फिर शुरू हुआ संसद का सत्र। फिर वही नजारे देखने को मिले। संसद के अंदर हंगामा इतनी बार हुआ है कि भूल से गए हैं हम कि लोकतंत्र के इस मंदिर में कभी बहस भी हुआ करती थी और ऐसी बहस कि इतिहास के पन्नों में दर्ज की जाती थी। बहस की उम्मीद से इस सत्र के पहले दिन प्रधानमंत्री ने खुद अनुरोध किया कि इस बार जो भी कहना हो, उसे संसद के अंदर कहा जाए। लेकिन पहले दिन से ही दिखे गांधीजी की प्रतिमा के सामने विपक्ष के सांसद।

इतनी बार दिखे हैं ये लोग यहां कि मजाक बनने लगा है सोशल मीडिया पर। एक ट्वीट में किसी ने कहा, ‘अंदर चले जाओ भई, गांधीजी ऊब गए हैं आप लोगों की हरकतों से।’ मैंने जब यह ट्वीट पढ़ा तो लगा कि किसी ने मेरे दिल की बात कह डाली हो। क्या पाते हैं विपक्ष के सांसद गांधीजी की प्रतिमा के सामने इस तरह धरना देकर? जवाब मैं खुद दिए देती हूं : कुछ नहीं।

इस बार गांधीजी के चरणों में दिखे विपक्षी सांसद, इस बहाने कि जिन सांसदों को राज्यसभा से निलंबित किया गया था पिछले सत्र में दंगा करने के लिए, उनको वापस आने दिया जाए। उस दंगे के विडियो हम सबने देखे हैं और सच पूछिए तो इन्होंने इतनी बदतमीजी दिखाई कि कम से कम माफी मांगने को तैयार हो जाना चाहिए राज्यसभा के सभापति से नहीं, पूरे देश से। लेकिन अड़े रहे हैं ये लोग माफी न मांगने पर।

क्या बेहतर नहीं होता कि माफी मांग कर अपनी गिलाएं सदन के अंदर जाने के बाद करते? संसद का पिछला सत्र पूरी तरह बर्बाद हुआ इसलिए कि विपक्ष अपनी जिद पर अड़ा रहा कि जब तक पेगासस पर चर्चा नहीं होती, तब तक कोई और चर्चा नहीं होगी। अब ऐसा लगने लगा है कि यह सत्र भी पूरी तरह जाया होने वाला है।

सवाल सिर्फ संसद न चलने का नहीं है, सवाल विपक्ष की रणनीति पर भी उठने लगे हैं। पिछले सप्ताह ममता बनर्जी ने विपक्ष की नेता होते हुए खुद इस रणनीति पर सवाल उठाए। राहुल गांधी की तरफ साफ इशारा करते हुए पूछा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने कि क्या विदेशों में बार-बार घूमने से हराया जाएगा नरेंद्र मोदी को? यह भी कहा कि यूपीए अब है ही नहीं।

सच तो यह है कि बिना कांग्रेस पार्टी के, विपक्ष राष्ट्रीय स्तर पर मोदी को चुनौती दे नहीं सकता और सच यह भी है कि सात साल विपक्ष में रहने के बाद भी कांग्रेस अभी तक न अपनी भूमिका को समझ पाई है न ही मोदी को हराने की रणनीति तैयार कर पाई है। सो, हुआ यह है कि मोदी गंभीर से गंभीर संकट से भी बेदाग निकल कर आ जाते हैं।

यह साल मोदी के लिए बहुत मुश्किल रहा है। एक तरफ महंगाई और बेरोजगारी हदें पार कर चुकी हैं और दूसरी तरफ अभी तक पूरी अर्थव्यवस्था पर छाए रहे हैं मंदी के काले बादल। ऊपर से समस्याएं थीं करोना को लेकर इतनी बड़ी कि अप्रैल और मई के महीने में ऐसा लगा जैसे देश हार मान चुका है इस महामारी के सामने।

महामारी को अनदेखा किया प्रधानमंत्री ने पश्चिम बंगाल जीतने के लिए और वहां भी हार का सामना करना पड़ा। रही बात देश की सुरक्षा की, तो अभी तक चीन बैठा हुआ है हमारी भूमि पर और मोदी कुछ नहीं कर पाए हैं। इतनी गंभीर समस्याओं के बावजूद सर्वेक्षण बताते हैं कि मोदी की लोकप्रियता वैसी की वैसी है, जैसे पहले थी। कारण सिर्फ एक है और वह है कि विपक्ष की तरफ से उनको कोई चुनौती नहीं दे पाया है।

इस बात को जब राजनीतिक पंडित कहते हैं तो कांग्रेस के प्रवक्ता उछल-उछल कर कहने लगते हैं कि राहुल गांधी ही हैं, जिन्होंने देश का ध्यान दिलाया है मोदी सरकार की असफलताओं पर। समस्या राहुल गांधी की यह है कि ध्यान दिलाना काफी नहीं है, उससे आगे भी कुछ करना पड़ता है।

मसलन, संसद के अंदर घेरना पड़ता है सरकार को जब वह इतनी बड़ी गलतियां करती है कि कृषि कानून वापस लेने पड़े एक पूरे साल के बाद। उस दौरान प्रधानमंत्री और उनके आला मंत्रियों ने अहंकार इतना दिखाया कि किसानों की शिकायतें सुनने के बदले उनको बदनाम करने में लगे रहे। मोदी ने खुद संसद के अंदर उनके आंदोलन को नकारते हुए उनको आंदोलनजीवी कहा था।

संसद के इस शीतकालीन सत्र में विपक्ष के पास अच्छा मौका था मोदी की इस गलती पर पूरे देश का ध्यान आकर्षित करने का, लेकिन लगता है कि विपक्ष अभी तक पुराने जमाने के किसी गड्ढे में अटका हुआ है। उस जमाने में जब सोशल मीडिया नहीं हुआ करता था और न ही सारा देश टीवी पर देख सकता था कि संसद के अंदर उनके प्रतिनिधि किस तरह रख रहे हैं उनकी बात।

उस पुराने राजनीतिक दौर में जनता का ध्यान आकर्षित करने का एक ही तरीका हुआ करता था और वह था सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन करना या संसद के बाहर आकर गांधीजी की प्रतिमा के सामने ठंड में बैठ कर विरोध जताना। विपक्ष को कौन समझाएगा कि इस तरह का विरोध करना अब बचकाना और बेवकूफी लगता है और कुछ नहीं?

माना कि सोनिया गांधी अब बुढ़ापे में अपनी पुरानी आदतें नहीं बदल सकती हैं, लेकिन उनके दो वारिस तो अभी जवान हैं, उनको क्यों नहीं दिखता कि उनकी अहमियत बढ़ेगी अगर वे संसद के अंदर बहस में भाग लेते दिखें? कांग्रेस पार्टी के बिना विपक्ष खोखला दिखता है राष्ट्रीय स्तर पर और कांग्रेस के आला राजनेता दो बार लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी नहीं समझ पाए हैं कुछ भी।