जब भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता और उसके अन्य समर्थक ‘टुकड़े, टुकड़े गैंग’ को गालियां देते हैं तो उनका इशारा साफतौर पर जेएनयू के उन विद्यार्थियों की तरफ होता है, जिन्होंने इस नारे को पहली बार बुलंद किया था! तब वे छात्र शोक सभा मना रहे थे ऐसे बंदे की, जिसे संसद को उड़ाने की जिहादी साजिश में शामिल होने के लिए फांसी दी गई थी। इस शोक सभा में एक नारा था- ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशाअल्लाह-इंशाअल्लाह’! मैंने जब इस नारे का वीडियो देखा, जो उस समय वायरल हो गया था तो मेरे दिल में भी देशभक्ति जागी आक्रोश बन कर। सो, जब कन्हैया कुमार और उनके साथियों को गिरफ्तार किया गया देशद्रोह के लिए, तो सच पूछिए मुझे खास दुख नहीं हुआ। बावजूद इसके कि मेरा मानना है कि छात्रों को जेल भेजना बेवकूफी है।
उस समय स्मृति ईरानी मानव संसाधन विकास मंत्री थीं और उन्होंने लोकसभा में जोरदार भाषण दिया यह साबित करने के लिए कि इन छात्रों की जगह वास्तव में जेल में होनी चाहिए थी। पिछले हफ्ते स्मृति ईरानी ने रिपब्लिक टीवी के मुंबई स्थित सम्मेलन में एक बार फिर अपनी देशभक्ति को साबित करने की जोरदार कोशिश की, तमिल अभिनेता कमल हासन का मुकाबला करके। हासन साहब हौले से भारत की विभिन्नता की बातें कर रहे थे तो तालियां ज्यादा स्मृति ईरानी के लिए बजीं। लेकिन जब अर्णब गोस्वामी ने उनसे बुलंदशहर वाली घटना के बारे में पूछा तो स्मृति जी ने टालमटोल भरा जवाब दिया। सवाल अर्णब का स्पष्ट था। जिस तरह योगी आदित्यनाथ ने तथाकथित गोकशी को एक पुलिस अधिकारी की हत्या से ज्यादा अहमियत दी है, उस पर उनकी क्या राय है। जवाब देतीं भी क्या? वे कैसे कह सकती हैं अपने मुंह से कि भारत के टुकड़े-टुकड़े करने वाले गुट दो हैं। एक वे जो ‘टुकड़े टुकड़े’ करने के नारे लगाते हैं और दूसरे वे जो देशभक्ति या गौमाता की शरण लेकर ऐसा कर रहे हैं। चाहे कर रहे हों अनजाने में, लेकिन ये लोग ज्यादा खतरनाक हैं भारत के लिए। नारों से नहीं हो सकते हैं भारत के टुकड़े-टुकड़े। होंगे अगर तो हमारे राजनेताओं के कार्यों से। यहां याद करना जरूरी है कि पाकिस्तान उस समय नहीं बना था जब किसी ब्रिटिश विश्वविद्यालय के कुछ सिरफिरे मुसलिम छात्रों ने पाकिस्तान का नारा उठाया था। पाकिस्तान इसके बहुत बाद बना भारतीय राजनेताओं के कारनामों और नाकामियों के कारण। कुछ ऐसे राजनेता थे, जिन्होंने आंदोलन छेड़ा पाकिस्तान के निर्माण के लिए और कुछ ऐसे थे, जिन्हें समझ में नहीं आया कि भारत के टुकड़े होने को रोका कैसे जा सकता है।
आज भी टुकड़े अगर होंगे कभी (ईश्वर न करे) भविष्य में भारत के तो दोष राजनेताओं का होगा। खासतौर पर योगी आदित्यनाथ जैसे हिंदुत्ववादी राजनेताओं का, जिन्होंने स्पष्ट किया है हर तरह से कि उनकी नजरों में मुसलिम समुदाय का भला वे बिल्कुल नहीं चाहते हैं। सो, योगी जब से बने हैं मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश के, उन्होंने मुसलमानों को नुकसान पहुंचाने की पूरी कोशिश की है। मुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने ‘लव जिहाद’ को रोकने के बहाने थानों में ‘रोमियो स्क्वॉड’ बनाए जो चलते-फिरते लोगों को रोक कर पूछने लगे उनके मजहब के बारे में। जब भी उनको कोई हिंदू लड़की के साथ मुसलिम लड़का दिखता, उसको वे या तो पकड़ लेते थे या पीट कर भाग देते थे। ऐसा उन्होंने लोगों के घरों में घुस कर भी किया। पकड़े जाने वाले मर्द हमेशा मुसलिम ही थे। फिर योगी ने अवैध बूचड़खानों को बंद करने की मुहिम चलाई, जिससे जायज कारोबार भी बंद हुए और बेरोजगार हुए ज्यादातर मुसलमान या दलित, जो इस कारोबार के भरोसे जीते हैं। इसके बाद अब चल पड़ी है गोकशी को रोकने की मुहिम।
बुलंदशहर में हिंसक गोरक्षकों की भीड़ ने एक हिंदू पुलिस अफसर को जान से मार डाला। मगर जब मुख्यमंत्री ने कार्रवाई शुरू की तो उनका पहला सवाल गोकशी को लेकर था! अभी तक बजरंग दल के वे लोग, जिन्होंने इस हिंसक भीड़ का नेतृत्व किया था, लापता हैं। पकड़े गए हैं सिर्फ कुछ मुसलमान जिन पर गौहत्या का आरोप लगा कर उत्तर प्रदेश सरकार ने कानूनी कार्रवाई शुरू कर दी है। कहने का मतलब है कि योगी के निशाने पर रहते हैं सिर्फ मुसलमान। अकेले योगी होते इस तरह के राजनेता तो शायद कोई बात नहीं होती। लेकिन जबसे नरेंद्र मोदी की सरकार बनी है, तब से भारतीय जनता पार्टी में से कई हिंदू कट्टरपंथियों की आवाजें सुनने को मिली हैं। पिछले हफ्ते केंद्रीय गृह मंत्री ने अपनी पीठ थपथपाते हुए कहा कि सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं बहुत कम हो गई हैं अब। शायद! लेकिन मंत्री जी क्या आपने देखा है कैसा खौफ का माहौल बन गया है देश में मुसलमानों के लिए? कई केंद्रीय मंत्री ऐसे हैं जिन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा है मुसलमानों को कि उनको भारत माता के नारे पसंद नहीं हैं तो उनकी जगह पाकिस्तान में है। क्या ऐसे लोग नहीं जानते हैं कि मुसलमानों की आबादी भारत में बीस करोड़ से ज्यादा है? क्या वे नहीं जानते कि इतनी बड़ी आबादी को अगर भारत छोड़ कर जाने पर मजबूर किया जाता है तो अपने साथ लेकर जाएंगे भारत के कुछ टुकड़े? सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि क्या प्रधानमंत्री के कानों तक अभी तक नहीं पहुंची हैं उनके मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों की आवाजें? क्या उनको दिख नहीं रहा है कि ऐसी आवाजें उनके उस सिद्धांत के खिलाफ हैं जो उन्होंने 2014 में आश्वासन दिया था कि वह उनके शासनकाल का बुनियादी सिद्धांत होगा- सबका साथ, सबका विकास? आपकी जिम्मेदारी है प्रधानमंत्री अपने उन समर्थकों को रोकने की जो भारत के वास्तव में टुकड़े-टुकड़े कर सकते हैं।