जैसे चैनल वैसे नायक नायिका, खलनायक खलनायिका! आप अपने नायक खलनायक आराम से चुन सकते हैं और फिर भी भ्रमित हो सकते हैं कि जिसे आप अब तक नायक मान रहे थे वह तो पक्का ‘नशेबाज’ निकला और जिसे ‘निरपराध’ माने थे, वह ‘नशे का सप्लायर’ ही नहीं, नशे का कारोबारी निकला।
लेकिन इस पर भी यकीन नहीं होने वाला, क्योंकि अब तक किसी को पता नहीं कि जिसे नशेबाज बताया गया वह ‘नशेबाज’ था या कि मनोव्याधि का मारा ‘बाइपोलर’ था, जो नशे की दवाइयां लेता था?
फिर एक दिन कोई बताने लगेगा कि जो मरा उसे नशे का आदी बना कर मौत तक पहुंचाया गया यानी ‘अबेटमेंट आॅफ सुसाइड इक्वल टू होमीसाइड’ यानी आत्महत्या को उकसाना और इस तरह ‘हत्या करना’ हुआ!
एक दिन उस भाई की तीन बहनें भी जांच के सीन में रहीं, लेकिन फिर अंत में कहानी ‘नशे के कारटेल’ की ओर मुड़ गई या कहें मोड़ दी गई!
नशे की कहानी में नए-नए खलनायक नजर आने लगे। गौरव आर्या, सैमुअल मिरांडा, बासीत, जैद, कैजान, करन, अब्बास, ये, वो… फिर डॉक्टरों के नुस्खे और दवाओं के नाम! चैनलों में ‘ड्रगों’ की पूरी दुकान ही खुल गई!
कहां से चली कहानी कहां पहुंची और आगे कहां पहुंचेगी, कोई नहीं जानता! इस बीच कई वकीलों की बन आई। कई मनोचिकित्सकों के भाव बढ़ गए!
आखिर में एक वकील साहब असली बात बोल ही दिए कि अब इससे फर्क नहीं पड़ता कि रिया अपराधी है कि नहीं, अब तो नशे के संजाल की जांच करनी है। हत्या की कहानी नशे में छिपी है।
दर्शक भी क्या करे? एक चैनल देखो तो रिया के प्रति हमदर्दी उमड़ती है कि बुरी फंसी बेचारी, लेकिन उसके भाई और पिता को देख कर लगता है कि यहां तो सारे कुएं में ही भांग पड़ी है।
‘प्रो रिया’ जैसा दिखता एक चैनल, सैंतीस मिनट का एक आडियो टेप सुनाता है, जिसमें रिया सुशांत की ‘परम हितू’ नजर आती है, लेकिन एंकर जल्दी ही अपने को टेप से दूर कर लेता है कि हम इसकी प्रामाणिकता की शिनाख्त नहीं कर सकते!
तब दिखाए क्यों भइए?
एक दिन एक चैनल रोता है कि ये देखो, रिया ने हमको कुहनी मारी, लेकिन लगी कार को! देखा! उसका ‘अपराध’ बोल रहा है!
एक दिन एक चैनल प्रसन्न दिखा कि देखो देखो जांच के दौरान आज रिया आक्रामक हो उठी। उसके लिए लेडी पुलिस बुलानी पड़ी! ऐसी रिपोर्टों में एक ‘सेक्सिस्ट किस्म का सब-टेक्स्ट’ भी निहित महसूस होता है।
इन दिनों सबसे सनसनीखेज खबरें एक हीरोइन जी बनाती हैं। सप्ताह में कम से कम एक बार वे अपने प्रिय चैनल पर आती हैं और बॉलीवुड के एक ‘लिस्टर्स’ को नाम ले-लेकर केस चलाती हैं। अचानक विनय की प्रतिमूर्ति बना एंकर हीरोइन जी से जिज्ञासु भाव से पूछता रहता है कि अच्छा, आप एक बार फिर से हमारे दर्शकों को बताइए और हीरोइन जी फिर फ्री स्टाइल तरीके से जिस तिस को ‘अपराधी’ बताती हुई अपने को ‘चिर विक्टिम’ की तरह पेश करने लगती हैं!
में तो वे ऐसी विशेष जांच सलाहकार की तरह नजर आती हैं, जो हर बार महसूस कराती है कि बालीवुड का असली सच सिर्फ उनके पास है और जांच एजंसिया बेकार की यहां वहां टहल रही हैं!
एक दिन उन्होंने पीएम को ही ट्वीट कर सलाह दे डाली कि बालीवुड के इन इन इन इन हीरो का तुरंत ब्लड टेस्ट कराइए, आपको मालूम हो जाएगा कि इनकी रगों में खून बहता है कि ड्रग बहती है… फिर एक ट्वीट मार दिया कि ‘मुंबई फील्स लाइक पीओके’ यानी मुंबई उनको पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की तरह महसूस होती है!
उनके ऐसे क्रांतिकारी बयानों को सुन कर सारे पैनलिस्ट देवता बन कर कोरस गाने लगते हैं कि ये बी टाउन नहीं ‘ड्रग टाउन’ है। नशे के इस परनाले में सब नाक तक डूबे हैं!
एक एंकर लाइन देता है ‘क्रश बी टाउन ड्रग कारटेल’! फिर लाइन देता है कि इस कारटेल का ‘आतंकवाद’ से, आतंकवाद का ‘आइएसआइएस’ से और पाकिस्तान से कनेक्शन है। इस तरह यह नशा देश की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा है! लेकिन बहस के अंत में एक ‘डिसक्लेमर’ लगा कर अपनी पूंछ दिखाने लगता है! एक पल में ‘परम न्यायवादी’, फिर अगले पल में ‘विक्टिम’, फिर दहाड़ना कि वह सरकार और उसकी पुलिस चाहे कुछ कर ले, हम डरने वाले नहीं हैं!
हाय! क्या अदा है? पहले पूंछ फिर मूंछ!
सुशांत की मौत के सत्य को लेकर ऐसे घमासान में एलएसी पर चीन के साथ अपनी फौजों की ‘नई मुठभेड़’ हो, या कोरोनाकालीन पूर्णबंदी के दौरान जीडीपी का चौबीस फीसद डूबने की खबरें, क्या कोई बिकने लायक खबरें हैं? सुशांत कथा के सामने तो ‘पीएम को मारने की धमकी देने वाला पत्र’ तक सिर्फ एक एंकर की ‘चिंता का विषय’ होता है। बाकी के लिए सिर्फ सुशांत की कहानी ही दिहाड़ी जुटाने वाली है!
सुशांत की अशांत कथा के शुक्रवारी कवरेज ने हमें गहरी चिंता में डाल दिया। सीन में ‘नारकोटिक्स ब्यूरो’ शोविक-रिया के घर छापेमारी कर रहा था और हांफता हुआ एक रिपोर्टर शीशाबंद कार में बैठे शोविक से बाहर से चिल्ला-चिल्ला कर कम से कम दस बार पूछता रहा कि शोविक क्या तुम ड्रग लेते हो? क्या उससे लेते हो?
अपने ‘पीछे पड़ाऊ’ रिपोर्टर शायद नहीं जानते कि कानून आरोपी को खामोश रहने का भी हक देता है! ऐसे पीछे पड़ने पर आदमी चिढ़ भी सकता है और ऐसे में अगर वह कुछ कर दे तो फिर ये रोने लगते हैं कि देखा, उसने हमारी आजादी पर हमला किया!
