नेताजी, नेताजी को घर बुला कर कहिन कि वो एंकरवा आपके पीछे क्यों पड़ेला है? अगले रोज नेताजी अपने अखबार में लिखिन कि नेताजी कहिन कि वो एंकरवा क्यों पीछे पड़ेला है? एंकर निहाल! एंकरवा का नाम लेकर नेताजी ने एंकरवा को अमर कर दिया। यह सौभाग्य और किस एंकरवा को मिला? उस शाम एंकरवा जोर-शोर से दहाड़ता रहा कि वह सुशांत को न्याय दिला कर रहेगा, वह किसी से डरने वाला नहीं… उसकी प्रसारण शैली ऐसी ही है : रोेज देर तक जोर-शोर से मुकदमा चलाओ और दर्शकों को उत्तेजित करके नाम और नामा कमाओ!

सुशांत का मामला नेताओं, चैनलों के बीच फुटबाल बन चला है। कई कई टीमें एक साथ मैच में हैं : सुशांत के पिता बनाम सेना के प्रवक्ता, महाराष्ट्र पुलिस बनाम बिहार पुलिस, महाराष्ट्र बनाम सीबीआई, सरकार बनाम कोर्ट बनाम सबके वकील और सबके ऊपर चैनलों के वीर बहादुर एंकर!

एक दिन सुशांत की फटी डायरी के पन्ने, फिर उसके पिता का लंबा करुणार्द्र पत्र, फिर ‘घर को खोलने वाले’, फिर उसे पंखे से उतारने वाले, फिर उसकी गर्दन पर बेल्ट का निशान होना बताने वाले… यानी वही सवाल कि यह आत्महत्या है कि हत्या?
एक कहानी में कई उपकहानियां बोलने लगी हैं। एक दिन कहानी ‘दिशा सालियान’ की आत्महत्या/ हत्या की ओर मुड़ जाती है, फिर प्रवर्तन निदेशालय में पूछताछ के लिए आती-जाती रिया, उसके भाई, उसके पिता और सुशांत के सहायकों की ओर मुड़ी रहती है और अब कुछ चैनल रिया के काल डिटेल्स खंगाल रहे हैं… कहानी उलझती जा रही है!

एक बहस में एक बेरोजगार हीरो कहता है कि एक हीरोइन चौदहवीं मंजिल से ‘कूद’ गई थी। ऐसे ही कोई और ‘कूद’ जाती है। कोई पंखे से ‘लटक’ जाता है। जाहिर है, बालीवुड में माफिया है, लेकिन माफ करें, मैं किसी का नाम नहीं लूंगा…

शुरू में गर्जना-तर्जना करने वाले एंकर भी अब किसी का नाम लेने से बचते हैं। इसीलिए वे आजकल ‘डिस्क्लेमर’ लगाते हैं कि यहां कहे जा रहे विचार पैनलिस्टों के अपने हैं, जिनसे चैनल की सहमति आवश्यक नहीं है!

सिर्फ कंगना रनौत हिम्मत वाली नजर आती हैं, जिनने कथित ‘माफिया’ के सीधे नाम लिए, बाकी सारे एंकर उन्हीं के सहारे अपना-अपना ‘सुशांत का मुकदमा’ चला रहे हैं!
सुशांत के मामले से सबंधी आयोजित बहसें अब बोर करने लगी हैं, क्योंकि वही डायरी, वही गवाह, वही आरोपकर्ता और फिर भी सब बच-बच कर खेलते हैं कि हम किसी का नाम नहीं लेना चाहते।

कुछ लोग इस कहानी को लुढ़काने में मजा लेते दिखते हैं, जैसे कि एक प्रवक्ता जी सुशांत के पिता की दो शादियां ही करवा देते हैं… इसके बाद उसके पिता के भाई प्रवक्ता जी को धमकाने लगते हैं कि या तो वे अड़तालीस घंटे में माफी मांगे, नहीं तो मानहानि का मुकदमा कर देंगे। लेकिन न कहीं माफी नजर आती है, न कहीं मुकदमा! प्रवक्ता जी फिर सबको चेताने लगते हैं कि केस के मामले में अब सब को शांत रहना चाहिए!

यह सुनते ही एंकर चीखने लगते हैं कि हाय हाय! इनकी ये मजाल कि सुशांत के परिवार को चुप रहने की धमकी दें! पहले परिवार को बदनाम किया, अब धमकी दे रहे हैं! वे हमें भी चुप रहने के लिए कह रहे हैं। एक एंकर देर तक चीखता रहता है कि ये है कौन हमें ‘शांत’ रहने की कहने वाला?

जो चीखने का ही कमाते-खाते हों उनको चुप रहने की कहना कहां का न्याय है? लेकिन इस मामले ने सबको सत्य हरिश्चंद्र बना दिया है : सबको सच चाहिए, लेकिन सिर्फ अपना-अपना सच चाहिए। महाराष्ट्र को महाराष्टÑ पुलिस वाला सच चाहिए। बिहार को बिहार पुलिस वाला सच चाहिए। ईडी को ईडी वाला सच चाहिए। सीबीआइ कोे सीबीआइ वाला सच चाहिए, चैनलों को चैनल चलाने वाला सच चाहिए। सुशांत के पिता को पिता वाला सच चाहिए। रिया को रिया वाला सच चाहिए और बालीवुड माफिया को माफिया वाला सच चाहिए!

नाम सुशांत का और काम-धंधा अपना! सुशांत की मौत सबके लिए एक अवसर है। इसीलिए वह सबका ‘सुपर हीरो’ है! जब सुशांत जीवित था, तब किस चैनल ने उसे लिफ्ट दी?
जब तक सुशांत का मामला बिकता है, तब तक मामले को बजते रहना है! एक परिजन ने तो यह तक कहा कि वह तो ‘हालीवुड का मटीरियल’ था और उसी की तैयारी में था!

सिर्फ बंगलुरू के दंगे की खबर ने सुशांत की खबर को कुछ देर के लिए परदे से उतारा! एक ‘हेट पोस्ट’ और एक बड़ा हिंसक दंगा शुरू! एमएलए का मकान, दो थाने और दर्जनों गाड़ियां जला दी गईं। कई मारे गए। कई दंगाई गिरफ्तार किए गए। इसके बाद कट्टर धार्मिक बहसें चैनलों में आकर दर्शकों का धार्मिक विभाजन करने लगीं। इधर बहसें चलतीं, उधर परदे पर दंगाइयों के ऐलान नजर आते कि ऐसे वक्तों में हमें गाजी चाहिए। नारा-ए-तकबीर। अल्लाहो अकबर…

एक दिन हिंदी ने भी खबर बनाई। चेन्नई एयरपोर्ट पर डीएमके सांसद कनीमोझी जी के अंग्रेजी/ तमिल बोलने पर सीआरपीएफ के एक जवान ने यह कहने की गुस्ताखी कर दी कि ‘क्या आप इंडियन नहीं हैं?’ फिर क्या था, हिंदी की ठुकाई शुरू! पहले शशि थरूर जी ठोके, फिर कर्नाटक के पूर्व सीएम जी भी ठोक दिए। जिस भाषा को तैंतालीस फीसद लोग बोलते हों उसकी ठुकाई सिर्फ पांच फीसद तमिल बोलने वाले करें और कुछ अंग्रेजी एंकर ठुकाई करवाएं! यह अपने देश में ही हो सकता है!
अंग्रेजी चैनल वाले अंग्रेजी के लिए बोलते हैं, लेकिन हिंदी वाले चुप लगा जाते हैं! क्यों? हिंदी की खाते हो, तो हिंदी के लिए बोलो भी!