इत्तिफाक से जिस दिन महाकुंभ समाप्त हुआ, मैंने सोशल मीडिया पर एक साक्षात्कार देखा, जिसने याद दिलाया कि इस देश की सभ्यता कभी क्या हुआ करती थी। यह साक्षात्कार था हिंदी फिल्मों के दिवंगत अभिनेता का, जिनका नाम था टाम आल्टर। उर्दू में बताते हैं आल्टर साहब कि उनसे मिलने ईरान से एक फिल्म निर्देशक आए थे, जिन्होंने दिल्ली के चांदनी चौक को देखने के बाद उनसे कहा कि वे हैरान रह गए थे देख कर कि चांदनी चौक में आमने-सामने मंदिर, गिरजाघर, मस्जिद और गुरुद्वारा हैं। ऐसा किसी दूसरे देश में देखने को नहीं मिलता है। आल्टर साहब ने जवाब दिया कि हमारे देश में ऐसा होता है इसलिए कि हमने भाईचारे का एक ख्वाब देखा था, जिसे यथार्थ में बदल सके हैं हम। फिर साक्षात्कार लेने वाले से कहा कि ‘यह ख्वाब अगर टूट जाएगा कभी, तो हमारे आस-पड़ोस में जो देश हैं, बहुत खुश हो जाएंगे इसलिए कि उनको यकीन था शुरू से कि यह ख्वाब शुरू से झूठा था’।
इसके फौरन बाद टीवी पर दिखे योगी आदित्यनाथ, कुंभ की सफलता को लेकर अपनी पीठ थपथपाते हुए। उत्तर प्रदेश सरकार के आंकड़ों के मुताबिक संगम में आस्था की डुबकी लगाने देश के छियासठ करोड़ लोग आए थे पिछले पैंतालीस दिनों में। यानी इस देश की तकरीबन आधी आबादी प्रयागराज गई थी कुंभ के दौरान। संदेश जो हमारे राजनेताओं को जाना चाहिए, वह यह है कि सनातन धर्म में आस्था रखने वाले भारत के तकरीबन सारे हिंदू हैं। मेरे अपने दोस्तों में से इतने लोग गए हैं कि मैं खुद हैरान रह गई हूं। ऐसे दोस्त जो कभी मंदिर जाते नहीं दिखे, वे प्रयागराज अपने पूरे परिवार को साथ लेकर पहुंचे। प्रधानमंत्री ने खुद गर्व से कहा है कि वह खुश हैं, यह देख कर कि कुंभ को लेकर आस्था नौजवानों में भी दिखी है।
साबित यह होता है इससे कि सनातन धर्म के मिट जाने के कोई आसार नहीं हैं। उल्टा ऐसा लगता है कि इसमें आस्था रखने वालों की संख्या बढ़ी है। सवाल यह है कि यह चीज हमारे उन राजनेताओं को क्यों नहीं दिखती है जो हर दूसरे दिन लव जिहाद को लेकर हल्ला मचाते फिरते हैं बिना यह सोच कर कि ऐसी बातों से वह भाईचारा कमजोर होता जा रहा है जो कभी भारत की जड़ों तक पहुंच गया था। यह भाईचारा हमारी ‘सुपर-शक्ति’ है, लेकिन जबसे हिंदुत्व मानसिकता रखने वालों के हाथ में सत्ता आई है, तब से इस भाईचारे को कमजोर करने की पूरी कोशिश हुई है।
पिछले सप्ताह महाशिवरात्रि के दिन बिहार में एक धार्मिक जुलूस निकला था, जिसमें एक झांकी ऐसी थी जिसमें हिंदू लड़कियों की लाशों के टुकड़े दिखे थे फ्रिज में रखे हुए। उस घटना की याद दिलाने को, जब एक हिंदू लड़की को उसके मुसलिम प्रेमी ने मार कर उसकी लाश के टुकड़े करके फ्रिज में रखे थे। याद रखना यहां जरूरी है कि ऐसी कई अन्य घटनाओं में आरोपी हिंदू भी रहा है, लेकिन सिर्फ उन घटनाओं पर हम मीडियावाले सुर्खियों में उछालते हैं, जिनमें हत्यारा मुसलिम होता है। ऐसा करके हिंदू-मुसलिम तनाव बढ़ता है इतना कि हिंदू गौरक्षक निकल पड़ते हैं मुसलमानों की तलाश में। गौहत्या के नाम पर ऐसे कई मुसलिम मारे गए हैं, जिनका गौहत्या से कोई वास्ता नहीं था। उनका दोष सिर्फ इतना था कि उनके कपड़ों को पहचान कर कुछ कट्टरपंथियों ने उनको जान से मार डाला।
संरक्षण इन हत्यारों को देते हैं हमारे राजनेता जो इस शर्मनाक हिंसा को रोकने के बदले कानून बनाते फिर रहे हैं तथाकथित ‘लव जिहाद’ को रोकने के लिए। हाल यह है आज कि ज्यादातर भाजपा शासित राज्यों में ऐसे कानून या तो बन गए हैं या बनने वाले हैं। उत्तराखंड में कई गांव हैं, जिनसे एक समुदाय विशेष के दुकानदारों को भगा दिया गया है इसलिए कि ‘लव जिहाद’ का आरोप जिन पर नहीं लगता हैं, उन पर लगता है ‘जमीन जिहाद’ का आरोप। मुंबई में कुछ दिन पहले अफवाह फैलाई गई थी कि मुसलिम बिल्डर इमारतें खड़ी कर रहे हैं जो सिर्फ मुसलमानों के लिए हैं। ऐसी अफवाहों से शुरू होते हैं अक्सर हिंदू-मुसलिम दंगे।
अजीब दौर से गुजर रहे हैं हम। एक तरफ तो दिख रहा है बिल्कुल साफ तरह से कि सनातन धर्म में आस्था रखने वालों की संख्या बढ़ रही है और दूसरी तरफ दिख रहा है कि नफरत और हिंसा इतनी बढ़ गई है हिंदुओं में, मुसलमानों और इस्लाम को लेकर कि छोटी-छोटी बातों से दंगे शुरू हो जाते हैं। तनाव इतना है कि मुसलमान डर कर जीने पर मजबूर हैं। सबसे बुरा हाल है गरीब मुसलिम रेहड़ी-पटरी वालों का, जिनके छोटे-मोटे कारोबार कभी भी नष्ट हो सकते हैं। मुंबई में अफवाह फैली कि एक मुसलिम बच्चे ने पाकिस्तानी क्रिकेट टीम का समर्थन किया तो पुलिस ने उसको गिरफ्तार कर लिया उसके माता-पिता के साथ। इतने में हिंसक भीड़ ने उनकी दुकान तोड़ डाली।
हमको गर्व होना चाहिए कि हमारे शहरों में कई ऐसी गलियां हैं, जहां चांदनी चौक की तरह आमने-सामने होते हैं मस्जिद-मंदिर, गिरजाघर-गुरुद्वारे। लेकिन हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दूरियां आज बढ़ गई हैं इतनी कि ऐसा कब तक रहेगा कोई नहीं कह सकता। प्रधानमंत्री ने अपने एक लेख में लिखा पिछले सप्ताह कि महाकुंभ के बाद एक नया दौर शुरू होने वाला है विकसित भारत का। क्या ऐसा विकसित भारत बन सकेगा बिना भाईचारे के? टाम आल्टर ने जिस ख्वाब की बात की थी, वह इन दिनों धीरे-धीरे टूटता दिख रहा है। अफसोस की बात है कि यह संदेश हमारे आला नेताओं तक पहुंचा नहीं है। आज भी भारतीय जनता पार्टी के कुछ मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री दिखते हैं मुसलमानों और इस्लाम के खिलाफ नफरत फैलाने का काम करते।