समाज में सोशल मीडिया के प्रभाव से अनेक सकारात्मक परिवर्तन हुए हैं। यह भी सही है कि मोबाइल में इंटरनेट और इंटरनेट पर डिजिटल मीडिया ने एक बड़ी आबादी को मुख्यधारा से जोड़ा है। इस कारण विश्व के अनेक देशों में लोकतांत्रिक प्रतिरोध से लेकर प्रशासन के सुचारु संचालन आदि प्रसंगों में अनेक अभूतपूर्व परिणाम देखे गए। लेकिन यह सब सिक्के का एक पहलू है। दूसरे पहलू पर इतने पर्दे हैं कि जो आम समाज इस पर आकर नई लोकतांत्रिक परिधि में अपने आप को अभिभूत पाता है, वह शायद ही कभी इन पर्दों के पार झांक सके।

भारत जैसे देश की लोकतांत्रिक ऊर्जा और संसाधनों का उन्मुक्त दोहन भी इस सोशल मीडिया ने किया है, जिसके बल पर इनके व्यवसाय का मॉडल काम करता है, जितने अधिक लोगों तक किसी सोशल मीडिया की अपने वेबसाइट/ एप्प के माध्यम से पहुंच होगी, उतना ही सबल उसका पूंजी का तंत्र खड़ा होगा। इसके साथ ही अनैतिक स्तर तक लोगों से जुड़े डाटा को अपने सर्वर में एकत्रित करके उससे लाभ कमाना भी इनका समांतर उपक्रम है। हमारी अभिरुचि, गतिविधि और व्यक्तिगत डाटा को एकत्रित कर ये अपने तंत्र को लगातार मजबूत करते रहते हैं। फिर अधिकांश सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म के सर्वर का अमेरिका में होना न सिर्फ सुरक्षा, अपराध-नियंत्रण आदि की दृष्टि से, बल्कि अर्थव्यवस्था की दृष्टि से भी बहुत नुकसानदेह है।

बहरहाल, सोशल मीडिया द्वारा लोकतांत्रिक संसाधनों के इस खुले व्यापार की छूट नहीं दी जानी चाहिए। इसी पर नकेल कसने के लिए सरकार सूचना-प्रौद्योगिकी नियमन 2021 लेकर आई है, ताकि संबंधित प्लेटफॉर्म को उस पर उपलब्ध सामग्री के लिए जवाबदेह बनाया जा सके और सोशल मीडिया द्वारा प्रसारित झूठ, उकसाऊ और आपत्तिजनक सामग्री आदि पर रोक लगाई जा सके। आवश्यकता पड़ने पर प्रभावित पक्ष अपनी शिकायत भी संबंधित प्लेटफॉर्म से कर सके, जिसके लिए नए नियम के अनुसार भारत में शिकायत अधिकारी की नियुक्ति करना भी एक शर्त है।

शुरुआती अनिच्छा के बाद गूगल और फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म तो इस नियमावली को मानने को तैयार हो गए हैं, लेकिन ट्विटर ने न सिर्फ मानने से इनकार कर दिया, बल्कि इसके भारत सरकार और भारत देश का मजाक उड़ा रहा है। भारतीय नियम को ताक पर रख कर संबंधित विभाग के मंत्री का ट्विटर अकाउंट अमेरिकी नियमों का हवाला देकर बंद कर दिया था। देश के मानचित्र को गलत दिखा कर सरकार पर दबाव बनाने का दंभी प्रयास किया। हो सकता है कि कुछ लोकतांत्रिक प्रतिरोधों में एक प्लेटफॉर्म के रूप में ट्विटर का योगदान रहा हो, लेकिन देश में लोकतंत्र ट्विटर के पहले से है और बाद में भी रहेगा। इसलिए ट्विटर को भी इस गलतफहमी में नहीं रहना चाहिए कि भारत का लोकतंत्र उसके भरोसे है। हकीकत तो यही है कि न सिर्फ ट्विटर, बल्कि सभी सोशल मीडिया के देशी या विदेशी प्लेटफॉर्म भारत में निवेश यहां बड़ी जनसंख्या को अपना उपभोक्ता बनाने के लिए करते हैं।

देश-समाज में किसी को इतना शक्तिशाली नहीं होना चाहिए कि उसे खुद के खुदा होने का अहसास होने लगे। यह न तो किसी लोकतंत्र के लिए अच्छा है और न ही किसी समाज और राष्ट्र के लिए। लेकिन इसके विपरीत वैश्विक खुलेपन और तत्काल उपलब्धता के कारण इंटरनेट आधारित डिजिटल संसार में शक्तिशाली को अधिक शक्तिशाली बनने की शत प्रतिशत संभावना होती है और कमजोर को उठ खड़ा हो पाने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है। गूगल के विकल्प के रूप में अनेक सर्च इंजनों ने खड़ा होने का प्रयास किया, लेकिन कोई इतना सफल नहीं हो पाया।

समय की नब्ज को पकड़े गूगल आज इतना शक्तिशाली है कि इंटरनेट का कोई प्रयोक्ता इससे वंचित नहीं है। ऐसे में वर्तमान संघर्ष का दूसरा पक्ष यह है कि देश में लोगों तक पहुंच के मामले में ट्विटर से कई गुना आगे फेसबुक और गूगल हैं, अगर वे भी इस टकराव में आते, तो क्या होता? अगर आज ऐसा नहीं है तो कल भी नहीं होगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है। क्योंकि सूचना-प्रौद्योगिकी नियमन 2021 की मूल चिंता सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध सामग्री है, जबकि भविष्य में जैसे-जैसे समाज में इन विषयों पर जागरूकता बढ़ेगी, टकराव के अनेक पक्ष आते जाएंगे। डाटा का मुक्त दोहन और दुरुपयोग, निजता के प्रति बेफिक्री, इनके सर्वर का विदेश में होना आदि ऐसे अनेक मुद्दे हैं, जिन पर भविष्य में टकराव होगा। इतने वर्षों तक स्वच्छंद लूट कर चुकी ये कंपनियां महज कुछ सुविधाओं के बल पर हमारे जीवन की निगरानी कर रही हैं और उस पर तुर्रा यह कि थोड़ी वैधानिक कड़ाई क्या हुई, ट्विटर जैसी कंपनी देश की संसद, सामरिकता और संप्रभुता से खिलवाड़ करने लगी।

अभी हाल में सूचना-प्रौद्योगिकी पर संसदीय समिति के समक्ष गूगल ने स्वीकार किया है कि गूगल असिस्टेंस नामक टूल में लोगों द्वारा बोल कर पाई जा सकने वाली सहायता यानी प्रयोक्ताओं द्वारा दिया गया वायस कमांड उसके कर्मचारी भी सुन सकते हैं। इससे पहले ऐसी अनेक रिपोर्टें आ चुकीं हैं, जिनमें अधिकांश सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्मों पर डाटा चोरी करके बेचने या उससे चुनावों में किसी के पक्ष या विपक्ष में माहौल बनाने का प्रयास किया गया हो। संभवत: अपनी इसी क्षमता के बल पर ट्विटर भारत सरकार को आंख दिखाने का प्रयास कर रहा है।

भारतीय सजगता के प्राथमिक प्रयास के रूप में सूचना-प्रौद्योगिकी नियमन 2021 के आने और इस पर ट्विटर का वर्तमान रवैया आंख खोलने वाला है। इससे सबक लेने की जरूरत है। क्योंकि इन कंपनियों का कार्य-व्यापार हिंदी फिल्मों के उन सामंती चरित्रों की याद दिलाता है, जो गांव के गरीबों और बेसहारा लोगों को मुफ्त में कुछ रोटियां देकर उनके खेत पर कब्जा जमा लेते हैं। ठीक उसी तरह महज कुछ सुविधाएं मुफ्त में देकर ये कंपनियां हमारे जीवन के विभिन्न क्रिया-कलाप अपने सर्वर में कैद कर रही हैं और न सिर्फ उनके आधार पर अपने शोध-विकास को बढ़ा रही हैं, बल्कि इससे करोड़ों कमा रही हैं। इन सब प्रक्रियाओं में एक व्यक्ति के रूप में हमारी अमूल्य निजता सार्वजनिक रूप से नीलाम हो रही है। जबकि एक समाज और राष्ट्र के रूप होने वाले नुकसान का वर्तमान ट्विटर की आक्रामकता से अंदाजा लगाया जा सकता है।

यह सही है कि हमने एक समाज के रूप में सोशल मीडिया से बहुत कुछ पाया भी है, लेकिन जो कुछ पाया है वह प्रत्युत्पाद के रूप में, इसलिए इन लाभों पर सोशल मीडिया की कंपनियों की नैतिक दावेदारी नहीं हो सकती है। हालांकि ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि इन सब पर आंख मूंद कर प्रतिबंध लगा दिया जाए, लेकिन ऐसा जरूर करना चाहिए कि सोशल मीडिया जिम्मेदार बने, इससे व्यक्ति की निजता, समाज की समरसता और राष्ट्र की संप्रभुता को ठेस न लगे। दूसरी तरफ सरकार को कर के रूप में मिलने वाले राजस्व से बचने की चालाक कोशिश भी न हो। यह सब कुछ इसी लोक और तंत्र को करना होगा, फिल्मी कहानी की तरह यहां कोई नायक नहीं आएगा, जो गांव के लोगों को सामंती चरित्र से मुक्ति दिलाए।