पंद्रह अगस्त। चैनल सुबह से व्यस्त। डीडी से उधार लेकर एक एक पल की खबर। खबर से ज्यादा कमेंट्री। ऐसे अवसर पर उत्तेजना के कारण कई हिंदी एंकरों के पास सही शब्दों के टोटे पड़ जाते हंै। एक उत्तेजना सब पर तारी रही: पीएम मोदी अब कभी भी आ सकते हैं। वे आ रहे हैं। वे आ चुके हैं! उनकी बॉडी लैंग्वेज देखिए: एकदम आत्मविश्वास से भरी हुई है!
इसमें नई बात क्या? वे तो सदा ही आत्मविश्वास से भरे दिखते हैं!
वही सजधज। सिर पर कसा लाल लंबा साफा! लाल किले की प्राचीर से पचपन मिनट लंबा संबोधन! ‘भाइयो और बहनो’ और ‘सवा सौ करोड़ देशवासियो’ बार-बार दुहरे!कुछ वाक्य टूटते-बिखरते। विभिन्न जनहितकारी योजनाओं से संबंधित आंकड़े दर आंकड़े। पचपन मिनट की राष्टÑीय क्लास! ताली कई बार!
लेकिन बातों-बातों में वे दो हजार बाइस तक का कार्यक्रम भी थमा गए!
चैनलों के बचे-खुचे बहसीले जनतंत्र में एक विपक्षी विचारक, एक संघ विचारक, एक भाजपा प्रवक्ता अवश्य रहा करता है। कभी-कभी एकाध स्वतंत्र विचारक भी बिठा लिया जाता है।
एक अंग्रेजी चैनल ‘डिकोडिंग मोदी’ज स्पीच’ करने में लगा। बाकी मोदी के भाषण को अर्थाने में लगे!
‘डिकोडिंग मोदी’ यानी मोदी जी के ‘कोड’ को पहले खोलो, विखंडित करो और फिर बांचो! बड़ा ही दर्दीला ‘देरिदाई’ काम है!
और, अपने विचारक इसे भी ऐसी सफाई से कर गए कि लगा कि मोदी जी के दिल की बात वही जानते हैं।
लेकिन अफसोस! वे मोदी के ‘दो हजार बाईस’ के आशय को तो पकड़ ही नहीं सके!
‘दो हजार बाईस’ के जिक्र का ‘डिकंस्ट्रक्शन’ था: दो हजार बाईस हमें ही मनाना है, क्योंकि दो हजार उन्नीस तो हमारी जेब में ही है! यह था मोदी का आशय! सीधा और दो टूक! समझने वाले समझ गए हैं, ना समझे वो अनाड़ी हैं!
ये थी मोदी की ‘बात की सफाई’: देखते-देखते बाईस के आगे चौबीस का छेंका भी दे गए! यही है उनका ‘न्यू इंडिया’। यही है उनका ‘संकल्प से सिद्धि तक’ का मंत्र और न्यू इंडिया का नया नारा: ‘भारत जोड़ो’!
इसे कहते हैं: ‘दूरारूढ़ व्यंजना’! दूर की कौड़ी! जोर का झटका धीरे से लगे!
और बात की बात में, यह वो तिरछा वार था, जिसे बहसों के पंडितजन तक न समझ सके!
‘डिकोडिंग’ मतलब कि मोदी अब चौबीस की बात कर रहे हैं, उन्नीस तो उनकी झोली में पड़ा है!
यही ‘संकल्प’ है, जिसकी ‘साधना’ जारी है और जिसे ‘सिद्धि’ तक पहुंचाना है!
और कैसी तो जुगल जोड़ी है सरजी कि एक दिन बाद ही अमित शाह की मार्फत यह खबर चैनलों में छा गई कि दो हजार उन्नीस में अमित शाह का लक्ष्य है ‘तीन सौ साठ सीट’!
वह था ‘संकल्प’ और ये रही ‘साधना’! प्लानिंग!
यह झटका इतना जोरदार था कि एबीपी के राजनीतिक समीक्षक विजय विद्रोही तक इस दावे पर संदेह न कर सके! एक अंग्रेजी चैनल ने भी इसे बड़ी खबर बनाया, लेकिन किसी ने मोदी के ‘न्यू इंडिया’ के इस अश्वमेध की वल्गाओं को खींचने की ताब न दिखाई!
पंद्रह अगस्त आते ही सभी चैनल तिरंगे हो गए। शाम होते-होते स्वतंत्रता दिवस को कवर करने के लिए कम से कम चार चैनल सीधे वाघा बॉर्डर पर तैनात थे। वहां समूचा वीर रस उतर पड़ा। सैनिक अपने वीरत्व-व्यंजक करतबों से और नर्तक अपने नाचों से सबका मन मोहने लगे! इस बार के पंद्रह अगस्त में सेना कुछ अधिक ही दृश्यमान रही!
एक अंग्रेजी चैनल पर एक लाइन की खबर कीड़े की तरह रेंगी कि एक प्रिंसीपल ने जूते पहन कर तिरंगा फहराया तो एबीवीपी वालों ने ठोंक दिया! हम इंतजार करते रह गए कि इस तरह की ‘देशभक्ति’ का पूरा किस्सा कोई चैनल बताएगा, लेकिन हमारे लेखे तो कुछ नजर न आया! एक ‘निंदा वाक्य’ तक को तरस गए! मदरसों ने बहरहाल, ‘ताकि सनद रहे’ स्टायल में वीडियो बनाए और चैनलों ने दिखाए!
लेकिन मदरसों की जान कहां छूटी? शुक्रवार तक आते-आते एक फरमान की खबर आई कि जिन्होंने नहीं मनाया उन मदरसों पर सरकार की नजर रहेगी कि उनको क्या सजा दी जाए!
कहीं हम मिशेल फूको के ‘डिसीप्लिन ऐंड पनिश’ को तो नहीं देख रहे?
एक अंग्रेजी चैनल पर एक जानी-मानी पत्रकार दुखी मन से बोलतीं दिखीं कि एक खास समुदाय के लोगों को बार-बार प्रमाणित क्यों करना पड़ता है कि वे देशभक्त हैं!
मैडम! देशभक्ति है ही ऐसी चीज कि किसी के भरोसे नहीं छोड़ी जा सकती। ‘न्यू इंडिया’ में उसे ‘कायदे’ से करना होता है! या तो ऐसे मनाओ नहीं तो…
त्रिपुरा के सीएम को अगरतला के दूरदर्शन वालों ने कहा कि अपने भाषण को कुछ बदल लें, तब प्रसारित करेंगे! पहली बार शायद किसी सीएम का भाषण इस तरह के सेंसर का शिकार बना।
इस पर एक बहस सिर्फ एनडीटीवी में आकर गरम हुई। अन्य दो अंग्रेजी चैनलों को पाकिस्तान से देश को बचाने से फुरसत नहीं थी। एक चैनल भ्रष्टाचार से देश को बचाने में लगा था। एक मोदी के ‘न्यू इंडिया’ का ‘अखंड पाठ’ करने में लगा था।
इस बीच ‘इंडिया फाउंडेशन’ का एक प्रतिनिधि एनडीटीवी की बहस में एकदम जनतांत्रिक लाइन ले गया कि चाहे कुछ हो, वे सीएम हैं और सीएम सीएम होता है। उनके भाषण को इस तरह बदलने के लिए कहना अनुचित था।
इस वैचारिक विचलन पर संघ के एक ‘विचारक जी’ की गुस्सा आना ही था, आया! लेकिन एंकर के पास और भी वक्ता थे!
चलते चलते: एक हिंदी चैनल ने स्पेशल प्रोग्राम का शीर्षक दिया: ‘मारेगा इंडिया,घसीटेगा जापान, चीन का काम तमाम!’ जब तक ऐसे आग लगाऊ चैनल हैं, तब तक कैसी शांति?
