ब, लगता है पुस्तक मेला जा रहे हैं आप?
हां, हमने कहा, पर तुम्हें कैसे मालूम?
अरे साब, बस पहचान लिया। वैसे आपके हाथ में किताब भी तो है। चलिए बैठ जाइए, हम भी वहीं जा रहे हैं।
हम आॅटो में बैठ गए। तुम नोएडा से दिल्ली वाले रूट पर चलते हो क्या?
नहीं साब, नोएडा में ही ज्यादातर गाड़ी चलाते हैं, पर आज पुस्तक मेला जाने को ही निकले थे।
कवि हो, या लेखक?
सिर्फ आॅटो वाले हैं। बच्चे के लिए एक किताब देखने जा रहे हैं। सुना है मेले में पढ़ाई की किताबें कुछ सस्ती मिल रही हैं, सो सोचा चल कर ले आएं। और देखिए तो, घर से निकलते ही आप मिल गए। आज आॅड दिन न होता तो आप अपनी कार से जाते। हमको फिर कहां मिलते?
ठीक कहा तुमने। आॅड-इवन ने हमें सड़क पर ला दिया, हमने मजाक किया।
अच्छा हुआ न साब। केजरीवाल को थैंक यू कहिए। सालों बाद आप किसी आॅटो वाले से बात कर रहे होंगे।
हम हंसे। नहीं भई, ऐसा नहीं है। हम…
अरे साब, रहने दीजिए। हम कोई शिकायत नहीं कर रहे, पर आपको मानना पड़ेगा कि केजरीवाल ने किया ठीक। अब देखिए, ट्रैफिक कितना कम हो गया है। पिछले पांच मिनट में हमने एक बार भी ब्रेक नहीं लगाया, वरना ब्रेक और गेअर पर ही लगे रहते थे।
हां, ट्रैफिक तो कम हुआ है, पर पॉल्यूशन कितना कम हुआ है, मालूम नहीं।
साब, माफ करना, पर पढ़े-लिखों की यही प्रॉब्लम है। जो है उसको देखते नहीं हैं और अगर देख भी लेते हैं तो अगर-मगर में लग जाते हैं। कभी पूरा सपोर्ट नहीं करते।
तुम करते हो?
हां। मोदी को प्रधानमंत्री बनवाया और केजरीवाल को मुख्यमंत्री। अपने यूपी में अखिलेश भैया को पूरा सपोर्ट किया। कोई हील-हुज्जत नहीं की। बिहार भी देख लो। जो है सो है। ट्रैफिक कम हुआ है तो फायदा ही हुआ न? क्यों हम बीच में पॉल्यूशन घुसेड़ें? हुए की बात करें, बाकी आगे हो जाएगा।
हम फिर हंसे। तुम ठीक कह रहे हो। लगता है पूरे केजरीवाल सपोर्टर हो?
हां सर हैं। और मोदी के भी और अखिलेश भैया के भी थे।
मोदी से खुश हो?
नहीं साब। मोदी ठीक हैं, पर केजरीवाल जितने नहीं।
क्यों?
साब, उनको देश चलाने के लिए लाया गया था। ठीक से देश चलाने के लिए। पर वे पता नहीं कहां-कहां घुस गए। कभी अमेरिका, कभी कहीं और। यहां तक बेवजह पाकिस्तान हो आए। सर पर बवाल पालते फिरते हैं। अरे भई, देश चलाओ। अपने लोगों को जोड़ो, उनके साथ आगे बढ़ो। पर नहीं, देश छोड़ पाकिस्तान से जुड़ने पहुंच गए। केजरीवाल की बोटी नोच रहे हैं और नवाज शरीफ से मोहब्बत कर रहे हैं। कोई तुक है भला?
अरे भाई, पाकिस्तान जरूरी है, हमने समझाया, और फिर प्रधानमंत्री को सब देखना पड़ता है- देश और विदेश दोनों।
आपकी बात मानते हैं साब। पर विदेश के चक्कर में देश न हाथ से निकल जाए। कश्मीर में र्इंट से र्इंट बजी हुई है और हम लगे हैं पराई बारात में मेहमान बनने में। अब आप ही बताइए कि मोदीजी के साथ अगर वहां कुछ ऊंच-नीच हो जाती तो हम कहां मुंह दिखाने के काबिल रह जाते? हम तो सर यही कहेंगे कि मोदीजी पहले कश्मीर को पकड़ो, पाकिस्तान को बाद में साध लेना।
इतना सिंपल नहीं है जितना तुम समझ रहे हो भाई।
आॅटो वाले ने अचानक पूरी गर्दन घुमाई और हमको फुल स्माइल दी। साब हम मूढ़ बुद्धि हैं, मानते हैं। अपने तरीके से आॅटो भी चलाते हैं, पर कौन से सिग्नल पर रुकना है और कौन-सा तोड़ना है इतना जरूर जानते हैं। केजरीवाल की तरह।
हमने मुस्करा कर उसका कंधा थपथपाया। यार तुम सड़क पर ध्यान रखो। बातो में मत उलझ जाओ।
बिलकुल यही मैं भी कह रहा हूं। मोदीजी देश चला रहे हो, ड्राइव केयरफुली। बातों में मत उलझ जाओ।
तुम बहुत रोचक इंसान हो भई, हमने कहा। आॅटो वाला हमारी दाद पाकर हंसा।
साब, एक बात और बताएं। मोदी हों, केजरीवाल हों या राहुल गांधी, सब अपनी धुन में हैं और होना भी चाहिए। हम भी अपनी धुन में हैं। पर पैसेंजर को इससे क्या मतलब? उसको प्रगति मैदान जाना है, इसलिए उसने हमको पकड़ा है। हमारा काम है उसको मेले में पहुंचना। हम यह तो नहीं कह सकते कि सरजी रास्ते में मूड बदल गया, अब आप सराय काले खां चलो? नहीं न? तो फिर, सबका साथ सबका विकास का रूट इन्होंने क्यों बदल दिया? नवाज शरीफ से दोस्ती और केजरीवाल से दुश्मनी क्यों कर ली?
ऐसा नहीं है, हमने टोका।
है कैसे नहीं? उसने फिर पलट कर हमसे आंख मिलाई। हमने हाथ जोड़ कर सड़क की तरफ इशारा किया।
साब, स्वच्छ भारत-स्वच्छ भारत करते थे। क्या हुआ? दिल्ली को भी साफ नहीं कर पाए। काला धन लाए? नहीं न? पर जब जनता के लिए केजरीवाल कुछ करता है, तो काम में टंगड़ी मार देते हैं। अरे, उसको करने दो और तुम भी करो। उसको प्रदूषण साफ करने दो, तुम दिल्ली स्वच्छ करो। बाद में जनता को तोलने दो। ये तो बिना सवारी ले जाए किराया मांगते हैं।
हूं… हम सोच में पड़ गए।
सरजी, उसने बात जारी रखी, मोदीजी को हम अपना मानते हैं। पर वे राजी ही नहीं हैं। उनको यह आॅटो वाला नहीं दिखता, केजरीवाल ही दिखता है। अब आप ही बताइए कि हमारी वजह से केजरीवाल हैं या केजरीवाल की वजह से हम? इत्ती-सी बात मोदीजी को समझ नहीं आती। बस भिड़े हुए हैं, बेवजह!
साब, टकराव का टाइम है। केजरीवाल नई व्यवस्था लाना चाहते हैं, मोदी चालू सिस्टम को ठोंकठाक कर अपने जुगाड़ से चलाना चाहते हंै और राहुल पुराने में ही खुश हैं। देखते हैं, कौन क्या कर पाता है।
कांग्रेस से उम्मीद है, हमने कुरेदा।
साब, देश चलाना राहुल गांधी के बस का नहीं। कांग्रेस को चाहिए उनको कुछ हल्का काम दे।
जैसे?
कांग्रेस अध्यक्ष बन जाएं। औरों को भारी काम करने दें।
और अपना यूपी का मुख्यमंत्री कैसा है?
कैसा मुख्यमंत्री! वे तो जागीरदार हैं। समाजवाद का रजवाड़ा है। छोड़िए उन्हें।
तुम्हीं ने तो उनको जिताया, हमने कटाक्ष किया।
हां साब। गलती हो गई। नहीं समझ पाए कि समाजवाद की जगह भाई-भतीजावाद आ जाएगा। अखिलेश भी राहुल गांधी जैसे हैं, राहुल के पास मम्मी है तो अखिलेश भैया के पास पापा। राहुल के पास बहनोई है तो इनके पास चाचा, ताऊ, भाई, ससुरालिए हैं।
तुम केजरीवाल को कुछ ज्यादा तो नहीं तोल रहे हो, हमने पूछा।
कम भी तौलेंगे तो अखिलेश भैया या राहुल गांधी केजरीवाल नहीं हो पाएंगे, सड़क पर नहीं उतर पाएंगे। हमारी बात नहीं समझ पाएंगे। वे जन्मजात राजा हैं। मोदीजी भी अब राजा हो गए हैं। राज कर सकते हैं, दिल नहीं जीत सकते। ये सब गरीबी की बात करते हैं, पर अमीरी के ठाठ नहीं छोड़ सकते। सब लाट साहब के दामाद हो गए हैं।
तीरंदाजः हकीकत का जनपथ
सब अपनी धुन में हैं और होना भी चाहिए। हम भी अपनी धुन में हैं। पर पैसेंजर को इससे क्या मतलब? उसको प्रगति मैदान जाना है, इसलिए उसने हमको पकड़ा है। हमारा काम है उसको मेले में पहुंचना।
Written by अश्विनी भटनागर
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First published on: 17-01-2016 at 00:28 IST