परिवारवाद की कोई जगह नहीं होनी चाहिए लोकतांत्रिक देशों में। ऐसा प्रधानमंत्री ने पिछले सप्ताह भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में कहा। बिल्कुल सही कहा। पहले भी बहुत बार इस बात को कह चुके हैं नरेंद्र मोदी। शायद इसलिए कि जानते हैं अच्छी तरह कि उनकी लोकप्रियता का एक अहम कारण है कि वे जिस ऊंचे मुकाम पर पहुंचे हैं वहां पहुंचे हैं अपने बल पर।

भारतीय लोकतंत्र में परिवारवाद इतना फैला हुआ है कि यह अपने आप में बहुत बड़ी चीज है कि मोदी को विरासत में न राजनीतिक ओहदे कभी मिले हैं और न ही कोई राजनीतिक दल।

सो, जब उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी राहुल गांधी की तरफ देखते हैं देश के आम मतदाता, तो मोदी का कोई विकल्प उनमें दिखता ही नहीं है। पहली बार जब प्रधानमंत्री बने थे मोदी, तो सोनिया जी के साथ में सिर्फ राहुल थे उनके परिवार से। फिर जब 2019 का आम चुनाव करीब आने लगा, तो 23 जनवरी, 2019 को सोनिया जी ने अपनी बेटी प्रियंका को कांग्रेस पार्टी का महासचिव बना कर औपचारिक तौर पर राजनीति में आने दिया।

उस समय वंशवाद के कई भक्तों ने इस चाल को गांधी परिवार का तुरुप का पत्ता माना था और खूब प्रचार हुआ कि इंदिरा गांधी की पोती और कुछ हद तक हमशक्ल भारत की राजनीति को पूरी तरह बदल कर दिखाएगी। प्रियंका को भी कुछ ऐसा ही लगा होगा, सो जब उन्होंने अपनी प्रारंभिक आमसभाओं को संबोधित किया तो नहीं भूलती थीं अपनी दादी का जिक्र करना। भूल गई थीं शायद कि इस देश के नौजवान बहुत पहले ही भूल चुके हैं इंदिरा गांधी को, इसलिए आमसभाओं में कहना कि मेरी दादी को फुटबाल बहुत पसंद था, बेकार था।

यथार्थ यह है कि कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक शायद ही आपको कोई राजनीतिक दल मिलेगा, जिसका आधार परिवारवाद न हो। मोदी समझ गए हैं कि जनता जान गई है फर्क परिवारवादी राजनेताओं में और उनमें, जो वास्तव में राजनीति में आते हैं सेवा करने।

फर्क बहुत है। मैंने एक बार एक बड़े राजनेता के बेटे से पूछा था कि वह राजनीतिक में किस लिए आना चाहते हैं, तो उन्होंने ईमानदारी से कहा, ‘पैसा बनाने। और किस लिए?’ उनकी यह बात मैं कभी भूल नहीं पाई हूं, इसलिए कि मैंने बहुत ध्यान से देखा है कि किस तरह ये राजनीतिक वारिस राजनीति में कदम रखते ही अचानक बड़े उद्योगपतियों की तरह जीने लगते हैं।

बड़ी-बड़ी गाड़ियां, महलनुमा मकान, विदेशों में छुट्टियां, विदेशी विश्वविद्यालयों में बच्चों की पढ़ाई और बीवियों के लिए गहने और डिजाइनर बैग और जूते। ये सब चीजें हासिल हो जाती हैं इतनी जल्दी कि हम जैसे हैरान रह जाते हैं। मोदी पहले प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने अपने परिवार को प्रधानमंत्री निवास से दूर रखा है।

शायद साबित करने के लिए कि उनकी नजरों में परिवारवाद एक दीमक है, जिसने भारतीय लोकतंत्र के ढांचे को अंदर से कमजोर किया है। ऐसा कहने के बाद लेकिन यह भी कहना जरूरी समझती हूं कि लोकतंत्र को कमजोर करने के तरीके और भी हैं, जो शायद मोदी अभी समझ नहीं पाए हैं। प्रधानमंत्री जी, जब आपकी सरकार पत्रकारों को गिरफ्तार करती है ऐसे कानूनों के तहत जो आतंकवादियों के लिए बनाए गए थे, तो आप लोकतंत्र को कमजोर करने का काम करते हैं।

ऐसा इतनी बार हुआ है आपकी ‘न्यू इंडिया’ में कि हिसाब लगाने वाले हिसाब लगाते हैं कि राष्ट्रद्रोह के कानून के आधे से ज्यादा मामले दर्ज किए गए हैं 2014 के बाद। इनमें सबसे ज्यादा आरोप लगे हैं उन पर, जिन्होंने आपका या आपकी नीतियों का विरोध किया है। सबसे ताजा मामला है मोहम्मद जुबैर का, जिसने अपनी पत्रकारिता द्वारा झूठी खबरों या ‘फेक न्यूज’ के ऊपर रोशनी डालने का प्रयास किया है।

जब उमर खालिद जैसे छात्र को एक साल से ज्यादा जेल में रखने का काम करता है आपका गृह मंत्रालय ऐसे आरोपों पर, जो साबित नहीं हुए हैं, तो लोकतंत्र कमजोर होता है। जब तक आरोप बेबुनियाद साबित होंगे किसी अदालत में तब तक इस छात्र की आधी जिंदगी गुजर गई होगी।

उमर खालिद अकेले नहीं हैं, जिनको इस तरह जेल में रखा गया है बावजूद इसके कि सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि जमानत नागरिक का अधिकार है और सबको मिलना चाहिए, जब तक फरार होने या गवाहों पर दबाव डालने का खतरा न हो।

लोकतंत्र का आधार है मजबूत, निष्पक्ष कानून-व्यवस्था। लेकिन यहां भी मोदी के दौर में देखने को मिला है उनके मुख्यमंत्रियों द्वारा कानून-व्यवस्था का गंभीर उल्लंघन। जब किसी तथाकथित दंगाई का मकान तोड़ा जाता है बिना साबित किए कि वास्तव में वह दंगाई था, तो कानून-व्यवस्था को कुचला जाता है बुलडोजर तले।

ऐसा बहुत ज्यादा देखने को मिला है पिछले दिनों, जब बुलडोजर संयोग से तभी पहुंचते हैं जहां दंगा हुआ हो और अचानक ‘अवैध’ मकान तोड़े जाते हैं अक्सर उन लोगों के, जिन्होंने अपने जीवन की तमाम कमाई से बनाए हों अपने घर।

सो, प्रधानमंत्री ठीक कहते हैं कि परिवारवाद लोकतंत्र को कमजोर करता है। लेकिन अब शायद उनको ध्यान देना चाहिए उन अन्य चीजों की तरफ, जो उनके शासनकाल में इस्तेमाल की गई हैं लोकतंत्र को कमजोर करने के लिए। उनको ध्यान देना चाहिए कि कैसे केंद्र सरकार की जांच एजंसियां इस्तेमाल की गई हैं उनको चुप कराने के लिए, जिन्होंने विरोध जताने का प्रयास किया हो।

इतनी बार लोकतंत्र कमजोर हुआ है उनके दौर में कि विदेश में उनकी छवि को चोट पहुंची है और देश की इज्जत को भी। भारत की सबसे बड़ी शक्ति है हमारा लोकतंत्र। इस पर किसी तरह की आंच नहीं आनी चाहिए, वरना दुनिया में भारत का सम्मान कम होता जाएगा।