23 मार्च, 2023 को गुजरात के एक मजिस्ट्रेट ने राहुल गांधी को मानहानि के अपराध (धारा 499, आइपीसी) का दोषी ठहराते हुए उन्हें दो साल की जेल की सजा सुनाई। सजा सुनाने के बाद मजिस्ट्रेट ने सजा को निलंबित कर दिया। बहरहाल, 24 मार्च को राहुल गांधी को लोकसभा की सदस्यता के अयोग्य करार देते हुए लोकसभा में उनकी सीट खाली घोषित कर दी गई।
उस मामले का ब्योरा कुछ यों है:
13-04-2019: राहुल गांधी ने कर्नाटक के कोलार में एक चुनावी भाषण दिया।
16-04-2019: पूर्णेश मोदी, तत्कालीन विधायक (भाजपा), ने गुजरात के सूरत में एक मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत दर्ज कराई कि राहुल गांधी ने पूरे मोदी समुदाय का मानमर्दन किया है।
07-03-2022: शिकायतकर्ता ने गुजरात उच्च न्यायालय में अपनी शिकायत पर दर्ज मुकदमे पर रोक लगाने की गुहार लगाई और स्थगन आदेश प्राप्त कर लिया।
07-02-2023: राहुल गांधी ने अडाणी समूह से जुड़े मुद्दों पर लोकसभा में भाषण दिया।
16-02-2023: शिकायतकर्ता ने मानहानि मामले में गुजरात उच्च न्यायालय से अपनी स्थगन याचिका वापस ले ली।
21-02-2023: उस मामले में मजिस्ट्रेट के समक्ष फिर से सुनवाई शुरू हो गई।
17-03-2023: सुनवाई पूरी हो गई और फैसला सुरक्षित रख लिया गया।
23-03-2023: मजिस्ट्रेट ने 168 पन्नों का फैसला सुनाया, जिसमें राहुल गांधी को दोषी करार देते हुए दो साल कैद की सजा सुनाई। इसके तुरंत बाद मजिस्ट्रेट ने सजा को निलंबित कर दिया।
24-03-2023: लोकसभा सचिवालय ने राहुल गांधी की अयोग्यता को अधिसूचित किया।
यह एक मामूली-सा मामला था, जो तीन साल तक चलता रहा, मगर उसने एकदम से तेजी पकड़ी और तीस दिनों के भीतर मुकदमे को फिर से शुरू करने से लेकर सजा सुनाने तक, बिजली की रफ्तार से कार्यवाही आगे बढ़ी। इसमें पहेली यह है कि किस चीज ने इसे इतनी अहमियत दी? शिकायतकर्ता ने अपनी ही शिकायत की सुनवाई पर स्थगन क्यों लिया, फिर राहुल गांधी के लोकसभा में बोलने के नौ दिन बाद उसने अपनी स्थगन याचिका वापस क्यों ले ली और रुकी हुई सुनवाई को तत्काल शुरू करने की मांग की?
मानहानि किसकी हुई
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि मोदी समुदाय/ जाति, जिससे खुद उसका भी संबंध है, की मानहानि हुई है। सच कहूं तो मुझे नहीं पता कि ‘मोदी’ नाम का कोई समुदाय है या ‘मोदी’ उपनाम वाले सभी लोग एक ही समुदाय या जाति के हैं। ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने एक विश्लेषण छापा है (28 मार्च, 2023) कि मोदी शब्द ‘किसी विशिष्ट समुदाय या जाति को नहीं दर्शाता। गुजरात में मोदी उपनाम का उपयोग हिंदू, मुसलिम और पारसी करते हैं। वैष्णव (बनिया), पोरबंदर के खरवास (मछुआरे) और लोहाना (जो व्यापारियों का एक समुदाय है) मोदी उपनाम लगाते हैं।’ अखबार ने यह भी उल्लेख किया है कि ओबीसी की केंद्रीय सूची में ‘मोदी’ नाम से कोई समुदाय या जाति नहीं है। साथ ही, बिहार या राजस्थान के लिए केंद्रीय सूची में कोई ‘मोदी’ नहीं है। गुजरात के लिए केंद्रीय सूची में ‘मोदी घांची’ है। मैंने छह दशक पहले जाति को त्याग दिया था और जाति-पांति को नहीं मानता, एक समुदाय/ जाति को (कथित रूप से तेरह करोड़ आबादी वाले- मजबूत) बदनाम करने का तर्क सुना तो सिर चकरा गया।
सजा निलंबित
शिकायत के मुताबिक यह मानहानि का मामला था। आइपीसी की धारा 500 के तहत सजा दो साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों हो सकती है। मुझे 1860 के बाद से (जब आइपीसी लागू हुआ था) ऐसे किसी भी मामले की जानकारी नहीं है, जिसमें मानहानि के मामले में अधिकतम दो साल कैद की सजा सुनाई गई हो। आमतौर पर जिन मामलों में तीन साल या उससे कम के कारावास की सजा सुनाई जाती है, अभियुक्त को जमानत दे दी जाती है, ताकि वह दोषसिद्धि और सजा के खिलाफ उच्च न्यायालय से राहत की अपील कर सके। हालांकि इस मामले में सजा सुनाए जाने के कुछ ही मिनटों के भीतर मजिस्ट्रेट ने खुद सजा को निलंबित कर दिया।
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(3) में प्रावधान है कि- ‘अगर व्यक्ति को किसी भी अपराध के लिए दोषी ठहराया गया है और उसे कम से कम दो साल के कारावास की सजा सुनाई गई है… उसे ऐसी सजा की तारीख से अयोग्य घोषित किया जाएगा…’। राहुल गांधी के मामले में दोषसिद्धि तो है, मगर उसमें ऐसा कोई वाक्य नहीं है, जिससे इस तरह का कोई कदम उठाने का संकेत मिलता हो। इसलिए, क्या उन्हें 23 मार्च, 2023 को अयोग्य ठहराया जाना उचित था? यह एक विचारणीय प्रश्न है। कई लोग यह सवाल पूछ और इसका जवाब तलाश रहे हैं। हालांकि, इस मामले में निहित शक्तियों पर कोई संदेह नहीं था। चाहे उन्होंने सवाल पूछा था या नहीं और उन्हें जवाब मिला था या नहीं, पर चौबीस घंटे के भीतर लोकसभा सचिवालय ने राहुल गांधी को अयोग्य घोषित कर दिया था।
अयोग्य ठहराने का अधिकार
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 102 (2) (ई) में प्रावधान है कि किसी भी व्यक्ति को ‘अगर वह संसद द्वारा या उसके बनाए गए किसी भी कानून के तहत अयोग्य पाया जाता है… तो सदस्य होने के नाते… अयोग्य घोषित किया जाएगा…।’ यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि इसमें इस्तेमाल किए गए शब्द ‘अयोग्य घोषित किया जाएगा’ हैं, न कि ‘अयोग्य होगा’। मतलब यह कि अयोग्यता का आदेश आवश्यक होगा। प्रत्यक्ष प्रश्न, जो लोगों ने पूछा है (जिनमें पीडीटी आचार्य, लोकसभा के पूर्व महासचिव भी हैं) कि अयोग्य घोषित करने का अधिकार किसके पास है?
अनुच्छेद 103 में इसका उत्तर मिल सकता है: यह कहता है कि ‘अगर कोई प्रश्न उठता है… तो वह प्रश्न राष्ट्रपति के पास निर्णय के लिए भेजा जाएगा’ जो ‘निर्वाचन आयोग की राय के आधार पर फैसला करेंगे।’ राहुल गांधी के मामले में, प्रश्न राष्ट्रपति को नहीं भेजा गया; न ही निर्वाचन आयोग ने उस पर कोई राय दी। तो फिर निर्णय किसने लिया? क्या यह माननीय अध्यक्ष ने लिया या लोकसभा सचिवालय के नाम से जानी जाने वाली संस्था ने? कोई नहीं जानता। विंस्टन चर्चिल के शब्दों में कहें तो, यह मामला और इसके नतीजे अब तक रहस्य में लिपटी पहेलियों की तरह हैं।