इत्तेफाक था कि श्रीशती का भारत का मजाक उड़ाना कि जिस हफ्ते चीन ने चांद पर अपना जहाज उतार कर साबित किया कि अंतरिक्ष की दौड़ में वह हमसे बहुत आगे है, अपने देश में चल रहा था भारतीय विज्ञान सम्मेलन। श्रीशती का मजाक इसलिए कहती हूं, क्योंकि इस सम्मेलन में आंध्र विश्वविद्यालय के कुलपति ने कुछ ऐसी बातें कहीं, जो साबित करती हैं कि हम विज्ञान के क्षेत्र में पीछे इसलिए हैं, क्योंकि हमारे विद्वान किसी प्राचीन युग में अभी तक जी रहे हैं। कुलपति साहब ने विज्ञान में भारत की उपलब्धियां गिनाते हुए कहा कि हम युगों पहले जानते थे टेस्ट ट्यूब बच्चों को पैदा करने का ज्ञान। सबूत? गांधारी ने सौ बेटे पैदा किए मिट्टी के कटोरों में। यह टेस्ट ट्यूब तकनीक नहीं थी तो क्या था? कुलपति नागेश्वर राव ने आगे यह भी कहा कि विष्णु के दस अवतार साबित करते हैं कि मानव जाति के विकास के राज भी हम युगों पहले जानते थे।

नरेंद्र मोदी के राज में दो शब्द हैं, जिनके मायनों में परिवर्तन आया है, और शायद विकास भी। एक है विज्ञान और दूसरा इतिहास। विज्ञान में परिवर्तन शुरू किया प्रधानमंत्री ने खुद, जब उन्होंने कहा था मुंबई के एक अस्पताल के उद्घाटन समारोह में कि गणेश भगवान सबूत हैं कि प्लास्टिक सर्जरी की जानकारी प्राचीन भारत की देन है। वरना शिव कैसे लगा सकते थे अपने बेटे पर हाथी का सर? अफसोस कि उन्होंने सुश्रुत को याद नहीं किया ऐसी बात कहते हुए, क्योंकि सच तो यह है कि प्लास्टिक सर्जरी में जो नाक बदलने का तरीका आज दुनिया भर में प्रचलित है उसको सुश्रुत की इजाद माना जाता है। सुश्रुत की मूर्तियां विश्व के प्रसिद्ध मेडिकल कॉलेजों में दिखती हैं, लेकिन भारत के अधिकतर बच्चे इनका नाम तक नहीं जानते हैं, जैसे प्राचीन गणितज्ञों के नाम नहीं जानते हैं। इनके नाम भुला दिए गए हैं ‘सेक्युलरिज्म’ का वास्ता देकर, ताकि भारत के मुसलमानों को न लगे कि प्राचीन भारत की प्रशंसा करने में छिपी है इस्लाम को नीचा दिखाने की साजिश।

इन दिनों जब मोदी के सितारों की रोशनी थोड़ी कम हो गई है, मेरे ऊपर खूब तंज कसा जा रहा है सोशल मीडिया पर कि मैंने मोदी को समर्थन देकर बहुत बड़ी भूल की थी। हर लिंचिंग के बाद कोई न कोई ट्वीट करके मुझे याद दिलाता है कि इन बेगुनाहों का खून मेरे हाथों पर भी है। क्यों किया आपने मोदी का समर्थन? बताती हूं क्यों। जब उन्होंने परिवर्तन का वादा किया था पिछले आम चुनावों में तो मुझे विश्वास था कि राजनीतिक, प्रशासनिक और आर्थिक परिवर्तन के अलावा मोदी जरूर शिक्षा क्षेत्र में भी परिवर्तन लाएंगे, ताकि भारत के बच्चों को सिखाया जाएगा भारतीय होने का मतलब। भारतीय होने का गर्व कैसे सीखेंगे जब तक उनको प्राचीन भारत की महान देन के बारे में नहीं सिखाया जाएगा? सो, शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन लाना बहुत जरूरी था, जो अभी तक नहीं हुआ है। उलटा एक अजीब किस्म के हिंदू सामने आए हैं, जिनको भारतीय होने पर इतनी शर्मिंदिगी है कि इस शर्मिंदगी को छिपाने के लिए प्राचीन भारत से वे चीजें ढूंढ़ निकालते हैं, जो न इतिहास से वास्ता रखती हैं न विज्ञान से, लेकिन इनको वे उछालते फिरते हैं जैसे यही थीं प्राचीन भारत की उपलब्धियां। ऐसा करके असली उपलब्धियों को भी मिथ्या साबित करने का काम करते हैं।आंध्र विश्वविद्यालय के कुलपति अकेले नहीं हैं इस कोशिश में। उनका साथ दिया है मोदी के कई मंत्रियों, साथियों और समर्थकों ने। एक मंत्री वे थे, जिन्होंने कहा था कि इंटरनेट प्राचीन भारत में हुआ करता था। सबूत? धृतराष्ट्र ने इसके द्वारा कुरुक्षेत्र का पूरा युद्ध अपने महल में बैठ कर देखा। इंटरनेट नहीं था यह तो क्या था? कौन समझाए ऐसे लोगों को कि दुनिया के हर देश में हैं पुरानी गाथाएं, जिनमें देवताओं द्वारा ऐसे कार्यों का वर्णन है, जिनको सुन कर ऐसा लगता है कि वास्तव में एक युग था जब लोग सूर्य तक पहुंच सकते थे और अंतरिक्ष का परिवर्तन कर सकते थे। इनको मिथ्या गाथाएं माना जाता है, इतिहास नहीं।

हमने कभी इतिहास को मिथ्या गाथाओं से अलग करने की कोशिश नहीं की है, सो इतना भी ज्ञान नहीं है आम भारतवासी को कि भगवान राम देवता थे या केवल अयोध्या के एक महान राजा। न ही हम पूरी तरह साबित कर पाए हैं कि कुरुक्षेत्र में असली युद्ध हुआ था कभी या महाभारत भी सिर्फ किसी ऋषि की काल्पनिक गाथा है। मोदी पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं, जो इतिहास की वास्तविकता ढूंढ़ने का काम कर सकते थे, क्योंकि उनके पैरों में नहीं लगी थीं ‘सेक्युलरिज्म’ की बेड़ियां। अफसोस कि उन्होंने इस क्षेत्र में परिवर्तन लाने के बदले अपने उन साथियों को नहीं रोका है, जो प्राचीन भारत के बारे में बकवास करते फिरते हैं। कोई आम आदमी ने दिया होता वह बयान, जो भारतीय विज्ञान सम्मेलन में आंध्र विश्वविद्यालय के कुलपति ने दिया था, तो उसको क्षमा किया जा सकता था अज्ञान का वास्ता देकर। लेकिन जब देश के सबसे बड़े वैज्ञानिकों के बीच इस तरह की बातें एक विद्वान करता है, तो उसको ज्ञान और विद्या जैसे शब्दों के इस्तेमाल का भी अधिकार नहीं होना चाहिए। आज भी अगर भारत के बहुत बड़े विश्वविद्यालय को संभाले हुए हैं, तो चिंता होनी चाहिए हमको कि यहां के छात्रों को क्या पढ़ाया जा रहा है। प्राचीन भारत ने विश्व को बहुत कुछ दिया है कई क्षेत्रों में। इस महान विरासत का विश्लेषण करना बहुत जरूरी है, ताकि इतिहास और मिथ्या गाथाओं में अंतर समझ में आए। अतीत को समझने के बाद ही कोई देश गर्व से आगे बढ़ सकता है, रोशन भविष्य की तरफ।