एक चैनल की एक एंकर कहिन कि हमारा काम है सवाल पूछना, तो एक आक्रामक प्रवक्ता कहिन कि हमारा काम है आप जैसे चमचों को ठोकना… एंकर पूछिन कि आप हमें क्यों ठोकें, तो जवाब आया कि बहुत ठुक लिए, अब न ठुकेंगे और अब आप ठुकेंगे।… एक एंकर बोलिन कि जनता के पास जाएं, हम पर क्यों बरसते हैं… तो जवाब आया कि आप उनको पूरा समय देते हैं, हमें बोलने नहीं देते, अब हम बोलेंगे और आप बीच में बिल्कुल नहीं बोलेंगे।… आजकल कुछ प्रवक्ता कुछ चैनलों में इसी तरह की धौंसपट्टी वाली भाषा से काम लेते हैं।

इसी तरह जबसे अपने भैया जी विलायत गए हैं, तब से हर रोज गोले बरसाते हैं कि जनतंत्र खतरे में, संविधान खतरे में, मोबाइल खतरे में… सब खतरे में, और तो और, बेचारा खतरा भी खतरे में है।… इतने खतरों के बीच भी भैया जी की हर रोज एक लीला, जैसे कि एक दिन ‘सूट-टाई-ट्रिम दाढ़ी’ लीला, फिर एक दिन ‘बंद गला लीला’, फिर एक दिन ‘टी-शर्टी लीला’।… इधर भैया जी का गोला, उधर भाजपा के पेट में मरोड़ उठेला कि विदेश से बरसाते हैं देश पर गोला।… देश-विरोधी कहीं के।…

फिर एक गोला संघ की ओर कि ‘संघ एक बंद समाज’, ‘मुसलिम ब्रदरहुड’ जैसा… तो जवाब आता है कि कहां ‘मुसलिम ब्रदरहुुड’ और कहां संघ? एक पूछे कि ‘मुसलिम ब्रदरहुड’ होता तो आपका धर्मांतरण हो चुका होता।… फिर एक दिन भैया जी कह दिए कि अपना चीन ‘बड़ा प्यारा मैं तो गया मारा…’

भैया जी जान गए हैं कि विलायत से रोज एक गोला दागो और खबरों और चर्चाओं में छा जाओ। विलायती खबर, बड़ी खबर! चैनल वाले लपक लेंगे और भाजपा वाले खिसियाते रहेंगे कि देखिए, फिर मारा गोला विलायत से।… देश के दुश्मन कहीं के… भाजपा की प्रतिक्रियाएं अपेक्षाकृत ‘शालीन’ और ‘रक्षात्मक’ ही दिखती हैं, कि संघ की ‘ब्रदरहुड’ से तुलना करना दुखद है…, कि वे हिंदुस्तानी नहीं, विदेशी हैं… कि ‘उपजा पूत कमाल हैं’।
ऐसा लगता है कि इन दिनों कांग्रेस प्रवक्ता तय करके आते हैं कि वे टीवी पर पूरे समय आक्रामक तेवर दिखाएंगे। अधिक से अधिक ‘टीवी टाइम’ खाएंगे, लेकिन अफसोस कि भाजपा प्रवक्ता उनके इस खेल को नहीं समझ पाते और अक्सर अपनी ‘सीमा’ में बने रहते हैं।

मीडिया चालित राजनीति कहती है कि जो जितना टीवी में रहा, उतना वह नजरों में रहा। जो जितना ‘हल्ला’ मचाता रहा, उतना ही जनता के ध्यान में रहा! अपने भैया जी शायद इसीलिए भाजपा के साथ ‘नित्य’ की ‘छेड़ लीला’ करते रहते हैं। गए सप्ताह की खबरों में हर रोज तीन-तीन मोर्चे खुले दिखे। एक मोर्चा ‘सीबीआइ-ईडी’ बरक्स ‘आप’ वाला, दूसरा ‘कांग्रेस बरक्स भाजपा’ वाला और तीसरा ‘बाकी विपक्ष बरक्स भाजपा’ वाला! यानी वही वाली बात कि एक ओर भाजपा, दूसरी ओर बाकी सब!

इसे देख एक चैनल का एक एंकर ‘विपक्ष की एकता’ के लिए देर तक दुहाई देता रहा, लेकिन विपक्ष ‘एक’ होता नहीं दिखा! ऐसी ही एक ‘एकतावादी’ चर्चा में एक ज्ञानी बोलिन कि भाजपा के पास एक मजबूत राष्ट्र का ‘नेरेटिव’ है। उसके मुकाबले विपक्ष के पास क्या है? एंकर सोचता रह जाता है कि प्रधानमंत्री के इस ‘जुुगरनाट’ को कोई कैसे रोक पाएगा?

पक्ष-विपक्ष की बहसें इतनी घिस चुकी हैं कि अब ऊब पैदा करने लगीं हैं। इन बहसों में एक ओर अगर ‘महंगाई, बेरोजगारी और अडाणी’ का रोना होता है, तो दूसरी तरफ ‘मोदी है तो मुमकिन है’ का गाना होता है! फिर एक दिन अपने भैया जी ने लंदन से ही एक नया गोला दाग दिया कि ‘चार’ में चमक रहे थे, लेकिन हारे… इसी तरह ‘चौबीस’ में भी हारेंगे।…

इसे कहते हैं ‘दिमागी खेल’ यानी ‘माइंड गेम’! अपने भैया जी इन दिनों मीडिया के जरिए ऐसे ही ‘दिमागी खेल’ खेल रहे हैं, लेकिन भाजपा प्रवक्ता ‘माइंड गेम’ की जगह अपने ‘पावर गेम’ में ही फंसे दिखते हैं! ‘माइंड गेम’ का जवाब ‘माइंड गेम’ है, ‘पावर गेम’ नहीं! इस खेल में बहुत से चर्चनीय मुद्दे अचर्चनीय ही बने रह जाते हैं, जैसे कि एक अदालत का कहना कि गाय को ‘राष्ट्रीय पशु’ घोषित करो, या कि तमिलनाडु में उत्तर भारतीयों के साथ कथित रूप से ‘अतिचार’ की खबरें, या कि यूपी में एक ‘शूटर’ की मुठभेड़ लीला, या कि केरल के एक समाचार चैनल की एक खबर पर एक छात्र संगठन का धावा और उस पर अंकुश की मांग…

हां, मध्य प्रदेश के एक शहर में हनुमान जी की मूर्ति के आगे ‘पुरुष और महिला बाडी बिल्डरों’ की प्रतियोगिता का आयोजन एक दो चैनलों में जरूर विवाद का विषय बना। ऐसी ही एक बहस में महिला ‘बाडी बिल्डरों’ द्वारा बिकिनी में ‘बाडी बिल्डिंग कला’ दिखाना कांग्रेसी प्रवक्ता को ‘प्रतिक्रियावादी’ नजर आया, जबकि हिंदूवादी प्रवक्ता की नजर में यह ‘स्त्री की प्रगतिशीलता’ का प्रतीक रहा। कांग्रेसी ने कहा कि यह ‘शो’ हनुमान जी का अपमान है, कि यह ‘मर्दवादी’ यानी ‘स्त्रीद्वेषी’ है, तो हिंदूवादी प्रवक्ताओं का जवाब रहा कि हम तो महिलाओं को मंदिर जाने देते हैं, ये तो तालिबान हैं, जो चाहते हैं कि औरतें ऐसा न करें।…

इस बार की ‘होली’ ने ‘महिला दिवस’ को किनारे कर दिया। चैनलों पर होली की तो धूम दिखी, लेकिन महिला दिवस किनारे ही रहा। चैनलों का मन ब्रज की होली में अधिक रमा। कोई नंदगाव की ‘लठा होली’ दिखाता रहा, तो कोई ‘लड्डूू होली’ दिखाता रहा। कोई बांके बिहारी मंदिर में भीड़ की होली दिखाता रहा, तो कई चैनल परंपरागत हास्य कवि सम्मेलन दिखाते रहे। कुछ होली संबंधी गाने भी बजाते रहे और कुछ मथुरा-वृंदावन की खांटी ब्रजभाषा में होली गाते दिखाते रहे कि ‘जो रस बरस रह्यो मथुरा में वो रस तीन लोक में नाहीं…।