इधर चार थे उधर एक था। इधर चारों लाइव थे, लेकिन उधर एक खामोश था। चार आरोपकर्ता थे और एक आरोपित था।
सब महान, सब माननीय, सब महामहिम, सब बड़े। लेकिन सर्वाेच्च अदालत के हो चुके थे दो धड़े!
इसके आगे भक्त और अभक्त आमने-सामने थे:
– बहुत बुरा किया जो अंदर की बात बाहर की!
– कोई तो बात रही होगी कि अंदर सुनी न गई और बाहर सुनानी पड़ी!
– देश के सर्वोच्च न्यायालय की साख में बट्टा लगा!
– बट्टे की इतनी ही परवाह थी, तो उनकी सुनी क्यों नहीं?
– वे तीन बजे मीडिया में आएंगे! नहीं वे नहीं आएंगे! हर पल ब्रेकिंग का इंतजार रहा!
यह अहंकार था। ‘पर्सनल’ की ‘पॉलिटिक्स’ थी। एंकर बताए जा रहे थे, लेकिन कोई लज्जित नहीं था।
इतने में विद्रोही जस्टिस चेलमेश्वर जी के घर पर सीपीआई के नेता डी. राजा के जाने और जस्टिस महोदय से हाथ मिलाने का फुटेज एक चैनल के हाथ लग गया। फिर क्या था? एक एंकर हावी हो लिया!
एंकर के बार-बार कोंचने पर तीन बार नाराज हुए राजा ने एक बार तो कान से माइक ही निकाल दिया, लेकिन फिर लगा लिया। एंकर कोंचता रहा कि आप मिलने क्यों गए और वे रक्षात्मक होकर कहते रहे: दोस्त हैं। पर्सनल विजिट थी!
इन दिनों क्या तो पर्सनल, क्या पोलिटीकल! सब कुछ तो पोलिटीकल है! चार दिवसीय इस हाय-हाय में मीडिया की ‘पौ बारह’ थी। रायता चौराहे पर फैला था और मीडिया अपने हाथ से घमोल रहा था। कुछ बड़े वकील दुखी थे। कुछ सुखी थे। कुछ बीच बचाव की मुद्रा में थे। कुछ हाथ सेंकते थे!
सिर्फ नेतन्याहू के बिग शो ने टीवी का सीन बदला। उनके स्वागत के लिए प्रधानमंत्री ने प्रोटोकॉल तोड़ दिया और गले मिले।
इसके आगे जय हिंद था। जय भारत था। जय इजरायल था। जय मोदी था। जय नेतन्याहू था। जय रोड शो था। जय चरखा था। जय पतंग थी। जय इजराइली मांझा था और जय जय समझौते थे!
आसन्न चुनावों के इन दिनों कर्नाटक को लेकर चैनलों की राजनीतिक लाइनें स्पष्ट नजर आती हैं? तीन चैनल ऐसे हैं जो कर्नाटक की किसी भी आपराधिक खबर को नहीं छोड़ते।
लेकिन इस सप्ताह अचानक हरियाणा कर्नाटक से आगे निकलता दिखा। मिरर नाउ ने खबर का पीछा न छोड़ा। एक दिन की खबर रही कि ‘पांच दिन में पांच बलात्कार’ और अगले दिन खबर रही कि ‘छह दिन में आठ बलात्कार’! एक पुलिस अधिकारी ने समझाया कि देखिए बलात्कार तो एक मामूली बात है (नॉट ए बिग डील)! बेचारे ने दिल की बात कह दी और एंकरों को कोसने का अवसर मिल गया! बकते रहिए ‘स्त्री-द्वेषी’। मर्दवादी। ये वादी वो वादी। बलात्कार जैसी मामूली बात पर भी इतना हंगामा? हम तो हरियाणा हैं!
पदमावती का नाम पदमावत कर दिया गया। पांच बनाम तीन सौ संशोधनों के बाद सीबीएफसी ने दिखाने की सनद भी दे दी, लेकिन करणी सेना को मंजूर न हुआ। पूर्ण बहुमत वाली चार भाजपा सरकारें करणी सेना के आगे घुटने टेक गर्इं और पदमावत को भी बैन कर दिया! इस मुद्दे पर भाजपा के एक प्रवक्ता की तर्क शैली अद्भुत थी। प्रवक्ता विनम्रता पूर्वक कहते कि सीबीएफसी का काम है सनद देना। सरकारों का काम है कानून व्यवस्था देखना! कितनी सही बात!
इसे कहते हैं ‘वैधानिकतावाद’: सब अपना अपना कर्तव्य कर रहे हैं। सीबीएफसी सनद दे रही है। गुड! सरकार व्यवस्था देख रही है। वेरी गुड! और करणी सेना सिनेमा हॉल जलाने से लेकर ‘जौहर’ की धमकी दे रही है: वेरी वेरी गुड! ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर! देखिए, जनभावनाओं से न खेलें! सरकारों की भी भावनाएं होती हैं!
हाय आधार! वाह आधार! आह आधार! आधार निराधार नहीं है। आधार साधार है। आदमी एक आंकड़ा है। वह चोरी हो सकता है, लेकिन आदमी तो चोरी नहीं हो रहा!एक विद्वान जी लठ्ठ लेकर आधार के पक्ष में खड़े कहते रहे कि ऐसा क्या है, जिसे चुराया जा सकता है? पहले भी तो सूचना देते थे, अब देंगे तो क्या गलत? सच बात है: इस देश की फटीचर जनता के पास है ही क्या, जिसे चोर चुराएगा? आदमी को आंकड़ा बनाया गया है उसके कल्याण के लिए! आदमी तंग करता है, आंकड़ा नहीं करता! आंकड़ा चुरेगा, लेकिन आदमी तो नहीं चुरेगा!
इधर रजनी राजनीति में आ रहे हैं। उधर कमल हासन दल बना रहे हैं। तमिलनाडु में जलीकट््टू समारोह चल रहा है! एक सांड़ एक को रौंद चुका है, तीन और मर चुके हैं, तो क्या हुआ? संस्कृति और पंरपरा की खातिर कोई भी कुबार्नी बड़ी नहीं!
वृहस्पतिवार को पदमावत की रिलीज पर कुछ सरकारों के प्रतिबंध को निरस्त करते हुए सर्वाेच्च अदालत ने कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी की हिफाजत के लिए कानून-व्यवस्था बनाए रखना सरकारों का सांवैधिानक दायित्व है!
लेकिन विरोध करने वाले मानें तब न!
टाइम्स नाउ की खबर का यकीन करें तो जो पदमावत कल तक सिर्फ ‘राजपूत विरोधी’ थी, अब ‘हिंदू विरोधी’ भी हो गई!
बच के रहना महाकवि जायसी!
