भ्रष्टाचार के कई रूप होते हैं। केवल काम के बदले पैसों का लेन-देन ही भ्रष्टाचरण नहीं है। सरकारी धन को किसी भी प्रकार से हानि पहुंचाना गलत है। इसके साथ ही समय पर काम का पूरा नहीं होना भी भ्रष्टाचार को बढ़ावा देना या कदाचरण की श्रेणी में आता है। अगर सरकारी कार्यालयों में आम आदमी का काम समय पर हो जाए तो सरकार और सरकारी कार्यालयों की छवि ही बदल जाए। इसी तरह से आधारभूत विकास की परियोजनाएं समय पर पूरी हो जाएं तो देश का कायाकल्प होने में देर न लगे। काम की देरी के कारण ही लोगों में यह धारणा बनती है कि बिना लिए-दिए कुछ नहीं होगा। इसी तरह परियोजना समय पर पूरी नहीं होने से लागत बढ़ जाती है और उसका सीधा असर सरकारी राजस्व पर पड़ता है।

सूचना का अधिकार, सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार पर नजर रखने के लिए सतर्कता आयुक्तों की व्यवस्था, भ्रष्ट आचरण न करने की शपथ और भ्रष्टाचार के विरोध में अण्णा या रामदेव जैसे आंदोलनों के बावजूद भ्रष्ट देशों की सूची में अभी हमारी स्थिति ज्यादा नहीं सुधरी है। 2014 की इंटर नेशनल ट्रांसपेरेंसी संस्था की रिपोर्ट में भारत भ्रषाटाचार में 85 वें नंबर पर है। सुधार हुआ है, लेकिन थोड़ा सा। इससे पहले इसी संस्था ने जो रिपोर्ट दी थी, उसमें भारत भारत 95 वें नंबर पर पंहुच गया था।

दूसरी तरफ न्यूजीलैंड को पहले नंबर से धकेल कर डेनमार्क दुनिया में सबसे कम भ्रष्टाचार वाला देश बन गया है। 174 देशों की सूची में सोमालिया सबसे नीचे यानी की सबसे अधिक भ्रष्ट देश है। आर्थिक उदारीकरण और वैश्वीकरण के दौर में भ्रष्टाचार पर अंकुश पहली आवश्यकता बन गई है। देखने की बात यह है कि अब भ्रष्टाचार का तरीका भी बदलने लगा है। एक समय था जब सरकारी कार्यालय भ्रष्टाचार के गढ़ माने जाते थे, पर अब उसका स्थान संस्थागत भ्रष्टाचार लेता जा रहा है। पहले दफ्तरों में रिश्वत बड़ी बात मानी जाती थी पर पिछले वर्षों में भ्रष्टाचार के नए केंद्र के रूप में स्पेक्ट्रम, कॉमनवेल्थ गेम, खान आवंटन या इसी तरह के नए क्षेत्र सामने आ रहे है, इनमें भ्रष्टाचार की मात्रा है।

आर्थिक जानकार गिरती विकास दर पर चिंता जता रहे हैं। इस चिंता से भ्रष्टाचार पर रोक की चिंता को जोड़ लिया जाए तो निश्चित रूप से गिरती विकास दर पर न केवल प्रभावी अंकुश लगाया जा सकता है,बल्कि विकास दर में बिना कुछ अतिरिक्त किए ही दो से ढाई प्रतिशत की वृद्धि अर्जित की जा सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘मेक इन इंडिया’ का संकल्प लेकर देश में विदेशी निवेश पर जोर दे रहे हैं। विदेश यात्राओं में सबसे अधिक जोर भी देश में विदेशी निवेश पर ही दिया जा रहा है। राजथान में रिसजेंट राजस्थान आयोजित किया जा रहा है। गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, मध्यप्रदेश और दूसरे राज्यों में विदेशी निवेश के प्रयास जारी है। देश में विदेशी निवेश भी आने लगा है। दुनिया के देश भारत को अब निवेश के लिए आदर्श भी मानने लगे हैं। दरअसल, सरकार ने यह समझा है कि भ्रष्टाचार के कारण निवेश का माहौल खराब होता है। निवेशक निवेश के समय अपनी सुविधाएं देखता है, निवेश का माहौल देखता है, आधारभूत सुविधाएं चाहता है और यह चाहता है कि उसका निवेश अनावश्यक रुकावटों की भेंट तो नहीं चढ़ जाएगा।

भ्रष्टाचार के खिलाफ जिस तरह का देशव्यापी माहौल बना और जिस तरह से निवेशकों के लिए एकल खिड़की सिद्धांत विकसित होने लगा है, उससे सकारात्मक माहौल बनने लगा है। माना जा रहा है कि सतर्कता से भ्रष्टाचार को कम किया जा सकता है।

भ्रष्टाचार कोई नई समस्या नहीं है। पर पिछले सालों में अरब देशों में जिस तरह से भ्रष्टाचार के कारण क्रांति का बिगुल बजा और वर्षों से जमे सत्ताधारियों की सत्ता को हिला कर रख दिया,उससे सत्ता केंद्रों में खुद ही सब कुछ समझ जाना चाहिए। ट्यूनिशिया से आंरभ भ्रष्टाचार के खिलाफ आक्रोश मिस्र, यमन, लीबिया और सीरिया तक फैला। रामदेव की रैली या अण्णा के प्रति जनसमर्थन से यह तो माना ही जा सकता है कि भारत में भी भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक हवा है।

अमेरिका और यूरोपीय देशों के युवाओं के आंदोलनों को भी इसी नजर से देखा जाना चाहिए। भ्रष्टाचार से सभी मुक्ति चाहते हैं। यह तो संकेत भर है, समय रहते हल नहीं खोजा गया तो यह चिंगारी दावानल का रूप ले सकती है। पिछले कुछ समय से भ्रष्टाचार के नए केंद्र विकसित हुए है। कृषि क्षेत्र अभी इससे अधिक प्रभावित नहीं है। लेकिन, रीयल एस्टेट, टेलीकॉम, निर्माण क्षेत्र, प्राकृतिक संपदा के आवंटन और नीति निर्धारण ऐसे क्षेत्र उभर कर आ रहे हैं, जहां भ्रष्टाचार की मात्रा अधिक है। सरकार भ्रष्टाचार पर अंकुश के लिए नए-नए रास्ते खोज रही है। सूचना का अधिकार और सार्वजनिक निर्माण कार्य स्थल पर विवरण चस्पा करने के साथ ही समय पर काम होने के लिए नागरिक अधिकार पत्र और समय पर काम नहीं करने पर व्यक्तिगत जिम्मेदारी तय करने जैसे प्रावधान किए गए है। केंद्र में अलग से सतर्कता आयुक्त है।

कहने को सतर्कता विभाग है, लेकिन मुख्य सतर्कता आयुक्तालय या किसी सतर्कता आयुक्त ने स्वप्रेरणा से भ्रष्टाचार का मामला शायद ही दर्ज किया हो। राज्यों में लोकायुक्त जांच होती भी है तो उस पर ठोस कार्रवाई नहीं दिखती। त्वरित निर्णय लिए जाते हैं तो भ्रष्टाचार पर प्रभावी अंकुश और सरकारी धन का दुरुपयोग रोका जा सकता है।

समय पर पारदर्शी तरीके से काम होने लगे तो भ्रष्टाचरण ही नहीं दूसरी कई समस्याओं से निजात मिल सकती है। अब आम जन में भी भ्रष्टाचार के विरुद्ध खुल कर आवाज उठने लगी है। ऐसी स्थिति में समय रहते ठोस प्रयास करते हुए सार्वजनिक जीवन में शुचिता लानी होगी। भ्रष्टाचार के मामलों के उजागर होने पर उनसे सख्ती से निपटना होगा। (राजेंद्र प्रसाद शर्मा)