भारत में हर साल करीब दो लाख सत्तर हजार लोगों की मौत क्षयरोग से होती है। इसका मतलब है कि करीब हर दो मिनट में यह रोग एक व्यक्तिकी जान लेता है। कई दशकों की खोज के बाद भी ऐसी कोई दवा या टीका नहीं खोजा जा सका, जिससे भविष्य में हो सकने वाले क्षयरोग को टाला जा सके। असल में क्षयरोग कोई रोग नहीं है, बल्कि कुपोषण का नतीजा है। यानी अगर हर भारतीय को स्वच्छ और पौष्टिक भोजन मिल सके तो भारत में क्षय रोग अपने आप खत्म हो जाएगा। आधे से ज्यादा मामलों में पौष्टिक भोजन न मिलने से यह रोग होता है।

कई अध्ययनों से यह बात सामने आई है कि भारत में क्षयरोग के पचपन प्रतिशत मामलों के लिए कुपोषण जिम्मेदार है। इससे उलट, कई अफ्रीकी देशों में एचआइवी संक्रमण क्षयरोग की बीमारी का सबसे बड़ा कारक है। आॅब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के अंतरराष्ट्रीय प्रकाशन ‘क्षयरोग उन्मूलन :चुनौतियां, दृष्टिकोण और उपाय’ में भारत और विश्व के विशेषज्ञों ने इस बात पर बल दिया है कि भारत को क्षयरोग नियंत्रण कार्यक्रम चलाते समय सामाजिक स्थितियों जैसे-असमानता, गरीबी, कुपोषण, अत्यधिक भीड़भाड़ पर भी ध्यान देने की जरूरत है।

इस फाउंडेशन के विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक सभी लोगों को पौष्टिक भोजन और रहन सहन की बेहतर परिस्थितियां उपलब्ध नहीं करा दी जातीं तब तक मात्र चिकित्सा से इससे छुटकारा नहीं पाया जा सकता। क्षयरोग छूत की बीमारी है। इसलिए कम जगह में बहुत ज्यादा लोगों के रहने से भी इस बीमारी को फैलने में मदद मिलती है। आज अगर मलिन बस्तियों या घनी आबादी वाले स्थानों पर नजर डाली जाए तोे बेहद तंग जगह में कई-कई परिवार गुजारा करते नजर आते हैं। इसका एक बड़ा कारण रोजगार की तलाश में गांवों से शहरों की ओर पलायन भी है। हैरान कर देने वाली बात है कि भारत की करीब चालीस प्रतिशत आबादी यानी करीब अड़तालीस करोड़ लोगों के शरीर में क्षयरोग का जीवाणु मौजूद है।

लेकिन राहत की बात यह है कि क्षयरोग के जीवाणु के वाहक इन लोगों में से नब्बे प्रतिशत लोग अपनी रोग प्रतिरोधक शक्ति के बल पर क्षयरोग के संक्रमण को बीमारी में तब्दील होने से रोकने में कामयाब हो जाते हैं। पौष्टिक भोजन का अभाव रोग प्रतिरोधक शक्ति को कम कर देता है। एक अनुमान के मुताबिक भारत में हर साल करीब तेइस लाख क्षयरोग के मामले सामने आते हैं।
प्रोटीन एक अच्छे पौष्टिक भोजन का बहुत जरूरी अंग है। वैसे विटामिन और खनिज भी जरूरी हैं। मांसाहारी लोग अपनी प्रोटीन की जरूरत मीट, अंडे आदि से पूरी कर सकते हैं। लेकिन शाकाहारी लोग अपनी प्रोटीन की जरूरत के लिए मुख्य तौर पर दालों पर ही निर्भर हैं। अपने देश में दाल सदियों से भोजन का अंग है तो इसीलिए कि दाल प्रोटीन का महत्त्वपूर्ण स्रोत है।

लेकिन आज महंगाई ने जिस तरह दाल की कीमतों को आसमान पर पहुंचा दिया है वह देश के लिए चिंता की बात है। लेकिन दुखद है कि सरकार महंगाई घटाने की बजाय दूसरी भावनात्मक मुद्दों में व्यस्त हैं। शायद भावनाएं हकीकत से हमारा ध्यान हटाकर हमें एक अलग काल्पनिक लोक में ले जाती हैं,जबकि राजनीतिज्ञों से यह सवाल तो पूछा ही जाना चाहिए कि क्या वजह है कि आजादी के पैंसठ साल बाद भी देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा ठीकठाक भोजन तक के लिए तरस रहा है। (हरजीत सिंह)