फिर प्रकट होने लगे हैं वे राजनेता, जो कोरोना की दूसरी लहर शुरू होते ही गायब हो गए थे। गृहमंत्री अभी तक अदृश्य हैं, लेकिन नरेंद्र मोदी रोज दिखने लगे हैं अपने ‘वर्चुअल रूप’ में। देशवासियों को आश्वस्त करने की कोशिश कर रहे हैं। पहली बार दिखे तो कहा, ‘चुनौती बड़ी है, लेकिन हमारे हौसले उससे भी बड़े हैं’। उधर उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ दिखे अपने अफसरों के एक हुजूम के बीच चलते हुए। उन्होंने कहा कि ग्रामीण इलाकों में अब स्थिति सामान्य होती जा रही और उनके अधिकारी घर-घर जाकर जांच कर रहे हैं। कोरोना के लक्षण दिखते ही फौरन अस्पताल ले जाने का इंतजाम किया जाता है मरीज को। उनका यह वीडियो कई चैनलों पर दिखा, जैसे कोई निष्पक्ष पत्रकार यह समाचार अपनी तरफ से दे रहा हो। कई बार देखने के बाद मुझे दिखे एक कोने में लिखे ये शब्द : यह उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दिया गया इश्तहार है। यानी ढकोसला। असली समाचार के रूप में सरासर झूठ।

गांव-गांव घूम रहे हैं आजकल पत्रकार और जो खबरें वे दिखा रहे हैं टीवी पर, उनको देख कर दिल दहल जाता है। गंगा किनारे आज देखने को मिलती हैं एक विशाल चादर की तरह बिछी हुई रेतीली कब्रें। स्थानीय लोग पत्रकारों को बताते हैं कि कुछ दो हफ्तों से दो सौ के करीब शव लाए जा रहे हैं दफनाने के लिए। ‘गंगाजी में उनको बहाने पर अब पाबंदी लग गई है, इसलिए उनको दफनाने पर मजबूर हैं वे लोग, जो इतने गरीब हैं कि अंतिम संस्कार कर ही नहीं सकते हैं’। टाइम्स नाउ के पत्रकार को यह बात बताई एक बूढ़ी औरत ने, जिसकी बातों से स्पष्ट था कि उसका राजनीति से कोई वास्ता ही नहीं है।

इसी तरह जब पत्रकार गांवों के अंदर जाते हैं और आम लोगों से बातें करते हैं, तो मालूम होता है कि हर दूसरे घर में कोई बीमार पड़ा हुआ है, हर दूसरे घर में किसी न किसी की मौत हुई है। यह भी दिखाया इन बहादुर पत्रकारों ने कि गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में या तो ताले लगे हैं या फिर उनमें मवेशी बांधे जा रहे हैं, इसलिए कि दशकों से उनमें न डॉक्टर दिखे हैं, न इलाज हुआ है। लेकिन लगता है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बंगाल के चुनाव प्रचार में इतने व्यस्त थे कि उन तक इस तरह की दर्द भरी खबरें पहुंची ही नहीं हैं अभी तक। या पहुंची हैं तो उनको अनदेखा करना चाहते हैं।

केंद्र सरकार के स्तर पर भी कुछ ऐसा हो रहा है, सो जिस दिन खबर आई कि भारत में कोरोना से मरने वालों का दैनिक आंकड़ा साढ़े चार हजार तक पहुंच गया है, उसी दिन भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता, संबित पात्रा, ने वह ‘टूलकिट’ ढंूढ़ निकाली, जो उनके मुताबिक बनाया है कांग्रेस पार्टी ने देश को बदनाम करने के लिए। कांग्रेस पार्टी ने साफ इनकार किया है कि इस ‘टूलकिट’ को उनके किसी सदस्य ने बनाया है। जाली कहा है इसे, लेकिन अगर उनकी तरफ से बना भी होता तो क्या? भारतीय जनता पार्टी का प्रचार विभाग क्या जानता नहीं है कि जबसे महामारी की यह दूसरी लहर आई है, दुनिया के मीडिया में वही बातें कही जा रही हैं, जो उस तथाकथित टूलकिट में हैं। महामारी में लापरवाही दिखाने का दोष लग रहा है सीधा मोदी पर।

दुनिया के सबसे बड़े अखबारों ने अपने सबसे अच्छे पत्रकारों को भारत भेजा है पिछले हफ्तों में और उन्होंने वे सारी बातें अपने लेखों और टीवी चैनलों पर दिखाई हैं, जिनसे साफ जाहिर होता है कि हमारे राजनेताओं की नाकामी ही सबसे बड़ी वजह है संक्रमण के बेकाबू होने की। बीबीसी की ओर्ला गेरिन ने ग्रामीण उत्तर प्रदेश का दौरा करके उन परिवारों से बातें की हैं, जिनका रिश्ता था उन अध्यापकों से जो कोरोना से मर गए हैं सिर्फ इसलिए कि उनको तैनात किया गया था पंचायत चुनावों में। उत्तर प्रदेश में एक हजार से ज्यादा अध्यापकों की मृत्यु हुई है कोरोना से।

वह समय गया, जब झूठा प्रचार करके भारतीय जनता पार्टी के आला नेता असली मुद्दे से लोगों का ध्यान भटका सकते थे। किसान आंदोलन में भी एक ‘टूलकिट’ पाया गया था और कोशिश हुई थी साबित करने की कि किसान आंदोलन के पीछे बड़ी-बड़ी खालिस्तानी संस्थाओं का हाथ था। दिल्ली पुलिस ने उस टूलकिट को इतनी गंभीरता से लिया कि बंगलुरू पहुंच गई दिशा रवि को गिरफ्तार करने। कुछ दिनों के लिए उसकी गिरफ्तारी सुर्खियों में रही, लेकिन उसके बाद वापस सुर्खियों में आ गया किसानों का उन तीन कानूनों का विरोध, जो केंद्र सरकार ने पिछले साल पारित किया था। किसानों का आंदोलन अगर फिलहाल सुर्खियों में नहीं है, तो सिर्फ इसलिए कि कोरोना की इस दूसरी लहर ने सबको बेहाल कर दिया है।

इस नई तथाकथित टूलकिट को किसी ने गंभीरता से नहीं लिया है और न कोई लेने वाला है। यह ऐसा समय है, जिसमें दुनिया सिर्फ एक चीज को गंभीरता को ले रही है और वह है भारत में रोज बढ़ता हुआ मौतों का आंकड़ा। भारत सरकार अभी तक सिर्फ साढ़े चार हजार दैनिक मौतों को स्वीकार कर रही है, लेकिन दुनिया के बड़े-बड़े वैज्ञानिक और विशेषज्ञ अब खुलके कह रहे हैं कि यह आंकड़ा गलत है। कई तो कहते हैं कि मरने वालों को असली आंकड़ा सरकारी आंकड़े से बीस गुना ज्यादा है।

भारत की नाकाम स्वास्थ्य सेवाओं की पूरी तस्वीर दिख गई है दुनिया को। ग्रामीण भारत की गुरबत और गंदगी की भी पूरी तस्वीर पेश हो चुकी है दुनिया के सामने। गंगा के किनारे दफनाए गए शव बयान करते हैं कोरोना से मौतों का असली आंकड़ा। इससे ज्यादा नुकसान कोई ‘टूलकिट’ क्या करेगी?