अपने प्रधानमंत्री ने आला राजनेताओं से भेंट करने के बाद इंडोनेशिया में रहनेवाले भारतीयों को संबोधित किया और हमेशा की तरह खूब जोश दिखा लोगों में। जब प्रधानमंत्री ने पूछा कि 2014 के बाद सबसे बड़ा परिवर्तन भारत में कौन-सा आया है, तो जवाब ‘मोदी, मोदी, मोदी’ की गूंज में मिला। प्रधानमंत्री इस जवाब से खुश दिखे, लेकिन मुस्कुरा कर कहा कि जवाब गलत है। सबसे बड़ा परिवर्तन मोदी के आने से नहीं आया है भारत में।
सबसे बड़ा परिवर्तन आया है इस बात को लेकर कि भारत की सोच अब बड़ी हो गई है, इसलिए अब बहुत बड़े पैमाने पर विकास के काम होते हैं। छोटी सोच रखते ही नहीं हैं अब भारत के शासक। इसलिए सरदार पटेल की प्रतिमा का निर्माण तय हुआ, तो विश्व की सबसे बड़ी प्रतिमा बनी। गुजरात में क्रिकेट स्टेडियम बना, तो दुनिया का सबसे बड़ा स्टेडियम बना है। यानी असली परिवर्तन भारत में आया है, सोच-विचारों में।
प्रधानमंत्री ने फिर विस्तार से अपनी बात समझाई। 2014 के बाद बत्तीस करोड़ बैंक खाते खुले हैं। तीन करोड़ लोगों को मुफ्त में घर मिले हैं। रही बात कोविड के टीकाकरण की, तो गौरवांवित होते हुए मोदी ने कहा कि भारत में इतने लोगों को टीके लगवाने का काम हुआ है, जो यूरोप और अमेरिका की कुल आबादी से दोगुना है। भारत में विकास इतनी तेजी से हो रहा है अब कि वह दिन दूर नहीं, जब भारत विकसित देशों की श्रेणी में कदम रखेगा। मैंने यह भाषण गौर से सुना और वे तमाम तस्वीरें भी देखीं टीवी और सोशल मीडिया पर, जिसमें मोदी दिखते हैं जो बाइडन और इमैनुअल मैक्रों जैसे नेताओं से बातें करते हुए।
प्रधानमंत्री ने खुद अपने ट्विटर हैंडल पर इन तस्वीरों को जारी किया। और कई भक्त-मिजाज पत्रकारों ने ट्वीट करके कहा कि जब दुनिया भारत के प्रधानमंत्री का इतना सम्मान कर सकती है, तो भारतवासी क्यों उनकी आलोचना करते फिरते हैं। वे शायद भूल गए थे चापलूसी करने में कि आलोचक हर लोकतांत्रिक देश में मिलते हैं और जहां आलोचक नहीं मिलते, उन देशों को लोकतांत्रिक नहीं कहा जाता।
खैर, इसलिए कि मुझे गिना जाता है मोदी के आलोचकों में, मैं आज खुल कर कह सकती हूं यहां कि मोदी चाहे अपनी सरकार की जितनी मर्जी सफलताएं गिनाएं, सच तो यह है कि कई अति-महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में आज तक वह परिवर्तन नजर नहीं आता, जिसके बिना भारत कभी विकसित देश नहीं माना जाएगा। विकसित और अविकसित देशों में सबसे बड़ा फर्क जो मैंने अपनी आंखों से देखा है, वह शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्रों में है। विकसित देशों में शायद ही आपको कोई व्यक्ति मिलेगा जो पढ़ना-लिखना न जानता हो।
अविकसित देशों में ऐसा नहीं है। बल्कि वे लोग, जो हमारे देश में सरकारी स्कूलों से पढ़ाई करके निकलते हैं, उनको अक्सर साक्षरता ही हासिल होती है, शिक्षा नहीं। यह ऐसे दौर में है, जब शिक्षित उनको माना जाता है, जो कंप्यूटर की समझ रखते हों। ग्रामीण सरकारी स्कूल बहुत कम हैं, जहां बच्चे अपना काम लैपटाप या आइपैड पर करते हों। कोविड के दौर में यही मुख्य कारण था गांवों में बच्चों की पढ़ाई रुक जाने का। वही पढ़ सके जो आनलाइन पढ़ सकते थे।
विनम्रता से कहना चाहती हूं प्रधानमंत्री जी, कि जब तक शिक्षा में बहुत बड़े पैमाने पर परिवर्तन नहीं आता अपने देश में, तब तक हम विकसित देश नहीं बन पाएंगे। विश्वगुरु होना तो दूर की बात। विकसित देशों और अविकसित देशों में फर्क एक और है। यह कि शहरों, कस्बों और गांवों में हर मोड़, हर गली में सड़ते कूड़े के ढेर नहीं दिखते हैं। भारत का हाल यह है कि देश की राजधानी में कूड़े के ढेर नहीं, पहाड़ दिखते हैं, जो हवा में दिन भर जहर उगलते हैं, इतना ज्यादा कि हर सांस में दिल्ली के नागरिकों को जहर लेना पड़ता है अपने फेफड़ों में।
रही बात पीने के पानी की, तो हमारा हाल यह है कि अमीर से अमीर भारतीय भी अपने घरों में पानी को साफ करने के बाद ही पी सकता है। विकसित देशों में नल से आता है स्वच्छ पानी। इन चीजों की तरफ मोदी की नजरें तो गई हैं और कई योजनाएं और नीतियां बनी भी हैं, लेकिन अभी तक विशेष परिवर्तन देखने को नहीं मिला है, बावजूद इसके कि मोदी के दौर में स्वच्छ भारत योजना शुरू की गई थी।
एक और बहुत जरूरी फर्क है हम में और विकसित देशों में। यह कि विकसित देशों में आम इंसान की इज्जत होती है। सो, उसको किसी सीवर में नहीं उतारा जाता है बिना ऐसे कपड़े पहनाए जो उसके शरीर और स्वास्थ्य को खतरे में न डाले। कहने को प्रधानमंत्री जी, ये छोटी-छोटी बातें हैं, लेकिन थोड़ा ध्यान अगर आपका इन छोटी चीजों की तरफ जब जाएगा तो आपको अच्छी तरह दिखेगा कि भारत विकसित देश बनने से कितनी दूर है अभी।
समस्याएं और भी हैं, लेकिन जिस दिन भारत के हर नागरिक को बेहतरीन शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं मिलने लगेंगी, उस दिन देश में असली परिवर्तन दिखने लगेगा। स्वस्थ और शिक्षित लोग होते हैं हर देश का सबसे बड़ा धन। उस देश के सिर का ताज। जिन प्रवासी भारतीयों को संबोधित कर रहे थे प्रधानमंत्री पिछले सप्ताह, वे भारत छोड़ कर भागे हैं, क्योंकि अपने भारत महान में रोजमर्रा की जिंदगी आज भी कठिन है।