नरेंद्र मोदी के ‘न्यू इंडिया’ में जहां सरदार पटेल सबसे बड़े नायक हैं, उसी तरह पंडित जवाहरलाल नेहरू सबसे बड़े खलनायक। भारतीय जनता पार्टी की ट्रोल सेना और टीवी पर उनके प्रवक्ता बेझिझक देश के पहले प्रधानमंत्री की बुराई इतनी बार करते हैं जैसे साबित करना चाहते हैं कि भारत की हर समस्या नेहरू की नाकाबिलियत ने पैदा की थी।

इस हद तक गए हैं मोदी के भक्त इस प्रयास में कि जब पाकिस्तान ने हमारी टीम को क्रिकेट में हराया था कुछ हफ्ते पहले, तो सोशल मीडिया पर एक ट्वीट ट्रेंड कर रहा था इन शब्दों में, ‘सारा दोष नेहरू का है, क्योंकि उन्होंने पाकिस्तान न बनाया होता तो आज हम हारते नहीं’।

आज नेहरूजी का जन्मदिन है। मेरे बचपन में इस दिन को बाल दिवस कहा जाता था और इस दिन ‘चाचा नेहरू’ से मिलने कई सारे बच्चों को प्रधानमंत्री निवास में आमंत्रित किया जाता था और चाचाजी के साथ उनकी हंसते-खेलते तस्वीरें छापी जाती थीं। यह वह जमाना था जब भारत में नायकों का सख्त अभाव था हर क्षेत्र में। बालीवुड से लेकर खेल के मैदान और राजनीति की बिसात पर गिना जाए, तो भी दो हाथों की उंगलियों पर गिने जा सकते थे भारत के सारे हीरो।

ऐसे माहौल में पंडित नेहरू का कद इतना ऊंचा दिखता था कि किताबें लिखी जाती थीं इस बात को लेकर कि नेहरू के बाद क्या भारत और भारतीय लोकतंत्र जीवित रह सकेंगे या नहीं। चर्चा आम थी राजनीतिक पंडितों के बीच कि नेहरू ऐसा वृक्ष है, जिसकी साया इतनी विशाल है कि उसमें न पौधे उग सकते हैं न जंगली घास।

नेहरू जी का अस्तित्व इतना बड़ा था कि जब उनकी बेटी को उनकी जगह पर नियुक्त किया गया, तो किसी ने एतराज नहीं किया। न राजनेताओं ने, न इस देश के मतदाताओं ने। जिन लोगों ने इंदिराजी को ‘गूंगी गुड़िया’ कहा, वे सब गिर पड़े इतिहास के कूड़ेदान में और नेहरू की बेटी की ताकत बढ़ती गई।

आज नेहरू जी की जन्मतिथि पर उनकी राजनीतिक विरासत की चर्चा करना इसलिए जरूरी समझती हूं मैं, क्योंकि आज उनके आलोचक इतने बढ़ गए हैं मोदी के ‘नए भारत’ में कि ऐसा लगने लगा है जैसे उनके साथ काफी हद तक अन्याय हो रहा है। निजी तौर पर मैंने बहुत बार उनकी आर्थिक नीतियों की आलोचना की है।

आज भी मानती हूं कि उन्होंने सोवियत संघ की आर्थिक नीतियों की नकल करके भारत को दशकों तक गुरबत की बेड़ियों में जकड़ कर रखा था। भारत जितना गरीब था, जब वे प्रधानमंत्री बने थे, उतना ही गरीब था जब 1964 में उनका देहांत हुआ। शिक्षा, स्वास्थ्य, भरोसेमंद बिजली और पानी की सेवाएं हैं असली औजार गरीबी को हटाने के, लेकिन इन पर पंडितजी ने उतना ध्यान नहीं दिया, जितना उन्होंने बड़े-बड़े सरकारी कारखानों के निर्माण पर दिया था।

इनको सफल करने के लिए उन्होंने निजी उद्योग क्षेत्र को तकरीबन खत्म कर दिया था। ये सब बहुत बड़ी गलतियां थीं और इनको स्वीकार करना बहुत जरूरी है। लेकिन क्या नेहरू जी वास्तव में इतने नालायक थे, जितना मोदी के भक्त कहते हैं इन दिनों? दो शब्दों में जवाब : बिलकुल नहीं। जितनी बड़ी नेहरूजी की आर्थिक गलतियां थीं, उतनी ही बड़ी थीं उनकी राजनीतिक कामयाबियां।

एक ऐसे समय में जब कई सारे देश गुलामी की जंजीरें तोड़ कर आजादी की पहली सांस लेने के बाद फौरन तानाशाहों और जरनैलों के कब्जे में आ गए थे, भारत ही था जहां न सिर्फ ऐसा नहीं हुआ, बल्कि जहां लोकतंत्र की जड़ें धीरे-धीरे मजबूत होती गर्इं। ऐसा न होता, अगर नेहरू जी ने इन जड़ों को सींचा न होता। उनकी लोकप्रियता और उनका कद इतना ऊंचा था कि अगर चाहते तो कभी भी चुनावों को समाप्त करके अपने आप को देश का ‘सुप्रीम लीडर’ घोषित कर सकते थे, जैसे हाल में चीन के शी जीनपिंग ने किया है।

लोकतंत्र की जड़ें नेहरू ने सींची, पत्रकारों को अपनी आलोचना करने की पूरी आजादी देकर। देश में उस समय कुछ मुट्ठी भर अखबार ही हुआ करते थे मीडिया के नाम पर और इतने ज्यादा लोग अनपढ़ थे कि उनका असर उतना नहीं था, जितना मीडिया का आज है। आज जो मीडिया है, वह शायद न होता, अगर नेहरू के दौर में मीडिया को पूरी आजादी न मिली होती।

मोदी के ‘न्यू इंडिया’ में मीडिया या तो उनकी प्रशंसा करने में लगी रहती है या आलोचना करती है धीमे स्वर में। जो खुलके आलोचना करते हैं उनको दंडित किया जाता है कई तरह से। लेकिन इसका जिक्र हम करने से डरते हैं, क्योंकि मोदी के भक्तों की आवाज इतनी ऊंची है और उनकी ताकत इतनी ज्यादा है कि आलोचना को राजद्रोह माना जाता है।

नेहरू पर आरोप लगता है इन दिनों कि उन्होंने मुसलमानों का पक्ष लिया हमेशा, और हिंदुओं का नहीं। सो, स्कूलों में भारतीय बच्चे मुगलों के बारे में ज्यादा सीखते थे और प्राचीन भारत की विशाल उपलब्धियों के बारे में कम। यह सच है। अच्छी बात है कि इस गलती को सुधारने का काम हो रहा है मोदी के दौर में, लेकिन ऐसा करते समय उन्हें नेहरू को इतिहास से मिटाने का काम नहीं करना चाहिए।

ध्यान में रखना चाहिए उन्हें कि नेहरू ने अगर कुछ और नहीं दिया है भारत को, तो यह जरूर दिया है कि लोकतंत्र की जड़ें इतनी मजबूत की थीं उन्होंने कि जब उनकी बेटी ने तानाशाही का रास्ता चुना, तो उनको और उनके बेटे को मतदाताओं ने ऐसा निकाल कर फेंका कि वे अपनी सीटें तक नहीं बचा पाए थे 1977 में।

लोकतंत्र भारत की सबसे बड़ी उपलब्धि रही है स्वतंत्रता के बाद। इसके लिए दिल से धन्यवाद हम सबको करना चाहिए, जब भी जवाहरलाल नेहरू को याद करने का कोई अवसर सामने आता है।