सबसे उत्तेजक कवरेज अयोध्या पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के रहे। कुछ दिन के लिए कुछ हिंदी चैनल तो सीधे ‘राममय’ हो गए। कुछ ने अपने को एक प्रकार के मंदिर में ही बदल लिया। देर तक रिकार्डेड राम भजन सुनवाते रहे। कुछ ‘भक्ति चैनलों’ जैसे वीडियो दिखाते रहे। कुछ यू-ट्यूब के भजनों को पेश करते रहे। पहले नौ नवंबर की उस सुबह सारे चैनलों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अपनी-अपनी हीरोइक्स दिखाकर लाइव कवर किया कि हमी दे रहे हैं, हमी ब्रेक कर रहे हैं सबसे बड़ी खबर!

अदालत के अंदर का लाइव दिखाने की इजाजत नहीं, सो कलाकार के बनाए चित्र ही दिखाते रहे कि किस क्रम से उपस्थित पांच जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से यह ‘युग प्रवर्तक’ और ‘चमत्कारी’ फैसला दिया है। सब एंकरों के रिपोर्टरों के कुछ चर्चकों को छोड़ बाकी चर्चकों के चेहरों पर परम संतोष दैदीप्यमान नजर आता था। ऐसे अवसरों पर ‘एक लाइन’ वाले कमेंटों की झड़ी लग जाया करती है। कोई कहता कि चार सौ साल पुराना विवाद निपटा, कोई बताता कि एक सौ चालीस बरस पुराना झगड़ा शांति से सुलझा। कोई कहता कि यह न्याय की जीत हुई। कोई इसका श्रेय जजों की उच्च कोटि की न्याय-बुद्धि को देता, तो कोई रामभक्तों को देता, लेकिन सब एक ‘विशेषक वाक्य’ अवश्य जोड़ते कि यह न किसी की जीत है न किसी की हार है, बल्कि यह न्याय की जीत है। यही बात पीएम ने कही, ऐसी ही बात संघ प्रमुख भागवत ने कही कि इसे जय पराजय की तरह नहीं देखा जाना चाहिए!

कई चैनल सुप्रीम कोर्ट के परिसर से लाइव कवर कर रहे थे, तो कई अयोध्या से लाइव कवर दे रहे थे। अयोध्या के ज्यादातर सीन भगवा-वस्त्रधारी बाबाओं और स्वामियों से सजे नजर आते थे। वे सभी उल्लसित दिखते, फिर ‘संभल कर’ बोलते दिखते। मंदिर वहीं बनेगा, जहां बनना था, ऐसे फैसले को देख कौन भक्त पुलकित न होता? कैमरे बार-बार राम मंदिर के लिए तराशे जाते पत्थरों को एकदम ‘क्लोज’ में ईटों पर ‘श्रीराम’ लिखा दिखाते। जहां रामलला विराजमान हैं उसे लांगशॉट में दिखाते। सुरक्षा के कड़े बंदोबस्तों के बारे में बताते। मस्जिद को पांच एकड़ जमीन देने पर किसी ने एतराज न किया। ‘मस्जिद बने तो बने’, यह भाव रहा। परम उल्लसित रामदेव ने कहा कि वे मंदिर और मस्जिद दोनों को बनाने में योगदान देना चाहेंगे।

लगभग सभी दलों ने फैसले का स्वागत ही किया। कुछ ने कुछ किंतु परंतु लगाए, लेकिन प्रमुख सुर स्वागत का ही रहा। सिर्फ मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड के जिलानी ने चैनलों से कहा कि शरीअत के हिसाब से मस्जिद की जमीन किसी और को नहीं दी जा सकती। अदालत ने हमारी जमीन दूसरों को दी, यह ठीक नहीं। हम जरूर अपील करेंगे। उधर ओवैसी कुछ अधिक तिक्त स्वर में बोले कि मस्जिद के लिए खैरात नहीं मांग रहे हैं। हमें भीख नहीं चाहिए।
शाम तक चैनलों में बहसें जम चुकी थीं। एक अंग्रेजी बहस में एक पत्रकार ने दर्द के साथ कहा कि अब हम थक गए हैं, बस इतनी गारंटी दें कि अब काशी मथुरा की बात न होगी, तो एक चर्चक ने ‘विक्टिम’ खेलने के लिए उसी की ‘ठुकाई’ कर डाली!

एक अंग्रेजी एंकर ‘राम लला’ को ‘राम लल्ला’ कहती रही एक ‘राम लाला’ कहते रहे, लेकिन इस बार किसी भी भक्त ने इनके गलत उच्चारण पर एतराज न किया। इस फैसले ने बहुत से ‘वीर योद्धाओं’ को ‘उदार’ बना दिया था! अगर दो मित्र दल अचानक शत्रु बन जाएं तो ट्विटर के जरिए और फिर टीवी के जरिए ही एक-दूसरे से बात कर अपनी अपने चुनाव क्षेत्र को संबोधित करते रहते हैं। महाराष्ट्र में शिवेसना ने यही किया। ऐसा कोई दिन न गया, जब शिवसेना के संजय राउत ने भाजपा की फिफ्टी फिफ्टी की वादाखिलाफी के लिए धिक्कारा न हो और भाजपा को भी सफाई न देनी पड़ी हो। जो दल कल तक आपस में एक साथ थे, सत्ता की खातिर उनमें ‘अबोला’ हो गया। बारह-तेरह दिन वे ट्विटर और टीवी के जरिए अपनी-अपनी राजनीतिक लाइनें पेलते रहे। एक कहता कि यह जनादेश का अपमान है, तो दूसरा कहता कि महाराष्ट्र की जनता शिवसेना का सीएम चाहती है। भाजपा के ऐन सामने सत्ता की थाली छिनी जा रही है, इसे लेकर कुछ विरोधी चर्चक खुश नजर आते रहे।

सबसे बड़ी खबरें सुप्रीम कोर्ट के फैसले बनाते हैं। एक ही दिन में दो दो बड़े फैसले। एक में रफाल पुनर्विचार याचिका में राहुल को फटकार और चेतावनी मिली। दूसरा फैसला सबरीमला को लेकर रहा, जिसे लेकर कुछ चर्चकों में तो जम कर तू तू मैं मैं हुई, लेकिन फैसले को लेकर बहुत हल्ला न हुआ।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट की सबसे बड़ी खबर अपने को ‘सूचनाधिकार’ के दायरे में लाकर बनाई। ज्यों ही ऐसी खबर आई त्यों ही सभी एंकर और चर्चक ‘पारदर्शिता की जय हो’ ‘पारदर्शिता की जय हो’ गाने लगे। कुछ चर्चकों ने कहा कि अब अन्य जगहों में भी ऐसा होना चाहिए। लेकिन इस तरह की पारदर्शिता के कायल किसी भी एंकर ने यह जोर देकर न कहा कि जहां सूचनाधिकार की कोई गति नहीं है, वहां भी क्या कभी इस तरह की ‘पारदर्शिता की जय’ होगी?
जेएनयू में ‘आजादी’ के नारे के वीडियो कई चैनलों पर दिखे। विवेकानंद की मूर्ति को विद्रूपित करने के सीन भी दिखे। एक कामरेड बोला कि यह वीडियो नकली है दूसरा चर्चक बोला कि बिना जांच के कैसे तय कर लिया कि नकली है? जेएनयू-कांड अभी जमेगा!