मेरी परवरिश एक अति-धार्मिक सिख परिवार में हुई, लेकिन बचपन में ‘बेअदबी’ शब्द कभी नहीं सुना था। पिछले सप्ताह जब दरबार साहिब के अंदर एक आदमी की हत्या की गई उसकी तथकथित ‘बेअदबी’ के कारण, तो मैं हैरान भी हुई और शर्मिंदा भी। अगले दिन जब कपूरथला के उस गुरुद्वारे से वह विडियो देखा, जिसमें ग्रंथी के इशारे पर सिखों की भीड़ एक अनजान आदमी की हत्या कर रही थी, तो मेरी शर्मिंदगी दोगुनी हो गई। बाद में मालूम पड़ा कि उस लावारिस आदमी से कोई बेअदबी नहीं हुई थी। शायद भूखा था और गुरुद्वारे में लंगर ढूंढ़ रहा था या पनाह। जिन्होंने उसकी हत्या की, उन्हें सिख कहा नहीं जा सकता है।

असली सीखी में ‘बेअदबी’ शब्द आज आया है, तो आया होगा हमारे पड़ोसी इस्लामी मुल्क की नकल करके। पाकिस्तान में ईश-निंदा को गुस्ताख-ए-रसूल कहा जाता है और कानूनी तौर पर इसकी सजा है मौत। कई बार कानूनी प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही हिंसक भीड़ के हाथों हत्या कर दी जाती है उस अभागे व्यक्ति की, शक के आधार पर, सबूत के नहीं।

हमको गर्व होना चाहिए कि ऐसी हत्याएं अभी तक बहुत कम हुई हैं भारत में। न ही ईश-निंदा का अपराध हमारे कानून में है। तो अब जब पंजाब के गुरुद्वारों में ऐसी हत्याएं होने लगी हैं, इसका कारण क्या है? सवाल यह भी है कि पंजाब के राजनेताओं के मुंह से अभी तक हम क्यों नहीं सुन रहे हैं ऐसी हत्याओं की निंदा? नवजोत सिंह सिद्धू ने तो ऐसी हत्याओं का खुल कर समर्थन किया है और अभी तक कांग्रेस के आला नेताओं ने उनको फटकार तक नहीं लगाई है। कारण कायरता है या आने वाले चुनावों का ध्यान? जो भी हो, शर्म से डूब मरना चाहिए उन सबको।

मेरे परिवार में सब इतने पक्के सिख हैं कि मेरे बचपन में याद है मुझे कि किसी नए घर में सबसे पहले बनाया जाता था ‘बाबाजी का कमरा’। मेरे पिता फौज में थे तो नए घर में जाना आम बात थी और हमेशा पहले जगह बनती थी गुरुग्रंथ साहिब की। मेरी दादी के हाथों में अक्सर रहता था गुटका, जिससे हम बच्चों को न सिर्फ पाठ सिखाया करती थीं, बल्कि हममें से जो सबसे अच्छा सीख जाता था, उसको इनाम भी मिलता था। लेकिन जब भिंडरांवाले का दौर आया पंजाब में और वह दरबार साहिब के अंदर रहने लगा अपने बंदूकधारी समर्थकों के साथ, मेरी दादी ने उसकी खुल कर निंदा की। आज जो सीखी के नाम पर हो रहा है, उसकी निंदा हर असली सिख को करनी चाहिए। इसलिए कि गुरु नानक ने सूफियों से प्रेरणा लेकर सीखी की नीव रखी थी। सो, ‘बेअदबी’ कहां से आई है?

इस तरह की हत्याओं की निंदा प्रधानमंत्री को करनी चाहिए। अफसोस कि ऐसा नहीं कर सकते हैं, क्योंकि ‘न्यू इंडिया’ में भारतीय जनता पार्टी सबसे आगे है धर्म को राजनीति से मिलाने में। किस मुंह से प्रधानमंत्री पंजाब की घटनाओं पर कुछ कह सकेंगे, जब हरिद्वार में पिछले सप्ताह एक हिंदू धार्मिक सम्मेलन में भगवापोश ‘संतों’ ने मंच पर खड़े होकर ऊंची आवाज में ऐलान किया कि मुसलमानों से निबटने के लिए सिर्फ तलवारें काम आ सकती हैं।

इस तरह के हिंसक भाषण पहले भी सुने हैं, लेकिन मोदी के दौर में कुछ ज्यादा सुनने में आते हैं, खासकर जब चुनाव पास आते हैं। निशाने पर सिर्फ मुसलमान नहीं हैं, निशाने पर अब ईसाई भी आ गए हैं, इतनी बार कि न्यूयार्क टाइम्स में एक लंबा लेख छपा पिछले हफ्ते, जिसमें ईसाइयों और उनके गिरजाओं पर हमलों की फेहरिस्त पेश की गई। इस प्रसिद्ध अखबार के मुताबिक ईसाइयों को निशाना बनाया जा रहा है धर्म परिवर्तन को रोकने के नाम पर। कई भाजपा शासित राज्यों में इसको रोकने के लिए कानून पारित हो रहे हैं, बावजूद इसके कि भारत के संविधान में धर्म बदलने का अधिकार स्पष्ट शब्दों में दिया गया है।

ऐसे कानूनों से आम, अर्ध-शिक्षित हिंदू को एक ही संदेश जाता है, वह यह कि भारत में ‘सेक्युलरिज्म’ के नाम पर हिंदुओं को दूसरे दर्जे का नागरिक बना रखा था कांग्रेस पार्टी के दौर में, सो अब समय है बदला लेने का। पहले आई थी मुसलमानों की बारी, सो अनुमान लगाया जाता है कि मोदी के राज में हुई हैं भारत के इतिहास की अस्सी फीसद लिंचिंग की घटनाएं। इनमें मारे गए हैं पहलू खान जैसे पशुपालक और कई ऐसे लोग, जो गोश्त के कारोबार से जुड़े थे। ऐसी जगहों पर इनकी लिंचिंग की जाती है, जहां हत्या का स्पष्ट संदेश जाए।

पशु पालने का काम अक्सर मुसलिम करते थे, लेकिन अब नहीं करते हैं, अपनी जान बचाने के लिए। उत्तर प्रदेश में योगी के राज में उनकी रोजी-रोटी तकरीबन समाप्त हो गई है, जो गोश्त बेच कर गुजारा किया करते थे या पशु पालने का काम करते थे। गुजरात में मांसाहारी पकवान बेचनेवाले ठेलेवालों पर हमले शुरू हो गए हैं।

ऐसे माहौल में प्रधानमंत्री किस मुंह से बोल सकते हैं कि पंजाब में जो हो रहा है, वह गलत भी है और खतरनाक भी, सो चुप्पी साधे हुए हैं। इसके बावजूद कि इतनी पुरानी बात नहीं है जब इस राज्य ने ऐसा दौर देखा था जब गुरुद्वारों के अंदर पनाह मिलती थी आतंकवादियों को। स्वर्ण मंदिर में सेना भेजने की नौबत आई थी और उस ‘आपरेशन ब्लू स्टार’ के बाद भी एक पूरा दशक लगा था सिख आतंकवाद को समाप्त करने में। ऐसा दौर दुबारा आ सकता है। पाकिस्तान लगातार प्रयास कर रहा है कि ऐसा हो। लुधियाना के न्यायालय में जो धमाका हुआ पिछले हफ्ते, जिसमें आत्मघाती हमलावर की मौत हुई, अपने आप में भयानक संदेश है।