जिस दिन देवेंद्र फडणवीस ने दूसरी बार मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया, मुझे किसी ने एक मीम भेजा, जो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुआ है। इसमें फडणवीस को विसर्जन के लिए उठा कर ले जा रहे हैं अजित पवार और उद्धव ठाकरे और ऊपर मराठी में लिखा है ‘डेढ़ दिन के गणपति’। किसी राजनेता का जब मजाक शुरू होने लगता है, तो उसकी छवि को अक्सर गहरी चोट पहुंचती है। भारतीय जनता पार्टी की समस्या यह है कि चोट का असर प्रधानमंत्री तक गया है। बड़े से बड़े राजनीतिक पंडित समझ नहीं पा रहे हैं कि नरेंद्र मोदी ने इस खेल में भाग लेने का फैसला क्यों किया। रात के अंधेरे में राष्ट्रपति शासन उठाने की पहल क्यों की। क्या उनको इतना भी नहीं बताया गया था कि अजित पवार पर भरोसा बिना शरद पवार से सलाह-मशविरा किए करना बेवकूफी थी?
विश्लेषण अगर इस पूरे हादसे का किया जाए तो यह कहना गलत न होगा कि सबसे ज्यादा नुकसान नरेंद्र मोदी का व्यक्तिगत तौर पर हुआ है। उन्होंने पांच साल ‘मन की बात’ कार्यक्रम द्वारा अपनी छवि एक ईमानदार, सच्चे राजनेता की बनाई है। एक ऐसे राजनेता की, जिसकी सार्वजनिक जीवन में भूमिका सिर्फ इतनी है कि वह देश की राजनीति से हमेशा के लिए भ्रष्टाचार को समाप्त करना चाहते हैं और भारत को संपन्नता और समृद्धि की ऊंचाइयों तक लेकर जाना चाहते हैं। इस प्रयास में उन्होंने अपने पहले कार्यकाल में आम ग्रामीण भारतीय को वे बुनियादी चीजें दिलवाई हैं, जिनका उनके जीवन में सख्त अभाव था- बिजली, शौचालय, घरेलू गैस, आवास आदि। इक्कीसवीं सदी की ये बुनियादी जरूरतें हैं।
तो कैसे हाथ मिलाया उन्होंने एक ऐसे राजनेता से, जिस पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हुए हैं? कैसे इसको उप-मुख्यमंत्री की शपथ दिलवाई चोरी-चुपके दिन चढ़ने से पहले? माना कि इस तरह की हरकतें होती आई हैं अपने भारत महान में। माना कि चुनावों के बाद जब भी स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है किसी को, तो विधायकों को पांच सितारा होटलों में कैद रखने की प्रथा पुरानी है। माना कि सौदेबाजी फौरन शुरू हो जाती है और विधायकों की कीमत तय होती है। गलत चीजें हैं ये, इसलिए कि जनता के साथ धोखा है और जनादेश का मजाक। मोदी जब पहली बार प्रधानमंत्री बने थे, तो मेरे जैसे लोगों को पूरा विश्वास था कि भ्रष्टाचार हटाने के साथ वे इस गंदी राजनीतिक सभ्यता को भी समाप्त करने की पूरी कोशिश करेंगे। सो, बहुत बुरा लगा जब वे खुद महाराष्ट्र के इस बेहूदा तमाशे में भाग लेने लगे।
उनकी चमकती छवि पर जो अब दाग लग गया है, उसको हटाना उनका पहला काम होना चाहिए। जैसे-तैसे सरकार बनी है अब महाराष्ट्र में, उसके काम में अगर केंद्र सरकार बाधाएं डालती है, तो नुकसान होगा उनका व्यक्तिगत तौर पर। और महाराष्ट्र का बहुत ज्यादा। हालात खराब हैं यहां के कई ग्रामीण क्षेत्रों में। सो, उद्धव ठाकरे को प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्री की शपथ लेने के बाद जो बधाई दी, अच्छा किया। अब अगर चलती है सरकर या गिरती है, तो अपने बल पर होना चाहिए।
देवेंद्र फडणवीस को भी आदेश दिया जाना चाहिए कि नेता विपक्ष की भूमिका वे ईमानदारी से निभाने की कोशिश करें। उनका जिक्र आया है, तो यह भी कह देना जरूरी समझती हूं कि यह सारा तमाशा शायद नहीं होता अगर उन्होंने थोड़ी-सी विनम्रता दिखाई होती चुनाव अभियान के दौरान और परिणाम आने के बाद भी। जो उन्होंने बार-बार कहा कि मुख्यमंत्री सिर्फ वह बनेंगे और कोई नहीं, उसमें एक घमंड दिखा और अहंकार भी। ऐसा लगा शिव सेना के आला नेताओं को कि उनको चुनौती दी जा रही है। इस तरह की चुनौतियों का जवाब अक्सर देने वाले का नुकसान ज्यादा करता है। अब जैसी-तैसी सरकर बनी है महाराष्ट्र में, उसको काम करके दिखाने की जिम्मेदारी सिर्फ उसकी होनी चाहिए। केंद्र सरकार को दूर रहना चाहिए।