की बात कर रही थी।’ यह सुन कर आश्चर्य मुझे इसलिए नहीं हुआ, क्योंकि बिल्कुल यही बात मैंने अपने पाकिस्तानी दोस्तों से सुनी है बहुत बार।
मेरे पाकिस्तानी दोस्त पढ़े-लिखे, अमनपरस्त लोग हैं, जो भारत आना बहुत पसंद करते हैं, लेकिन उनको यकीन नहीं है कि इंडिया में ‘डीप स्टेट’ नाम की कोई चीज नहीं है। मजे की बात यह है कि भारत में सुरक्षा विशेषज्ञों को छोड़ कर बहुत कम लोग हैं, जो जानते हैं कि पाकिस्तान की ‘डीप स्टेट’ है क्या। कई भारतीय पत्रकारों ने लंबे लेख लिखे हैं पिछले दिनों इमरान खान की अगले हफ्ते होने वाली अमेरिका यात्रा पर, जैसे कि उनकी डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात बहुत अहमियत रखती हो। मुट्ठी भर हैं, जिन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि असली बातें होंगी जनरल बाजवा से, क्योंकि इमरान खान सिर्फ मुखौटे हैं। इमरान खान इतने कमजोर प्रधानमंत्री हैं कि उनके बारे में कहा जाता है कि वे ‘इलेक्टेड’ नहीं ‘सिलेक्टेड’ प्रधानमंत्री हैं।
मैंने पिछले तीस वर्षों से पाकिस्तान को बहुत करीब से देखा है, लेकिन स्वीकार करती हूं कि जब बेनजीर भुट्टो का पहला चुनाव कवर करने गई थी 1988 में एनडीटीवी के लिए, तो मुझे खुद मालूम नहीं था इस ‘डीप स्टेट’ की ताकत का। जब बेनजीर को पूर्ण बहुमत नहीं मिला लोगों में इतना उत्साह देखने के बाद, तब मैंने सवाल करने शुरू किए और मालूम पड़ा कि ‘डीप स्टेट’ ही असली सरकार है पाकिस्तान की। राजनेता चाहे कोई भी हो। इस ‘डीप स्टेट’ के तीन हिस्से हैं : सेना, मौलाना और सरकारी अधिकारी। यही चलाते हैं पाकिस्तान को, इन्हीं के हाथों में रहती है पाकिस्तान की विदेश और सुरक्षा नीतियां। इन्हीं की बदौलत पैदा हुई हैं लकर-ए-तैयबा जैसी जिहादी संस्थाएं और हाफिज सईद जैसे आतंकवादी। दुनिया जानती है कि इनकी इजाजत के बिना अजमल कसाब और उसके साथी मुंबई नहीं आए थे।
समस्या यह है कि पाकिस्तान और भारत के बीच अब एक-दूसरे से बात करने के लिए भाषा ही नहीं रही है, सो आज तक हम समझा नहीं पाए हैं पाकिस्तान को कि हम जानते हैं कि 26/11 की पूरी साजिश किसने रची थी और कहां। डेविड हेडली ने अमेरिकी जेल के अंदर से जो बयान दिया है, वही काफी होना चाहिए पाकिस्तान के लिए। मगर काफी नहीं है, क्योंकि पाकिस्तान एक अलग यथार्थ में रहता है, सो उसके लिए अंतरराष्ट्रीय अदालत का फैसला उसके हक में गया है। इमरान खान ने ट्वीट करके अदालत के निर्णय का स्वागत किया, इस आधार पर कि अदालत ने जाधव की रिहाई का आदेश नहीं दिया है और न ही उसको भारत में लाने का। इस ट्वीट में इमरान खान यह भी कहते हैं कि कूलभूषण जाधव ने पाकिस्तान के लोगों के खिलाफ गंभीर अपराध किए हैं और उसको पाकिस्तान के कानून के तहत दंडित किया जाएगा।
सीमा के इस पार से नरेंद्र मोदी ने ट्वीट करके खुशी जताई कि अदालत का फैसला भारत के पक्ष में था, क्योंकि जाधव की फांसी रोक दी गई है और उनसे मिलने का अधिकार अब हमारे रजनयिकों को मिल गया है। मोदी की ट्वीट इमरान खान की ट्वीट से ज्यादा अहमियत इसलिए रखती है, क्योंकि मोदी असली प्रधानमंत्री हैं और इमरान सिर्फ पुतले हैं पाकिस्तान की ‘डीप स्टेट’ के हाथों में। भारत की समस्या यह है कि कांग्रेस पार्टी के कुछ नेताओं ने आरएसएस को इतना बड़ा बनाया है कि मेरे कई पाकिस्तानी दोस्त हैं, जो मानते हैं कि आरएसएस अब बन गया है भारत में ‘डीप स्टेट’। इस तरह की बातें तबसे शुरू हुई हैं जबसे कुछ कांग्रेसी नेताओं ने प्रचार शुरू किया कि 26/11 के पीछे आरएसएस का हाथ था। भारत में हम जानते हैं कि आरएसएस चुनावों के समय भारतीय जानता पार्टी की मदद करती है, लेकिन नरेंद्र मोदी जीते हैं इस बार और पिछले बार भी अपने बल पर। मोदी न होते तो यकीन के साथ कहा जा सकता है कि संघ किसी हाल में भारतीय जनता पार्टी को तीन सौ से ज्यादा सीटें नहीं दिलवा सकती है, लोकसभा में।
संघ के बड़े नेता सरकार के कुछ महकमों में हस्तक्षेप जरूर करते फिरते हैं। यह भी माना कि कुछ नीतियों में भी संघ हस्तक्षेप करता है, लेकिन जब बात होती है विदेश या सुरक्षा नीति की तो इन क्षेत्रों में सवाल ही नहीं है संघ के हस्तक्षेप का। कहने का मतलब है कि भारत में जो लोग ‘डीप स्टेट’ ढूंढ़ रहे हैं, वे अपना समय बर्बाद कर रहे हैं। अब यह बात पाकिस्तान को कैसे समझाई जाए? कैसे समझाया जाए हमारे इस पुराने दुश्मन को कि दोस्ती का हाथ बढ़ाया था मोदी ने प्रधानमंत्री बन जाने के फौरन बाद और उसके जवाब में मिले जिहादी हमले। नवाज शरीफ ने जब अमन की तरफ कदम उठाने की कोशिश की, उनको राजनीतिक बिसात से ही हटा दिया गया। ऐसा दूसरी बार हुआ है। अटल बिहारी वाजपेयी जब प्रधानमंत्री थे, उन्होंने भी दोस्ती करने की कोशिश की, तो जवाब मिला ‘डीप स्टेट’ से करगिल में। हकीकत यह है कि फिलहाल शांति के सपने देखना बेकार है।