यह लेख आपके पास पहुंच रहा है न्यूयार्क से। मैं एक शेर से शुरू करना चाहती हूं, जो यहां के माहौल के लिए मुनासिब है और शायर ने मेरे विचार मुझसे बेहतर बयान किए हैं। शेर है- ऐ मौज-ए-बला उनको भी दो चार थपेड़े हल्के से। कुछ लोग अभी तक साहिल से तूफान का नजारा करते हैं। उनके लिए जिनकी उर्दू इतनी अच्छी नहीं है, इस शेर का मतलब समझाना चाहती हूं। शायर कहता है कि मुसीबतें लेकर जो लहरें आ रही हैं तूफान के कारण, उनसे गुजारिश है कि एक-दो थपेड़े उनको भी महसूस कराएं, जो लोग तूफान को देख रहे हैं एक सुरक्षित द्वीप से।

जबसे इस शहर में पहुंची हूं, रोज देखने-सुनने, पढ़ने को मिलती हैं सिर्फ युद्ध की बातें। इजरायल ने ईरान पर हमला किया मेरे न्यूयार्क आने के बाद और ऐसा लगता है यहां से जैसे इस युद्ध में न जान का नुकसान हुआ है, न शहर तबाह हुए हैं, न किसी देश की सरकार को बदलने की कोशिश हो रही है। लग ऐसा रहा है कि जैसे हम यहां बैठ कर एक पिक्चर देख रहे हैं, जिसमें यथार्थ को तमाशे के रूप में पेश किया जा रहा है।

रोज टीवी पर जिक्र चल तो रहा है, इजरायल के इस नए युद्ध का, लेकिन यहां रहने वाले लोगों को पूरा यकीन है कि उनको कोई नुकसान नहीं होने वाला है, बावजूद इसके कि डोनाल्ड ट्रंप दुनिया के सबसे शक्तिशाली राजनेताओं के जी-7 सम्मेलन से जल्द वापस लौटे हैं यह कह कर कि इस सम्मेलन से ज्यादा गंभीर चीजें हैं, जिन्हें उनकी जरूरत है। अपना मतलब पूरी तरह स्पष्ट करते हुए उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने फैसला नहीं किया है कि ईरान पर जो हमला किया है इजराइल ने, उसमें अमेरिका शामिल होगा कि नहीं।

अमेरिका शामिल होता है इस युद्ध में, तो माना जा रहा है कि वह इजरायल की मदद के लिए एक ऐसा हथियार देने वाला है जो तीस हजार किलो का बम है, जो उस पहाड़ को ध्वस्त कर सकता है, जिसके नीचे अनुमान है कि ईरान का यूरेनियम वाला गोदाम है। इसके ध्वस्त होने के बाद ईरान की परमाणु शक्ति तबाह हो सकती है।

न्यूयार्क में अफवाहें थीं कि अमेरिका यह बम इजराइल को देने वाला है, लेकिन डोनाल्ड ट्रंप के ‘मागा’ में विवाद शुरू हो गया है। ‘मागा’ का मुख्य मकसद है अमेरिका को दुनिया की परवाह से अलग कर अपनी समस्याओं पर ही ध्यान दिलाना। खासतौर पर ‘मागा’ के लोग मानते हैं कि अमेरिका को दूसरे देशों के युद्धों से दूर रहना चाहिए।

मैं नहीं जानतीं कि आगे क्या होने वाला है। शायद ट्रंप अमेरिका को, अपने समर्थकों के एतराज के बावजूद इस युद्ध में शामिल करेंगे। शायद एहतियात बरतेंगे। शायद इजराइल को वह हथियार दे देंगे, जिससे ईरान की परमाणु शक्ति को पूरी तरह समाप्त कर सकेगा इजराइल। लेकिन एक बात जो अभी से पूरी तरह स्पष्ट हो गई है, वह यह कि अमेरिका किसी और देश की समस्याओं में हस्तक्षेप नहीं करना चाहता।

ऐसा करके उसको सिर्फ गालियां ही मिली हैं। मिस्र मूल के एक न्यूयार्कवासी के शब्दों में, ‘जो इराक में हुआ वह ईरान में होने वाला है। कारण वही है कि ईरान के तेल पर अमेरिका कब्जा करना चाहता है। इसके बाद शायद कुछ वर्षों में मिस्र की बारी आएगी, क्योंकि हमारे देशों में इतनी शक्ति ही नहीं है कि हम अपने को सुरक्षित रख सकें।’

दूसरी तरफ हैं वे लोग जो मानते हैं कि ईरान के मजहबी नेता कई वर्षों से कहते आ रहे हैं कि उनका सबसे बड़ा दुश्मन अमेरिका है और अमेरिका को खत्म करने के लिए वे कुछ भी करने को तैयार हैं। इस प्रयास में ईरान ने हिजबुल्लाह और हमास जैसे संगठनों को पूरा समर्थन दिया है बरसों से।

यमन के हूती भी ईरान से समर्थन, पैसा और हथियार लेते हैं। ईरान से समर्थन लेने वाले संगठन आतंकवादी हैं। सात अक्तूबर, 2023 ने साबित किया है कि हमास जैसे संगठन आतंकवाद के सहारे जीवित हैं। इजराइल पर जो कायर और घिनौना हमला किया था हमास ने, वह युद्ध नहीं था। इस हमले में बच्चों से लेकर बूढ़ों को हमास के आतंकवादियों ने मारा था। जिनको बंदी बना कर गाजा ले जाया गया, उनके साथ बर्बरता से पेश आए थे हमास के सिपाही। इजराइली औरतों को नंगा करके घुमाया गया था और गर्व से इन दरिंदों ने अपने माता-पिता को फोन करके श्रेय भी लिया, ‘मैंने आज सात यहूदी मारे अपने हाथों से।’

जितने यहूदी इजराइल में हैं उससे ज्यादा अमेरिका में हैं और अमेरिकी नागरिक होने के बावजूद उनका समर्थन पूरी तरह से इजराइल के लिए है। इसलिए ट्रंप अगर इजराइल की मदद के लिए आगे आते हैं, तो उससे इस नए युद्ध में उनकी लोकप्रियता बढ़ेगी, कम नहीं होगी। मेरे कई यहूदी दोस्त हैं न्यूयार्क में, जो कहते हैं कि वे बिल्कुल नहीं चाहते कि अमेरिका इस युद्ध में शामिल हो, लेकिन इनकी संख्या थोड़ी है और उनकी ज्यादा, जो ईरान में सरकार को बदलना चाहते हैं।

इसमें कोई शक नहीं कि ईरान के धार्मिक शासकों ने दुनिया पर कई जÞुल्म ढाए हैं। अपने लोगों को भी बेरहमी से मारा है। औरतों के साथ खासकर जुल्म हुआ है इस्लाम के नाम पर, लेकिन यह भी सच है कि किसी देश के अंदरुनी राजनीतिक मामलों में दखल देना खतरों से खाली नहीं है। तो कहना मुश्किल है कि अब क्या होना चाहिए तूफानों से घिरी इस दुनिया में, लेकिन इतना यकीन से कहना चाहती हूं कि अमेरिका अगर हस्तक्षेप करता है, तो उसको कोई नुकसान नहीं पहुंचने वाला है, क्योंकि यहां के लोग अभी तक ‘साहिल से तूफान का नजारा करते हैं।’