मीडिया में होते हुए कोई डोनल्ड ट्रंप की तारीफ करता है, तो उसको अहमक माना जाता है, क्योंकि मीडिया के साथ अमेरिकी राष्ट्रपति के रिश्ते इतने खराब हो चुके हैं। यह जानते हुए मैं उनकी तारीफ करके इस लेख को शुरू करना चाहंूगी, क्योंकि उन्होंने वार्सा में पिछले हफ्ते एक ऐसी बात कही, जो भारत के लिए बहुत अहमियत रखती है। वे संबोधित कर रहे थे विकसित पश्चिमी देशों को यह कहते हुए कि पश्चिमी देशों को अपने सिद्धांतों, अपनी संस्कृति और अपनी सभ्यता को सुरक्षित रखने की हिम्मत दिखानी होगी, उन लोगों से जो पश्चिमी सभ्यता का सर्वनाश करना चाहते हैं। उनका स्पष्ट इशारा जिहादी इस्लाम की तरफ था। जिहादी इस्लाम का खतरा पश्चिमी देशों को कितना है, बार-बार साबित किया है जिहादी आतंकवादियों ने। भारत में जिहादी आतंकवाद की घटनाएं शायद उतनी ही हुई हैं, जितनी अमेरिका और यूरोप में, लेकिन हमारे राजनेता कुछ भी कहने से कतराते हैं, क्योंकि अपने मुसलमानों की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाना चाहते। सो, इतना भी खुल कर कहने से डरते हैं कि भारतीय सभ्यता के बुनियादी सिद्धांत जिहादी इस्लाम के बिल्कुल विपरीत हैं। पिछले हफ्ते दलाई लामा ने एक विदेशी अखबार में इन सिद्धांतों का इन शब्दों में वर्णन किया। ‘भारत, जहां मैं आज रहता हूं, एक ऐसा देश है, जहां सेक्युलरिजम, विविधता और सहनशीलता कम से कम तीन हजार वर्षों से कायम है। यह ऐसा देश है, जहां वे लोग भी ऋषि कहलाते हैं, जो न धर्म को मानते हैं, न ईश्वर को।’

जिहादी इस्लाम का आधुनिक रूप दिखता है आइएसआइएस की विचारधारा में। इस सोच के मुताबिक दुनिया में उनको जीने का भी हक नहीं है, जो इस्लाम को नहीं मानते। इराक और शाम के बीच जो उनकी खिलाफत बनी है, वहां काफिरों को सरेआम गला काट कर मार दिया जाता था, गैरमुसलिम औरतों को गुलाम बना दिया और गैरमुसलिम बच्चों को जबर्दस्ती कलमा पढ़ाया जाता था। भारत के पच्चीस हजार मुसलमान अभी तक इस जिहादी सोच से दूर रहे हैं, लेकिन कश्मीर घाटी और पश्चिम बंगाल के कुछ जिलों में इस जिहादी सोच की झलक दिखने लगी है। कश्मीर घाटी कभी ऐसी जगह थी, जहां भारतीय असर ने इस्लाम को उदारवादी बना दिया था, इतना कि महिलाओं को इजाजत थी मस्जिदों में नमाज पढ़ने की। कश्मीरी मुसलमान और पंडितों के नामों, भाषा और रहन-सहन में फर्क ढूंढ़ना मुश्किल हुआ करता था। मैंने पिछले बीस वर्षों में अपनी आंखों के सामने कश्मीर को बदलते देखा है। शुरुआत तब हुई थी, जब पंडितों के खिलाफ ऐसी नफरत भरी मुहिम छेड़ी अलगाववादी संस्थाओं ने कि लाखों पंडित एक रात में ही पलायन कर गए थे 1990 में अपने घरबार, जमीन-जायदाद छोड़ कर।

उनके जाने के बाद धीरे-धीरे घाटी का इस्लामीकरण शुरू हुआ। शराब की दुकानें तोड़ दी गर्इं, सिनेमा बंद कर दिए गए, वीडियो की दुकानें जला दी गर्इं और औरतों के लिए हिजाब पहनना जरूरी कर दिया गया। अब हाल यह है कि जिन तन्जीमों ने आजादी का नारा देकर अपना आंदोलन शुरू किया था 1989 के अंतिम दिनों में, वे गायब हो गई हैं और उनकी जगह ले ली है ऐसी संस्थाओं ने, जो स्पष्ट शब्दों में कहती हैं कि उनकी लड़ाई अल्लाह के नाम पर है, कश्मीर में शरीअत नाफिस करने के लिए है। कश्मीर के तथाकथित उदारवादी राजनेता इन बातों को सुनते हुए भी कहते फिरते हैं कि घाटी में समस्या राजनीतिक है, मजहबी नहीं है। ऐसा कह कर क्या अपने आप को और देश को धोखा नहीं दे रहे हैं?

कुछ ऐसा ही धोखा क्या ममता बनर्जी नहीं दे रही हैं, जब वे मौलवियों के साथ बैठ कर इस्लामी अंदाज में सिर ढक कर नमाज पढ़ती दिखती हैं? क्या ऐसा करके संदेश नहीं भेज रही हैं बंगाली मुसलमानों को कि वे कुछ भी कर लें, उनको मुख्यमंत्री का समर्थन होगा? सो, बशीरहाट में किसी बच्चे ने फेसबुक पर कुछ डाल दिया, जिसको रसूल की तौहीन माना गया और अराजकता फैल गई उन जिलों में, जो बांग्लादेश की सीमा से लगे हैं और जहां ज्यादातर आबादी मुसलमानों की है। जब सवाल उठाए अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं ने, तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बिगड़ कर कहने लगीं कि उनको बदनाम किया जा रहा है। उनके साथी डेरेक ओब्रायन ने राज्यपाल पर हमला बोल दिया यह कहते हुए कि राजभवन को उन्होंने संघ की शाखा में तब्दील कर दिया है और खुद वे शाखा प्रमुख का काम कर रहे हैं। इस तरह के वक्तव्य साबित करते हैं कि हमारे राजनेता अभी तक समझ नहीं पाए हैं कि जिहादी इस्लाम की समस्या कितनी गंभीर है। न ही समझ पाए हैं कि भारत को अगर जिहादी इस्लाम से सुरक्षित रखना है, तो इस लड़ाई में हर नागरिक को भारतीय बन कर लड़ना होगा, उस सोच के खिलाफ, जो आज के दौर की सबसे बड़ी अंतरराष्ट्रीय समस्या मानी जाती है।

इस युद्ध में एक तरफ हैं वे देश, जो मानते हैं कि हर धर्म और हर सोच को बराबर का अधिकार है और दूसरी तरफ हैं वे इस्लामी देश, जो जिहादी इस्लाम का समर्थन करते और मानते हैं कि जो इस्लाम को नहीं कबूल करते, वे काफिर हैं। भारत में ऐसी सोच अगर फैलनी शुरू होती है, तो वह दिन दूर नहीं, जब जगह-जगह छोटी-छोटी खिलाफत दिखने लगेंगी। आज भी केरल और तमिलनाडु के कुछ क्षेत्रों में जिहादी इस्लाम के आसार दिखते हैं। आज भी राजस्थान के नागौर जिले में कुछ ऐसे गांव हैं, जहां दाखिल होते ही लगता है जैसे किसी इस्लामी देश में पहुंच गए हैं। समस्या दिन-ब-दिन गंभीर होती जा रही है।