कोई कहानी आपको कैसे प्रभावित करती है। कैसे लगता है कि जो कुछ कहा जा रहा है वह शायद हमारे भीतर घटित हो रहा है। जैसे कहानियों के पात्र आपके जीवन के आसपास से चुने गए हों। मुझे गीताश्री की कहानियां वैसी ही लगती हैं, अगर आज के समय में ऐसे लेखकों की सूची बनाई जाए जिनकी कहानियों में हमारी दुनिया नजर आती है, जिसमें हम हिस्सेदार हैं, जो अपनी निपट मानवीयता में बिल्कुल हमारी लगती है, उसमें गीताश्री का नाम जरूर आता है। आप कहानी के बाहर एक किनारे पर खड़े होकर उसकी हरारत महसूस कर सकते हैं।
इतने सालों में मैंने उन्हें काम करते हुए देखा है, उनको टुकड़े-टुकड़े में जाना है। उनकी कहानियों पर लिखते हुए लगा जैसे सभी टुकड़े संपूर्ण कला अनुभव में ढल गए हों। उनकी कहानियों का नया संकलन स्वप्न, साजिश और स्त्री में आज की तल्ख हकीकतों और त्रासदी का बयान है, जिसमें जिंदगी के सारे रंग मिलेंगे। सच को बिना किसी मिलावट के कहने की कला गीता जानती हैं। यह हिम्मत और हिमाकत निश्चय ही जोखिम भरा है। कबीर की तरह, लुकाठी लिए वे बाजार में खड़ी हैं।
इस संकलन में कुल बारह कहानियां हैं। ‘भूतखेली’ कहानी हो, ‘डायरी, आकाश और चिड़िया’, ‘कहां तक भागोगी’ या फिर ‘माई री मैं टोना करिहों’, तमाम कहानियां अलग-अलग मिजाज की हैं। गीता की कहानियां उन जगहों को छूती हैं, जहां निपट अंधेरा है। उनकी कहानियां सतह के नीचे झांकने की कोशिश करती हैं। ‘डायरी, आकाश और चिड़िया’ इस नए समय की कथा है। रिश्तों का खोखलापन और बदलते दौर में युवा पीढ़ी के प्रति समाज और परिवार के नजरिए पर बड़ी बारीक नजर है गीता की। कहानी जहां खत्म होती है वहीं से एक नए अध्याय की शुरुआत होती है।… हिमानी ने रागनी से कहा, पहले डॉक्टर के पास चलें। रोली ने रागनी मौसी को देखा, वह ड्राइव कर रही थी। चेहरे पर अांधी-तूफान के चिह्न मौजूद थे और पेशानी पर चिंता की लकीरें दूर तक खिंची हुई। बदहवास रोली ने मां को देखा, उसे लगा मां की आंखें एक्सरे मशीन में बदल चुकी हैं।
गीता की कहानियां अपने समय के सच को व्यक्त करती हैं। वे दूर खड़ी वारदात की सिर्फ गवाह नहीं, बल्कि जीवन की आंच और ताप में झुलस कर लिखती हैं। इसलिए उनकी कहानी में जीवन के सिर्फ सफेद और स्याह रंग नहीं दिखते, बल्कि धूसर रंग भी शामिल हैं। ‘भूत खेली’ कहानी में सूक्ष्म मानवीय संवेदनाओं की सहज अभिव्यक्ति है।
दुलारी बाबू गांव में रहते हैं। पुरखों की जमीन पर उनका एकाधिकार है। वर्षों बाद बड़े भैया आए। पर उनके आने की सारी खुशी छिन गई जब पता चला कि बड़े भैया अपने हिस्से की जमीन बेच कर चले जाएंगे। अचानक दुलारी बाबू की पत्नी, खटरी देवी पर वर्षों पहले मर गई दीदीया का भूत आता है। ‘खटरी देवी के कंठ में यह किसकी आवाज है। खिलाड़ी बाबू भौंचक्के। ‘दीदीया’, वे भरभरा कर गिर गए जमीन पर। खटरी देवी आसन मार कर जमीन पर बैठ गई थीं, आंखें चढ़ी हुर्इं, सिर से आंचल ढुलका हुआ, अंगुलियां टेढ़ी-मेढ़ी, बाल छितराए हुए। उनके आसपास से लोग डर कर छिटक चुके थे। सबकी नजरें मिलीं और सब एक स्वर में चीखे- ‘बाप रे दीदीया आई है, भाई जी के परेम में।’
‘भूतखेली’ कहानी हमारे ग्रामीण परिवेश की कथा है, जहां रिश्तों में संपत्ति को लेकर प्रपंच रचे जाते हैं, पर अंत में प्रेम जीतता है। इस कहानी में सूक्ष्म मानवीय संवेदनाओं की सहज अभिव्यक्ति है। गीता की कहानियों में बदलते समाज, बदलते मूल्य और स्त्री के जीवन के ढेर सारे प्रसंग हैं। इस संग्रह की कहानियां उनकी दूसरी सारी कहानियों से अलग हैं। कहानियां पढ़ते हुए हम पाते हैं कि गीता का जीवन को देखने का नजरिया ज्यादा परिपक्व हुआ है। ये कहानियां देह के बाहर एक नए आकाश को रचती हैं। कहानी पढ़ते हुए लगता है जैसे हमारे हाथ जिंदगी की जुराब के धागे लगे हों। आप एक सिरे को पकड़ें तो वह उधड़ता चला जाएगा। फ़ैज़ की नज्म की तरह: ‘कभी कभी याद उभरते हैं नक्श-ए-माजी मिटे-मिटे से वो आजमाइश दिल-ओ नजर की, वो कुरबतें सी वो फासले से।’
गीता की कहानियां ऐसी ही हैं। कभी एक रंग आता है, एक शक्ल बनती है और टूट जाती हैं। रंग-रेखाओं के आरपार ये पात्र न हिंदू हैं न मुसलमान। ‘कहां तक भागोगी’ कहानी ऐसी ही स्त्री की कहानी है। सच तो यह है कि स्त्री की कोई जाति और धर्म नहीं होता। यह कहानी पढ़ते हुए उशांडा इयो एलिमा की कविता याद आती है: ‘एक औरत हूं मैं/ जिसका नहीं है कोई देश/ सिवा पृथ्वी के और परे उसके/ मेरी कोई नहीं नस्ल/ सिवा जीवन के अंसख्य रूपों के/ कोई समुदाय नहीं मेरा/ सिवा जिंदगी के प्यार करने वालों के।’
‘लकीरें’, ‘बदन देवी की मेंहदी का मन डोला’, ‘आवाजों के पीछे-पीछे’, ‘सुरताली के इंद्रधनुषी सपने’ जैसी कहानियां खमोशी से सुलग रही हैं। आज के पाठक गीताश्री की कहानियों में सीधे उतरते हैं, बिना किसी आलोचक की दखलंदाजी के। गीता के कथा-अनुभव जैसे खुद उसके लिए, वैसे पाठकों के लिए हैं। उसकी रचना का चेहरा निहायत व्यक्तिगत है, लेकिन उसमें झांकिए तो अपना और वक्त का चेहरा झांकने लगता है। उनकी बात बड़ी वाजेह होती है और सुर्खी बन जाती है। उनकी कहानियां हमारे साथ हैं, उजालों और अंधेरों में, बीच की अनगिनत झिलमिलों, गोधूलि में हमारा सहचर है। सौभाग्य से उनके पास कोई मशाल नहीं है, जिसकी रोशनी में हम आश्वस्त होकर आगे बढ़ सकें। उनके पास तो लौ है, आत्मीय और गरमाहट-भरी, जिससे हम चाहे अपनी छोटी मोमबत्ती या नन्हा-सा दिया जला सकते हैं।
निवेदिता
स्वप्न, साजिश और स्त्री: गीताश्री, सामायिक बुक्स, 3320-21, जटवाडा, दरियागंज, नेताजी सुभाष मार्ग, नई दिल्ली; 300 रुपए।
पुस्तकायनः आत्मीय लौ के साथ
कोई कहानी आपको कैसे प्रभावित करती है। कैसे लगता है कि जो कुछ कहा जा रहा है वह शायद हमारे भीतर घटित हो रहा है। जैसे कहानियों के पात्र आपके जीवन के आसपास से चुने गए हों।
Written by जनसत्ता

Jansatta.com पर पढ़े ताज़ा रविवारीय स्तम्भ समाचार (Sundaycolumn News), लेटेस्ट हिंदी समाचार (Hindi News), बॉलीवुड, खेल, क्रिकेट, राजनीति, धर्म और शिक्षा से जुड़ी हर ख़बर। समय पर अपडेट और हिंदी ब्रेकिंग न्यूज़ के लिए जनसत्ता की हिंदी समाचार ऐप डाउनलोड करके अपने समाचार अनुभव को बेहतर बनाएं ।
First published on: 31-01-2016 at 02:59 IST