सवाल राहुल गांधी से पूछा गया लंदन में, वह आसान था। सवाल था कि क्या जब उनकी विदेश नीति तैयार होगी, तो उसमें गुटनिरपेक्ष (नान-अलाइनमेंट) जैसी चीज लाने का कोई इरादा है? इतना आसान था सवाल कि हां या ना में जवाब दिया जा सकता था। मगर राहुलजी ने जवाब ऐसे दिए: पहली बात तो ये है कि विदेश नीति जब बनती है किसी देश की, तो उसमें सबसे पहली चीज दुर्भाग्यवश उस देश का निजी लाभ हमेशा होता है। यहां तक जवाब सही था। मैं चैनल बदलने वाली ही थी कि राहुल ने विस्तार से समझाया कि उनकी नजर में भारत की विदेश नीति क्या होनी चाहिए।
कहा कि भारत एक ग्रामीण देश से शहरी देश में बदल रहा है और हमारे लोगों के लिए सबसे जरूरी चीज यही है कि वे हर तरह से तरक्की कर सकें। फिर जब गांधी परिवार के वारिस को याद आया कि सवाल विदेश नीति पर था, तो अंत में विषय पर लौट कर कहा कि उनकी नजर में भारत की विदेश नीति ऐसी होनी चाहिए जो दर्शा सके कि भारत ग्रामीण से शहरी देश बनने जा रहा है।
इतना अजीब, इतना बेमतलब था राहुलजी का यह जवाब कि लोगों ने उनके इस पेचीदा जवाब का वीडियो खूब फैलाया सोशल मीडिया पर। इस मुहिम में कूद पड़े भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता, इसलिए कि इस जवाब तक राहुल गांधी का लंदन का यह दौरा काफी कामयाब माना गया था। कई पत्रकार ऐसे थे उनकी टोली में, जिन्होंने राहुलजी के कपड़ों की तारीफ से लेकर उनकी हाजिर जवाबी के कसीदे पढ़े।
तुलना की गई भारत के प्रधानमंत्री से। एक महिला पत्रकार ने कहा कि उनकी नजर में राहुल की सबसे अच्छी बात यह लगी कि उनके सूट की धारियों में उनका नाम नहीं लिखा हुआ था। दूसरी अच्छी बात यह लगी कि जहां नरेंद्र मोदी ने आज तक किसी पत्रकार वार्ता में भाग नहीं लिया है, राहुल गांधी ने बेझिझक पत्रकारों के हर सवाल के जवाब दिए।
यहां भारत में कई वरिष्ठ पत्रकारों ने भी राहुल गांधी के इस विदेशी दौरे की खूब प्रशंसा की, यह कह कर कि राहुल गांधी से भारतीय जनता पार्टी के आला नेता इतने घबराए न होते, तो रोज उनकी आलोचना नहीं करते फिरते। ऐसा करके भारतीय जनता पार्टी ने साबित कर दिया है कि अगर अगले साल के आम चुनावों में कोई एक व्यक्ति है, जो मोदी को चुनौती दे सकता है, तो उस व्यक्ति का नाम है राहुल गांधी।
तारीफ से गूंजते इस माहौल में जब राहुल का विदेश नीति पर उलझा, नासमझ जवाब आया तो वही लोग, जो कसीदे पढ़ रहे थे, कहने लगे कि जब राहुल के आसपास उनके सलाहकार नहीं होते, तो उनके लिए साधारण सवालों के जवाब देना भी कठिन हो जाता है। आखिर उनके पास अगर कोई नई विदेश नीति बनाने का इरादा नहीं है, तो उस सवाल का जवाब न कह कर दे देते तो किसी को मालूम तक नहीं होता कि उन्होंने देश की विदेश नीति के बारे में सोचा ही नहीं है।
कहने का मतलब यह है कि जहां राहुलजी का यह दौरा काफी सफल रहा, उनके इस एक जवाब ने सारा काम खराब कर दिया है। निजी तौर पर मुझे बहुत पहले से अंदेशा रहा है कि राहुल गांधी का दिल राजनीति में नहीं है। अगर ऐसा न होता तो 2014 में आम चुनाव बुरी तरह हारने के बाद वे जरूर आत्मचिंतन में थोड़ा समय लगाते। ऐसा करने के बदले राहुलजी देश छोड़ कर चले गए थे कई हफ्तों तक। वापस लौटे तो संसद में पहुंच कर उन्होंने प्रधानमंत्री को ताना देते हुए कहा था कि उनकी ‘सूट-बूट की सरकार’ है, यानी ऐसी सरकार जो सिर्फ देश के अमीरों को खुश रखती है। गरीब मजदूर, किसानों की मोदी को कोई परवाह नहीं है।
मोदी को अपने हर भाषण में निशाना बनाते रहे राहुलजी और देखते-देखते 2019 का आम चुनाव आया, जिसमें उन्होंने मोदी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया और घोषित किया कि इस बार उनकी बहन, प्रियंका, भी सक्रिय राजनीति में आने वाली है। कई कांग्रेस नेताओं ने कहा था उस समय कि प्रियंका उनकी ब्रह्मास्त्र साबित होंगी। दादी पर गई हैं जी, देखना कितना फर्क लाती हैं प्रियंका। उस आम चुनाव के नतीजे जब आए तो मालूम हुआ कि कांग्रेस का उतना ही बुरा हाल रहा, जितना पांच साल पहले था। इसके बाद भी अपने इस सबसे पुराने राजनीतिक दल के अंदर कोई आत्मचिंतन, आत्ममंथन नहीं हुआ है आज तक। नतीजा यह कि अब भी कांग्रेस के पास एक ही मुद्दा है और वह है मोदी को गालियां देना।
इस अभियान में कांग्रेस पार्टी के नेताओं और प्रवक्ताओं के अलावा पत्रकारों की एक ‘सेक्युलर’ टोली भी लगी हुई है जी-जान से। ये वही लोग हैं, जिन्होंने बहुत बार कहा है कि भारत जोड़ो यात्रा के बाद राहुल गांधी का कद इतना ऊंचा हुआ है कि अब मोदी के बराबर हो गया है। काश, कि ये लोग थोड़ा देश की गलियों में घूम-फिर कर आम लोगों से बातें करते, ताकि वे समझ सकें कि क्यों इस देश का आम आदमी मानता है कि मोदी का कोई विकल्प नहीं है। उनकी नजर में मोदी ही हैं, जो देश को चला सकते हैं।
मैं अब मोदीभक्त नहीं हूं, लेकिन मुझे भी मानना पड़ेगा कि वर्तमान स्थिति यह है कि मोदी को हराने वाला कोई राजनेता दूर तक नहीं दिखता है। कांग्रेस ही मुकाबला दे सकती है, लेकिन अभी तक उसकी कोई चुनावी रणनीति नहीं दिखती है मोदी को गालियां देने के अलावा। ऐसा करने से आगे निकल नहीं पाए हैं राहुल गांधी।