माओत्से तुंग के बारे में मेरा पसंदीदा प्रसंग उनका वह जवाब है जिसमें उनसे पूछा गया कि फ्रांसीसी क्रांति का मानव इतिहास पर क्या प्रभाव पड़ेगा। तब माओ ने कुछ देर सोचा और कहा, ‘अभी कुछ बताना जल्दबाजी होगी।’ चीन इंतजार करता है। चीन धैर्यवान है। चीन यह दावा नहीं करता कि वह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और न ही उसने सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की कोई तारीख तय की है। एक उभरती हुई महाशक्ति में ये गुण दुर्लभ हैं। दूसरी ओर, चीन एक लोकतंत्र नहीं है और इसके लोगों को वे स्वतंत्रताएं नहीं मिलतीं जो लोकतंत्रों में आम होती हैं। इसके बरक्स भारत कुल मिलाकर लोकतांत्रिक है, लेकिन साथ ही यह शोरगुल वाला और झगड़ालू भी है। भारत समय से पहले जश्न भी मनाता है। उदाहरण के लिए, पेरिस ओलंपिक, 2024 की पदक तालिका में दर्ज है :

देश स्वर्ण रजत कांस्य

संयुक्त राज्य अमेरिका 40 44 42

चीन 39 27 24

भारत 0 1 5
भारत में संयुक्त राज्य अमेरिका या चीन की तुलना में अधिक जश्न मनाया गया।

विरोधाभासी घोषणाएं

कुछ दिन पहले जब वास्तविक नियंत्रण रेखा पर ‘गश्त व्यवस्था’ पर दोनों देशों के बीच समझौते की घोषणा की गई, तब विरोधाभास स्पष्ट दिखा था। मई 2020 में हुई झड़पों के बाद यह पहली सफलता है। भारत की ओर से विदेश सचिव ने एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया, विदेश मंत्री ने एक साक्षात्कार दिया और सेना प्रमुख ने एक कार्यक्रम में चर्चा की। विदेश मंत्री ने कहा कि ‘2020 में जो स्थिति थी, हम वहां वापस चले गए हैं।’ हालांकि, सेना प्रमुख ने कहा : ‘हम अप्रैल 2020 की यथास्थिति पर वापस जाना चाहते हैं। इसके बाद, हम वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पीछे हटने, तनाव कम करने और सामान्य प्रबंधन पर ध्यान देंगे।’

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चीन की तरफ से विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने तथ्य के तौर पर बयान दिया: ‘चीन और भारत कूटनीतिक और सैन्य चैनलों के माध्यम से सीमा से जुड़े मुद्दों पर करीबी संपर्क में रहे हैं। वर्तमान में दोनों पक्ष संबंधित मामले में एक समाधान पर पहुंच गए हैं, जिसमें चीन ने सकारात्मक रुख दिखाया है। अगले चरण में चीन भारत के साथ उपर्युक्त समाधान को लागू करने के लिए काम करेगा’ (टीओआइ)। उन्होंने कोई भी विवरण देने से इनकार कर दिया।

हम कहां खड़े हैं

इस संदर्भ में पिछले रविवार तक की स्थिति को याद करना उपयोगी होगा। मार्च-अप्रैल 2020 में पीएलए बलों ने एलएसी पार करके भारतीय क्षेत्र में प्रवेश किया। भारत को 5 मई, 2020 को इस घुसपैठ का पता चला। घुसपैठियों को भगाने की कोशिश में भारत ने बीस बहादुर सैनिकों को खो दिया। चीन के भी सैनिक हताहत हुए, जिनकी संख्या के बारे में पता नहीं चल सका। प्रधानमंत्री ने 19 जून, 2020 को एक सर्वदलीय बैठक बुलाई। अपने समापन भाषण में प्रधानमंत्री ने एक चर्चित बयान दिया था, जिसके लिए हमेशा उनकी आलोचना होती है कि ‘किसी बाहरी व्यक्ति ने भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ नहीं की है, न ही कोई बाहरी व्यक्ति भारत में घुसा।’ लेकिन कई सैन्य अधिकारियों और विशेषज्ञों के अनुसार, अब लगभग 1000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र भारत के नियंत्रण में नहीं है, जहां हमारे सैनिक पहले गश्त कर सकते थे।

कड़वा तथ्य यह है कि चीन पूरी गलवान घाटी पर अपना दावा करता है। उसका दावा है कि एलएसी फिंगर 4 से होकर गुजरती है, न कि फिंगर 8 से। चीन ने हाट स्प्रिंग्स पर कुछ भी नहीं माना है।
भारत डेमचोक और देपसांग पर बातचीत करना चाहता था, लेकिन चीन ने इनकार कर दिया। चीन अक्साइ चिन और भारत के साथ सटी 3,488 किलोमीटर की सीमा पर सैन्य बुनियादी ढांचा तैयार कर रहा है। उसने एलएसी तक 5जी नेटवर्क स्थापित कर लिया है। उसने पैंगोंग त्सो पर एक पुल बनाया है। उसने सीमा पर सैन्य मशीनें या हार्डवेयर और हजारों सैनिकों को ला खड़ा किया है।

विदेश मंत्रालय की घोषित आधिकारिक स्थिति यह रही है कि यथास्थिति की बहाली हो। सरकार ने लगातार ‘पीछे हटने’, ‘तनाव कम करने’, ‘डी-इंडक्शन’ और ‘वापसी’ जैसे शब्द का इस्तेमाल किया है। हालांकि, हाल के महीनों में विदेश मंत्रालय ने ‘यथास्थिति’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया है। इस मसले पर सरकार ने सराहनीय धैर्य और दृढ़ता दिखाई है। चीन ने उन शब्दों पर आपत्ति जताई और उसे ‘महत्त्वपूर्ण प्रगति’ कहना पसंद किया है। ऐसे में अगर गश्त के संबंध में सचमुच कोई समझौता होता है तो यह सरकार के लिए चीन के अप्रत्याशित व्यवहार के बावजूद अपने रास्ते पर बने रहने का इनाम होगा।

अंत या शुरुआत नहीं

ऐसा लगता है कि दोनों देश गश्त व्यवस्था पर सहमत हो गए हैं, लेकिन इससे ज्यादा नहीं। इस बात की संभावना है कि दोनों पक्षों द्वारा महीने में दो बार समन्वित गश्त होगी और सैनिकों की संख्या पंद्रह तक सीमित होगी। यह स्पष्ट नहीं है कि इस व्यवस्था में डेमचोक और देपसांग मैदान शामिल हैं या नहीं। 2017 में एक समझौता होने के बाद चीन ने पूर्वी लद्दाख के डेमचोक के इस क्षेत्र पर फिर से कब्जा कर लिया और अपनी उपस्थिति को बड़े पैमाने पर मजबूत कर लिया है। देपसांग के मैदानों में चीन ने वाई-जंक्शन से आगे और पारंपरिक गश्ती बिंदु 10, 11, 11ए, 12 और 13 तक भारतीय सैनिकों की पहुंच को अवरुद्ध कर दिया है। गलवान, पैंगोंग त्सो के उत्तर और दक्षिण तट और हाट स्प्रिंग्स जैसे टकराव के अन्य बिंदु हैं। यह मान लेना विश्वास की छलांग है कि इन सभी मुद्दों को सुलझा लिया गया है। अभी भी अविश्वास की एक लहर है।

हमारे लोकतंत्र पर एक दुखद प्रतिबिंब यह है कि भारत-चीन संघर्षों पर पिछले चार वर्षों में एक बार भी संसद में चर्चा नहीं होने दी गई। गश्त समझौते पर रक्षा विशेषज्ञों ने सावधानी बरतने की सलाह दी है; कांग्रेस ने उचित और स्पष्ट सवाल उठाए हैं; और अन्य विपक्षी दल चुप रहे हैं। क्या अक्तूबर की आम सहमति भारत और चीन को व्यापक बातचीत के जरिए एक समाधान की ओर ले जाएगी? अभी यह बताना जल्दबाजी होगी।