श्विक नेताओं के सबसे ज्यादा बहुप्रतीक्षित भाषणों में से एक अमेरिकी राष्ट्रपति का भाषण होता है, जो वे अमेरिकी कांग्रेस के समक्ष देते हैं और यह इसलिए महत्त्वपूर्ण होता है, क्योंकि अमेरिका की नीतियां दूसरे देशों को प्रभावित करती हैं। उसे बहुत उत्सुकता से नहीं देखा जाता, पर फिर भी उसमें दिलचस्पी काफी रहती है, वह भारत के स्वतंत्रता दिवस पंद्रह अगस्त को प्रधानमंत्री द्वारा दिया जाने वाला सालाना भाषण है। गणतंत्र दिवस की तरह स्वतंत्रता दिवस पर कोई रंगारंग आयोजन नहीं होता, लेकिन भाषण परेड से लेकर विमानों के करतब तक की भरपाई कर देता है।

लालकिले की प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस के संबोधन की महत्ता जवाहरलाल नेहरू के वक्त से रही है। मैं इसे राष्ट्र की स्थिति बताने वाला भाषण कहता हूं। यह नेहरू की एक परंपरा है, जिसे नरेंद्र मोदी ने खारिज नहीं किया है। हालांकि मोदी के मामले में अगर विपक्ष के बारे में कही गई बातों जैसे दीदी ओ दीदी… को छोड़ दिया जाए तो पंद्रह अगस्त को दिए गए उनके भाषण मामूली ही हैं, क्योंकि वे चुनावी रैलियों में दिए उनके भाषणों से कोई बहुत ज्यादा अलग नहीं हैं।

अब बात करते हैं मोदी के आठवें भाषण के सार की। यह मुख्य रूप से उनकी सरकार की ‘उपलब्धियों’ का ब्योरा ही था। दुखद तो यह है कि मीडिया में कुछ ने ही भाषण में किए गए दावों और घोषणाओं के तथ्यों की पड़ताल की होगी, जैसा कि अमेरिका में किया जाता है। प्रोफेसर राजीव गौडा के निर्देशन में नौजवानों की एक टीम ने यह काम किया है और इसके कुछ नतीजे मैं आपके साथ साझा करना चाहता हूं।

महामारी प्रेरित

भारत के लोग कोरोना महामारी से लड़े हैं। महामारी से लड़ने में हमारे सामने कई तरह की चुनौतियां थीं। हमने हर मोर्चे पर कामयाबी हासिल की। और हम पूरी तरह से आत्मनिर्भर बन चुके हैं… भारत में दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान चल रहा है।

मौतों के सरकारी आंकड़ों (चार लाख तैंतीस हजार छह सौ बाईस) के हिसाब से देखें तो दुनिया में भारत तीसरे स्थान पर है, लेकिन कई स्वतंत्र अध्ययनों ने सरकारी आंकड़ों का पर्दाफाश कर दिया है। विशेषज्ञों के बीच आमराय यह है कि मौतों का आंकड़ा कम से कम दस गुना ज्यादा होगा और तब इसका मतलब यह हुआ कि कोरोना से हुई मौतों के मामले में भारत सभी देशों में ऊपर है। दूसरी लहर के दौरान हमने चालीस से ज्यादा देशों से आक्सीजन सांद्रकों, जीवन रक्षक प्रणालियों, जांच किटों आदि के लिए मदद मांगी और ली। टीके के मामले में चुपचाप टीका मैत्री को खत्म कर दिया, निर्यात रोक दिया और रूस तथा अमेरिका से टीके मांगे। पहले मामले में देखें तो टीके में आत्मनिर्भरता के दावे को कोई जगह नहीं मिलती।

भला हो, सरकार ने स्पूतनिक टीके को मंजूरी दे दी और वैश्विक कंपनियों से टीके की आपूर्ति के लिए करार किए। टीकों की अपर्याप्त आपूर्ति की वजह से टीकाकरण अभियान बाधित हुआ है। जब मैं लिख रहा हूं कि भारत में चौवालीस करोड़ एक लाख दो हजार एक सौ उनहत्तर लोगों को पहली खुराक और बारह करोड़ तिरसठ लाख छियासी हजार दो सौ चौंसठ लोगों को दोनों खुराक लगी हैं, तो संपूर्ण वयस्क आबादी के दिसंबर 2021 के अंत तक पूर्ण टीकाकरण का लक्ष्य छोड़ दिया गया है।

भारत में अस्सी करोड़ से ज्यादा लोगों को अनाज दिया गया है, दुनिया भर में इसकी चर्चा हो रही है।

एक परिवार में औसत पांच सदस्य के हिसाब से भारत में करीब सत्ताईस करोड़ परिवार हैं। यदि पांच किलो प्रति व्यक्ति के हिसाब से अस्सी करोड़ लोगों को अनाज मिला है, तो भारतीय खाद्य निगम के भंडार से इतना अनाज निकला हुआ दिखना चाहिए। चावल और गेहूं की सालाना निकासी जो 2012-13 में छह करोड़ साठ लाख टन थी, वह 2018-19 में घट कर छह करोड़ बीस लाख और 2019-20 में और घट कर पांच करोड़ चालीस लाख टन पर आ गई। 2020-21 के महामारी वर्ष में यह बढ़ कर आठ करोड़ सत्तर लाख टन हो गई। इसका मतलब यह है कि सभी लक्षित लाभार्थियों को मुफ्त अनाज नहीं मिला। अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की ओर से कराए गए एक सर्वे में पता चला कि गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत पांच किलो अनाज योजना का पूरा लाभ सिर्फ सत्ताईस फीसद परिवारों को मिला। एक सौ सात देशों वाले वैश्विक भुखमरी सूचकांक में भारत का स्थान चौरानबेवां था।

‘सभी के लिए शौचालय’ जैसा लक्ष्य हासिल किया गया, हमें दूसरी सभी योजनाओं को सौ फीसद लोगों तक पहुंचाने की जरूरत है।

‘सभी के लिए शौचालय’ एक खोखला दावा है। हजारों ऐसे शौचालय हैं जो ‘बनाए’ गए, पर अस्तित्व में नहीं हैं या उन्हें सामान भरने में काम लिया जा रहा है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार पांच राज्यों में एक तिहाई से ज्यादा ग्रामीण आबादी के घरों में शौचालय नहीं हैं। 2018 में राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन द्वारा करवाए गए सर्वे में यह सामने आया था कि ग्रामीण परिवारों में 28.7 फीसद ऐसे हैं जिनके घरों में शौचालय नहीं हैं और बत्तीस फीसद लोग खुले में शौच जाते हैं।

आने वाले वर्षों में हमारे पास देश में कई आॅक्सीजन संयंत्र होंगे।

फैसला करने के आठ महीने बाद अक्तूबर 2020 में सरकारी अस्पतालों में पीएसए आॅक्सीजन संयंत्र लगाने के लिए बोली आमंत्रित की गई थी। 18 अप्रैल, 2021 को स्वास्थ्य मंत्रालय ने ट्वीट किया कि प्रस्तावित एक सौ तिरसठ आॅक्सीजन संयंत्रों (बाद में इनमें और जोड़े गए) में सिर्फ तैंतीस लगाए जा सके हैं। एक मीडिया संगठन स्क्रॉल ने पाया कि सिर्फ पांच आॅक्सीजन संयंत्र ही काम कर रहे थे।

आधुनिक बुनियादी ढांचे के लिए हमने सौ लाख करोड़ रुपए निवेश करने का फैसला किया है।

प्रधानमंत्री ने सोचा होगा कि किसी को भी याद नहीं होगा कि 15 अगस्त, 2019 और 15 अगस्त, 2020 को भी ठीक इसी जगह से उन्होंने यही घोषणा की थी। हमें खुश होना चाहिए कि बुनियादी ढांचा निवेश की योजना बढ़ रही है, सौ लाख करोड़ रुपए प्रतिवर्ष की दर से!
ऐसी घोषणाएं और भी हैं, लेकिन यह थकाऊ काम है। इसलिए मैं यहीं रुकूंगा।
तथ्य नीरस और उबाऊ हैं। फर्जीवाड़ा रोमांच पैदा करने वाला है। तथ्यों की जांच जोखिम भरा काम है। फर्जी माल बेचना सिहरन पैदा कर देने वाला है। अब आप ही तय कर सकते हैं कि आपके देश को महान क्या बनाएगा और क्या आपके दिन अच्छे बनाएगा।