अगर आपने यह सोचा है कि कोरोना की दूसरी लहर सबसे बड़ा संकट थी, जिसका अपने जीवन में मुकाबला करना होगा, तो आप निराश हो सकते हैं। संक्रमित व्यक्ति और उसके परिजनों के लिए कोरोना का अनुभव बहुत ही बुरा रहा है। चाहे बिना लक्षण वाले या मामूली लक्षण वाले हों, घर या कोविड केंद्र में एकांतवास में रहने वाले हों या अस्पताल में भर्ती हों, आइसीयू में ऑक्सीजन या जीवन रक्षक प्रणाली पर हों, हर संक्रमित व्यक्ति ने मौत के खौफ को अनुभव किया है। मई में कुल मृत्युदर (टीएफआर) दो फीसद से ऊपर निकल गई और हर संक्रमित व्यक्ति ने यह प्रार्थना की है कि उसे मरने से बचा लिया जाए।
महामारी से प्रभावित दुनिया में रह रहे उन लोगों का अनुभव भी उतना ही बुरा है, जो संक्रमण की मार से किसी तरह बच गए। जब रोजाना किसी पारिवारिक सदस्य या दोस्त या परिचित या किसी ऐसे व्यक्ति, जिसकी हमने प्रशंसा की हो, के बारे में बुरी खबर मिलती है तो हरेक के मन में यह सवाल उठता ही है कि क्या मेरी बारी तो नहीं आएगी और कब। ऐसा अनुभव खासतौर से डॉक्टरों, नर्सों, अर्ध-चिकित्सा कर्मियों और अस्पताल में काम करने वालों के साथ ज्यादा रहा है। कई लोग अपना कर्तव्य निभाते हुए ही अपने परिवारों को दुख और अनिश्चितता में छोड़ कर चले गए।
प्रधानमंत्री, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री, अन्य मंत्रियों और नौकरशाहों के लिए भी कोरोना का अनुभव बुरा रहा है। यह वे भी जानते हैं और आप भी, इसलिए मैं और ज्यादा इसमें नहीं जाऊंगा।
बदतरी निश्चित है
हालांकि भविष्य के बारे में एक बात तो यह कि इसे लेकर अब और अनिश्चितता नहीं रह गई है। यह देश के लोगों की आर्थिक हालत के बारे में है। यह जितनी खराब होनी चाहिए, उससे कहीं ज्यादा बदतर होती जाएगी। असमानता बढ़ेगी और आबादी का बड़ा हिस्सा गरीबी में चला जाएगा और गहरे कर्ज और दुख में डूब जाएगा।
एनएसओ ने स्थिर मूल्य पर तीन साल के लिए जीडीपी का अनुमान (करोड़ रुपए में) यह निकाला :
2018-19: 140,03,316 रुपए
2019-20: 145,69,268 रुपए
2020-21: 134,08,882 रुपए
एनएसओ के अनुसार महामारी के पूर्व वर्ष में जीडीपी सिर्फ चार फीसद की दर से बढ़ी, लेकिन 2020-21 (महामारी के पहले साल) में इसमें आठ फीसद की गिरावट आई। अब हम महामारी के दूसरे साल में हैं और रोजाना संक्रमण (414280) और मौतों (4529) की नई ऊंचाई देखी है। उपचाराधीन मामलों की संख्या चौबीस लाख तेईस हजार आठ सौ उनतीस है। आगे 2021-22 में क्या जीडीपी बढ़ेगी, स्थिर रहेगी या कम होगी? अब तक के अनुमान उत्साहवर्धक नहीं हैं, सिवाय इसके कि सरकार की ओर से रखे गए अनुमान परेशान करने वाले हैं। जब अब भी सकारात्मक वृद्धि के अनुमान लगाए जा रहे हैं तो इस पर कुछ अर्थशास्त्रियों को संदेह है। सबसे अच्छा तो यह हो सकता है कि हम 2021-22 में शून्य वृद्धि मान लें और उम्मीद करें कि आखिरकार नतीजा अच्छा ही आएगा।
खोई संभावनाएं
मात्रात्मक रूप से देखें तो हालात पर ज्यादा बेहतर रोशनी जीडीपी के हासिल से पड़ेगी। 2019-20 में हमने करीब दो लाख अस्सी हजार करोड़ रुपए के उत्पादन की संभावना को गंवा दिया। महामारी के पहले साल (2020-21) में ग्यारह लाख करोड़ रुपए के उत्पादन (वास्तविक) को हाथ से जाने दिया दिया। शून्य वृद्धि को मान कर चलें तो स्थिर मूल्यों पर जीडीपी 2020-21 में एक सौ चौंतीस लाख करोड़ रुपए रहेगी। चूंकि भारत को एक बढ़ती अर्थव्यवस्था होना चाहिए और पांच फीसद की मामूली वृद्धि दर मान लें, तो देश के स्तर पर उत्पादन का नुकसान छह लाख सत्तर हजार करोड़ रुपए बैठेगा जो कि जीडीपी में जुड़ना चाहिए था। तीन सालों के आंकड़े को जोड़ें तो यह नुकसान बीस लाख करोड़ रुपए तक पहुंच जाता है।
तीन साल में इतने भारी-भरकम नुकसान का मतलब होगा नौकरियां जाना, आमद/ मजदूरी में कमी, बचत का नुकसान, रिहायश की मुश्किलें, निवेश का नुकसान, शिक्षा के अवसरों में कमी, स्वास्थ्य सेवाओं में कमी और ऐसे ही दूसरे अन्य नुकसान। सीएमआइई के मुताबिक 26 मई, 2021 को बेरोजगारी दर 11.17 फीसद थी। इसमें शहरी बेरोजगारी दर 13.52 फीसद और ग्रामीण बेरोजगारी दर 10.12 फीसद रही। 2020-21 में हमने करीब एक करोड़ वैतनिक रोजगार खोए। दूसरी लहर, जो गांवों तक फैल चुकी है, में छोटे कस्बों और गांवों में रोजगार पर असर पड़ेगा। आंकड़े यह भी बताते हैं कि बड़े पैमाने पर शहरी क्षेत्रों से ग्रामीण इलाकों की ओर पलायन हुआ और कृषि क्षेत्र में करीब नब्बे लाख रोजगार बढ़े। जो क्षेत्र पहले ही से कामगारों के बोझ तले दबा हो, उसमें यह नियमित रोजगार नहीं हो सकता। इसके अलावा रोजगार में कमी तब हो रही है जब श्रमबल की दर में गिरावट आ चुकी है। (स्रोत- सीएमआइई)
और गरीब हुए
नौकरियां खत्म होने का मतलब होगा आमद/ मजदूरी में गिरावट। रिजर्व बैंक ने अपने मई के बुलेटिन में मांग में कमी, विवेकाधीन खर्च में कमी और तैयार माल के बढ़ते भंडार के बारे में बात की। हर बाजार में इसका सबूत मौजूद है। सीएमआइई के प्रबंध निदेशक महेश व्यास ने बताया है कि पिछले तेरह महीनों में नब्बे फीसद परिवारों को आमद में गिरावट का सामना करना पड़ा है। अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय की एक शोध रिपोर्ट बताती है कि परिवारों को उधार लेकर या घर का सामान बेच कर और खाने में कटौती करके हालात से निपटना पड़ रहा है। एक और सर्वे में सामने आया कि गरीब लोगों को आमद से ज्यादा कर्ज लेने को मजबूर होना पड़ गया।
मई 2021 में अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय ने यह रिपोर्ट भी दी कि और तेईस करोड़ लोग तीन सौ पचहत्तर रुपए रोजाना मजदूरी वाली गरीबी की दहलीज पर पहुंच चुके हैं। इस आंकड़े ने उस आंकड़े को पलट डाला है, जो 2005 से 2015 के बीच सत्ताईस करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकालने वाला था। (स्रोत- विश्व बैंक)
कुल मिला कर यह बिल्कुल स्पष्ट है कि मजबूत अर्थव्यवस्था के प्रमुख संकेतक नीचे जाने वाले हैं। आर्थिक हालात का असर आजीविका और जीवन पर पड़ेगा। यह ऐसी स्थिति है जिसे मैं और ज्यादा बड़ी आपदा कहूंगा, जिसका हमें 2021-22 में इंतजार है।