करीब दस साल पहले वह उनके घर संगीत सिखाने आता था। वह एक खुशदिल नौजवान था, जिसके होठों पर कोई न कोई बंदिश हमेशा थिरकती रहती थी। बच्चों को मन लगा कर संगीत सिखाता था। चाय-नाश्ते को उसने पहले ही दिन मना कर दिया था- ‘अगर चाय आ जाएगी तो सिखाते समय ध्यान बंट जाएगा, सिखाने के बाद चाय पीने में समय लगता है। मेरे को दूसरी ट्यूशन पर पहुंचना होता है, इसलिए नाश्ता मुझे नहीं चाहिए। मैं घर से चाय-नाश्ता करके निकलता हूं- मजदूर की तरह- मैं संगीत का मजदूर हूं।’ उसने कहा था और फिर हंसता हुआ सारेगामापा सिखाने में लग गया था।

बच्चे उसको बहुत प्रेम करते थे। देर दोपहर होते ही मास्टरजी के इंतजार में लग जाते थे। शुरू-शुरू में वह साइकिल पर आता था। एक दिन घर में घुसते ही उसने बच्चों से पूछा, ‘सर कहां हैं? आज तो इतवार है, घर पर होंगे?’

सर जब निकले तो उसने दो लड्डू उनके हाथ में रख दिए थे- ‘सर, आज मैंने स्कूटी खरीद ली है।’ ‘बहुत मुबारक हो।’ सर ने फौरन बधाई दी थी। ‘अपना नया वाहन तो दिखाइए।’ मास्टरजी की आखें खिलखिला पड़ी थीं।
‘आइए।’ उसने उत्साहित होकर कहा था।

‘जब काम अच्छा चल रहा है तो कुछ घर बसाने का भी इंतजाम करो।’ सर ने चुटकी ली थी। ‘तुम्हारे गाने पर तो कोई भी मोहित हो सकता है।’ मास्टर साहब ने शरमाते हुए धीरे से कहा था, ‘सर, देख ली है। स्कूटी इसीलिए खरीदी है। अगले साल करने की सोच रहे हैं। तब तक इसकी किश्त भी निपट जाएगी।’ ‘वाह मास्टरजी, आप तो छुपे रुस्तम निकले।’ सर ने ठहाका लगाया था। मास्टरजी के चेहरे का रंग गुलाबी हो गया था।

कुछ समय बाद जब बच्चे हॉस्टल चले गए तो मास्टर जी का आना भी बंद हो गया था। आखिरी बार जब आए थे तो अपनी शादी का कार्ड दे गए थे।

पिछली सितंबर एक मैसेज सर के फोन पर अचानक आया था- ‘शायद आपको याद हो, बहुत साल पहले मैं आपके यहां बच्चों को संगीत सिखाने आता था। उसके बाद मैं आपके संपर्क में नहीं रहा, माफी। आज मैं आपको मैसेज कर रहा हूं, उसके लिए भी माफी। मजबूरी में यह हिमाकत कर रहा हूं।

मेरी सात साल की बिटिया को टीबी हो गई है। उसका इलाज तो चल रहा है, पर उसको उचित डाइट देने के लिए मेरे पास पैसे नहीं हैं। कई महीनों से घर बैठा हूं, कमाई का कोई जरिया नहीं है। सब जगह से उधार ले चुका हूं। आपसे उधार नहीं मांग रहा हूं। बेटी की हालत देखी नहीं जाती, इसीलिए भीख मांग रहा हूं। उसको बचा लीजिए। बहुत तमन्नाएं हैं इस नन्ही-सी जान की…’

जैसे-जैसे सर मैसेज पढ़ रहे थे, उनका दिल बैठता जा रहा था। उनका सिर चकरा गया था, आंखों के सामने अंधेरा छा गया था। एक बाप की लाचारी असहनीय थी। कोरोना काल सबको लील रहा था और व्यवस्था…
दिन डूबे है या डूबी बारात लिए कश्ती साहिल पर मगर कोहराम नहीं होता।

हाल में मेरे एक पूर्व सहयोगी पुन: संपर्क में आ गए। लगभग डेढ़ दशक से वे निजी क्षेत्र की एक जानी-मानी कंपनी में अच्छे पद पर कार्यरत थे। फिर छंटनी हो गई। एक साल से बेरोजगार हैं। बच्चे कॉलेज में पढ़ रहे हैं। ‘हां, नौकरी में बचत तो की थी। दिल्ली में एक फ्लैट भी खरीद लिया था, उसी में मैं रहता हूं। पर खर्चे भी हैं। अब कुछ बचा नहीं है। फैसला कर लिया है कि फ्लैट को बेच दूं … अस्सी-नब्बे लाख मिल जाएंगे, फिर पिताजी के साथ जाकर सीतापुर में रहूंगा। यही एक चारा है… नौकरी तो मिलनी नहीं है और साल-दो साल। उसके बाद उम्र ऐसी हो जाएगी कि मार्केट कितना भी अच्छा हो जाए, उम्रदराजों को कौन पूछेगा? सब अंधेरा ही अंधेरा है…’
सामने न्यूज चैनल पर भाषण आ रहा था। उन्होंने उठ कर उसे बंद कर दिया। ‘सॉरी’, बंद करने के बाद वे बुदबुदाए थे।

दिन डूबे है या डूबी बारात लिए कश्ती
साहिल पर मगर कोहराम नहीं होता
आगाज तो होता है अंजाम नहीं होता
जब मेरी कहानी में वो नाम नहीं होता।

कल डिलीवरी बॉय का फोन आया था- ‘आपने खाने का आर्डर दिया था?’
‘हां, दिया था। ले आओ।’
‘आर्डर में आपकी जीपीएस लोकेशन तो आपके पते से अलग है।’

‘पता तो सही है।’
‘हां, पर मुझे तो डिलीवरी के पैसे लोकेशन के हिसाब से मिलते हैं। इसमें जो आपकी लोकेशन है उसमें मुझे पंद्रह रुपए मिलेंगे, जबकि आपके पते पर मुझे बीस मिलते। मेरा नुकसान हो गया न?’
‘तुम ले आओ, नुकसान नहीं होने दूंगा।’
कुछ देर बाद वह आ गया, मैंने उसे बीस रुपए दिए।
‘पांच काफी है।’ वह पैसे लौटाने लगा।
‘नहीं, रख लो।’ मैंने कहा।
वह हंसने लगा- ‘टिप दे रहे हैं? एमबीए हूं।’ उसकी आवाज रुंध गई थी। उसने मुंह फेर लिया था।
हंस हंस के जवां दिल के हम क्यों न चुनें टुकड़े
हर शख्स की किस्मत में इनाम नहीं होता…
आगाज तो होता है अंजाम नहीं होता…

अखबार की सुर्खियां ठंडी आह की मोहताज होती जा रही हैं। कोई कुछ कह रहा है तो कोई कुछ और। ऐसे में लोगों को चुप करना लाजिम है। बखेड़ा और बवाल में अंतर करना जरूरी हो गया है। बाकी सब ठीकठाक है… सब कुछ ठीकठाक है।
दिल तोड़ दिया उसने ये कहके निगाहों से
पत्थर से जो टकराए वो जाम नहीं होता…
बातें चल रही हैं। कहीं का रंग कहीं और पुत गया है। कलक और खलिश फैल रही है। पर-
जब जुल्फ की कलक में गुल जाए कोई राही बदनाम सही, लेकिन गुमनाम नहीं होता…
आगाज तो होता है अंजाम नहीं होता
जब मेरी कहानी में वो नाम नहीं होता।
(सुप्रसिद्ध अभिनेत्री मीना कुमारी की गजल से उद्धरित)