चंद अरबपतियों को छोड़ दें, तो वैश्विक महामारी ने हरेक को प्रभावित किया है। जब-तब होती रही पूर्णबंदी ने चीजों के उत्पादन, वितरण और आपूर्ति तथा सेवाओं को बुरी तरह बाधित किया है। नौकरियां जाती रहीं। उच्च मध्यवर्ग, निम्न मध्यवर्ग, गरीब, असहाय यानी हर तबके के हर परिवार को किसी न किसी रूप में मार झेलनी पड़ी है। इस पूरे खौफनाक दौर में मैंने कृषि, सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्यमों (एमएसएमई) और सेवा क्षेत्र की किस्मत पर नजर रखी, क्योंकि इन्हीं में सबसे ज्यादा लोगों को काम मिलता है।

एमएसएमई पर ध्यान
यह लेख एमएसएमई पर केंद्रित है। अखबारों ने एक वरिष्ठ बैंक अधिकारी के बयान पर खबर छापी है, जिसमें कहा गया है कि एमएसएमई और कुटीर उद्योग सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं और अप्रैल तथा मई में साठ फीसद एनपीए एमएसएमई की तरफ से बढ़ा है, यानी पहले के मुकाबले दोगुना। रिटेलर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (आरएआइ) ने इन्वेस्टिंगडॉटकॉम को बताया कि मई 2019 के मुकाबले मई 2021 में बिक्री उन्यासी फीसद गिर गई। मैंने एक व्यापक फोन सर्वे के आधार पर जमीनी स्तर पर इन तथ्यों की पुष्टि कराने का फैसला किया। इसके लिए मैंने तिरुचिरापल्ली रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज साइंस एंड टेक्नोलॉजी के श्री जवाहर और उनकी टीम की सेवाएं लीं। उन्होंने इसके लिए तमिलनाडु के एमएसएमई एसोसिएशन और उद्यम से जुड़े उद्योगों को शामिल किया। उन्होंने बारह सवाल पूछे। इस सर्वे में दो हजार उनतीस प्रतिभागियों ने जवाब दिए। और इस सर्वे के नतीजे उससे भी ज्यादा बदतर आए, जो वरिष्ठ बैंक अधिकारी ने अपने बयान में या आरएआइ ने अपनी रिपोर्ट में बताए थे। और ये नतीजे वित्तमंत्री और मुख्य आर्थिक सलाहकार के दफ्तर की खिड़कियों से नजर आने वाली हरी-भरी तस्वीरों से एकदम अलग थे।

यहां मैं बारह सवालों के जवाबों को संक्षिप्त रूप में रख रहा हूं :
1. दो हजार उनतीस में से एक हजार नौ सौ (चौरानबे फीसद) प्रतिभागियों ने बताया कि 2019-2020 के मुकाबले 2020-21 में उनकी बिक्री घट गई।
2. चार सौ इकतालीस प्रतिभागियों ने पच्चीस फीसद, तीन सौ पचहत्तर ने छब्बीस से पचास फीसद और सात सौ सत्तासी ने पचास फीसद से ज्यादा बिक्री घटने की बात कही। दो सौ इक्यानबे एमएसएमई पूरी तरह बंद हो गए थे।
3. जैसी कि उम्मीद की जा सकती है, इक्यानबे फीसद उद्यमियों को 2020-21 में घाटा हुआ।
4. नब्बे फीसद मामलों में दस लाख रुपए तक का घाटा हुआ।
5. चार सौ प्रतिभागियों ने बताया कि उन्होंने अपने पैसे से ही घाटे की भरपाई की, दो सौ पचासी ने परिसंपत्तियां बेच कर, छह सौ चौरानबे ने बैंकों या गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों से कर्ज लेकर घाटा पूरा किया और छह सौ इकतीस लोगों ने अन्य स्रोतों से पैसा जुटा कर नुकसान भरा। इमरजंसी क्रेडिट लाइन गारंटी स्कीम (ईसीएलजीएस), जिसे जीवन रेखा और आत्मनिर्भरता के रास्ते के रूप में पेश किया गया, उससे सिर्फ छह सौ चौरानबे उद्यमियों की ही मदद हो पाई, जिन्होंने उधार लिया था।

6. इस सवाल कि 1 अप्रैल, 2021 से क्या आपका कारोबार या इकाई चल रही है, एक हजार नौ सौ पैंतीस में से आठ सौ बावन प्रतिभागियों यानी चौवालीस प्रतिशत ने जवाब में कहा- नहीं। सिर्फ एक सौ पंचानबे यानी दस फीसद ने पूरी क्षमता के साथ काम करने की बात कही।
बड़े पैमाने पर नौकरियां गईं।

7. जिन एक हजार दो सौ छियासठ प्रतिभागियों ने इस सवाल का जवाब दिया, उनमें से छब्बीस फीसद ने महामारी वर्ष 2020-21 में वेतन / मजदूरी में कटौती की थी, तैंतीस फीसद ने कर्मचारियों को घर बैठा दिया था, तेईस फीसद ने कर्मचारियों की छंटनी कर दी थी और अठारह फीसद ने ये सारे कदम उठाए थे।
8. रोजगार को लेकर जो नतीजे देखने को मिले, उनका पहले से अनुमान लगाया जा सकता था। एक हजार सात सौ तिरासी में से बारह सौ उद्यमियों (67 फीसद) ने 2019-20 के मुकाबले 2020-21 में थोड़े से लोगों को रोजगार दिया। ज्यादातर ने किसी भी नए को काम पर नहीं रखा। 2020-21 में बड़े पैमाने पर नौकरियां गईं, यह एक तथ्य है।

9. एमएसएमई में ज्यादातर सूक्ष्म और लघु उद्योगों ने बीस या इससे कम लोगों को रोजगार दिया। एक हजार एक सौ चौंतीस प्रतिभागियों में से चौंसठ फीसद (जिनके पास 2020-21 में थोड़े से कर्मचारी थे) ने बताया कि उनके यहां पांच लोगों तक की नौकरी गई और तेईस फीसद ने छह से दस लोगों के रोजगार जाने की बात कही। अगर रोजगार खोने वालों का औसत पांच भी मानें और इसे लाखों उद्योगों से गुणा कर दें तो देश में बेरोजगारी की भयावह स्थिति की असली तस्वीर सामने आ जाएगी।

10. 2021-22 में क्या रोजगार की स्थिति सुधरी है? इस सवाल के जवाब में एक हजार दो सौ तिरपन प्रतिभागियों में से पचास फीसद ने बताया कि सारे या फिर कुछ कर्मचारियों को फिर से काम पर रख लिया गया है। पचास फीसद ने बताया कि उनके यहां एक भी कर्मचारी काम पर नहीं लौटा।
11. 2020-21 में बंद हुए एक हजार पांच सौ दस उद्योगों में से सिर्फ चार सौ सत्तर यानी इकतीस फीसद फिर से खुले ही नहीं और आठ सौ अट्ठाईस यानी पचपन फीसद आंशिक रूप से खुले। सिर्फ दो सौ बारह यानी चौदह फीसद उद्योग ही पूर्ण रूप से खुल पाए।
12. जो एक हजार तीन सौ उनचास उद्योग इस वक्त बंद पड़े हैं, उनमें से आठ सौ यानी उनसठ फीसद को दोबारा खुलने का भरोसा था। दूसरी ओर बहत्तर यानी पांच फीसद ने कारोबार स्थायी रूप से बंद कर देने की बात कही। चार सौ सतहत्तर उद्योगों के फिर से खुलने को लेकर कोई भरोसा नहीं है, और अगर खोलेंगे भी तो छोटे पैमाने पर।
अगर आप आंकड़ों की गहराई में जाएंगे तो सूचनाओं का भंडार मिल जाएगा। पूरा सर्वे पढ़ने के लिए http://www.trecstep.com ¹ff http://www.covid19csorelief.com पर जाएं।

बेपरवाह सरकार
यह स्पष्ट है कि एमएसएमई को अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए व्यावहारिक रूप से सरकार ने कुछ नहीं किया। ईसीएलजीएस ने तीन लाख करोड़ रुपए की गारंटी दी है। एमएसएमई को यह भरोसा दिया गया था कि इस योजना में तीन लाख करोड़ तक की चूक को सरकारी गारंटी मिलेगी। इसलिए यह माना गया कि अगर एनपीए का स्तर सामान्य (दस फीसद) से उच्च स्तर (पच्चीस फीसद) रहता है तो यह बारह से तीस लाख करोड़ हो जाएगी। इस छल का पदार्फाश तब हुआ जब सरकार ने यह स्पष्ट किया कि इस योजना की कुल रकम ही तीन लाख करोड़ है। एमएसएमई की बैंलेस शीट देखते हुए बैंकरों को तीन लाख करोड़ का लक्ष्य हासिल करने के लिए जूझना पड़ गया। अभी तक इसके तहत सिर्फ डेढ़ लाख करोड़ रुपए जारी हुए हैं।

कम पूंजी, बीस से कम कर्मचारियों, कम कारोबार और कम मुनाफे के बीच महामारी ने उद्यमशीलता की भावना को मार डाला है। उनके कारोबार खत्म होते गए और सरकार देखती रही। उनके लिए आत्म-निर्वाण का रास्ता यही है।