इधर पीएम ने बंदी बढ़ा कर लोगों को दी ‘सप्तपदी’, उधर दो चैनलों ने अपनी बगलें बजार्इं कि देखा, हमने कहा था न कि बढ़ेगी, और बढ़ गई!
इसके बाद, अधिकांश चैनलों पर पीएम के प्रशंसक जुटे, तो कुछ निंदक भी जुटे कि लीजिए, बिना किसी ठोस योजना के पीएम ने फिर बढ़ा दिया और आम जनता को राहत के लिए कुछ नहीं दिया!
एक प्रवक्ता ने समझाया कि सर जी, पीएम ने कहा है कि पूरी योजना कल आनी है, इंतजार करें… लेकिन जो इंतजार करे तो कैसा निंदक!
इसी बीच एक अंग्रेजी चैनल पर एक ‘हाई कलोटी’ बाबा जी ने कोरोना वायरस में ‘आध्यात्मिकता’ खोज ली और अंग्रेजी में बोले कि वायरस हमें मारने नहीं आया है। उसका ‘हैबिटेट’ सिकुड़ गया तो वह रहने की नई जगह तलाश करने लगा और इसी तलाश में हमारी ‘बॉडी’ में आ रहा है। जिसमें रहने को आ रहा वह उसे क्यों मारेगा? लेकिन जिनकी इम्यूनिटी कमजोर है, वे उसे नहीं झेल सकते। धीरे-धीरे यह हमारे शरीर में रहने लगेगा। तब तक टीका बन जाएगा और कंट्रोल कर लिया जाएगा। हमारे शरीर में यों भी बहुत से वायरस रहते हैं। धैर्य धारण करें! और अपने को आनंदित करें, ताकि आपकी रोग अवरोधकता बढ़े…
अध्यात्म और चिकित्सा विज्ञान का ऐसा ‘बाबा-मिक्स’ देख एंकर मैडम चकरा गर्इं और जल्दी से धन्यवाद देकर बे्रक पर चली गर्इं!
संकट की इस ‘बहती गंगा’ में डुबकी लगाने जब एक बाबा आए, तो दूसरा पीछे क्यों रहे? सो, दूसरे चैनल पर दूसरे बाबा जी भी हमारे धैर्य की परीक्षा लेते हुए, एक पार्क में खड़े होकर, हमें ‘स्लो’ होने और धैर्य धारण करने को कहते रहे! उनके सुनने वाले पार्क में भी ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ पर खड़े दिखते थे, लेकिन बाबा जी मास्क रहित ही थे!
इसी बीच मुंबई के बांद्रा में हजारों मजदूरों की भीड़ ने बड़ी ही अफरा-तफरी वाली खबर बनाई कि वे शिविरों में परेशान हैं और घर जाना चाहते हैं… सारा दृश्य बंदी और सामाजिक दूरी की ऐसी की तैसी करने वाला नजर आया!
‘लॉक डाउन’ को इस तरह ‘डाउन’ होते देख एक क्रांतिकारी चैनल की बांछें खिल गईं और उसके एंकर जी चहकने लगे कि हमने कहा था न कि गरीब दिहाड़ी मजदूर परेशान हैं। उनको कुछ नहीं मिल रहा है। वे घर जाना चाहते हैं…
प्रतिवाद में दूसरे एंकर सवाल करते रहे कि इनको किसने भड़काया? खबर आई कि एक स्थानीय नेता ने भड़काया। फिर खबर आई कि वाट्सऐप से भड़काया। फिर खबर हुई कि उस बंदे को धर लिया गया है, फिर खबर आई कि भीड़ को पुलिस ने शिविरों में ठेल दिया है।
एक चैनल के एक एंकर को भी ‘घर जाने’ की ‘फेक न्यूज’ फैलाने के लिए धरा गया और अगले रोज छोड़ दिया गया! एक अंग्रेजी एंकर ने खबर को निचोड़ा कि लोग धैर्य खो रहे हैं। पीएम को इनके लिए पैकेज देना चाहिए।
अगली शाम ऐसे ही दृश्य को दिल्ली के आइटीओ पुल पर एक चैनल ने दिखाया कि कुछ परेशान लोग घर जाने के लिए यहां भी इकठ्ठा हो रहे हैं, लेकिन बकिया चैनलों में इसे ‘ब्लैक आउट’ ही किया। फिर जिसने दिखाया था, वह भी चुप लगा गया!
इसके आगे ‘हॉट-स्पॉट्स’ और ‘सील्ड-जोन्स’ की खबरें रहीं। दिल्ली के सीएम चैनलों के जरिए रोजाना अपने इंतजामों के बारे में बता कर आश्वस्त करते रहे और यह भी चेताते रहे कि आप बहकावे में न आएं और ‘लॉकडाउन’ न तोड़ें! लेकिन तोड़ने वाले कहां मानें?
जब पटियाला के पास एक सिपाही ने एक ‘निहंग’ से उसका कर्फ्यू पास मांगा तो पास दिखाने की जगह उसने अपनी तलवार से उस सिपाही का हाथ ही काट दिया। आप उस सिपाही को सड़क पर तड़पता-छटपटाता देख सकते थे, लेकिन तुरंत एक चैनल पर एक धर्मरक्षक जी आकर कहने लगे कि वह ‘गैंगेस्टर’ था, ऐसे लोगों के कारण आप किसी धर्म को बदनाम नहीं कर सकते!
देखते-देखते तलवार चलाने वाला ‘गैंगेस्टर’ में बदल गया! बहादुर चैनलों की घिग्घी बंध गई! ऐसे ही तबलीगी जमात मरकज का नाम भी उनकी धमकी के चलते कई चैनलों के लिए ‘सिंगल सोर्स’ हो गया! यद्यपि कई अंग्रेजी चैनल ‘तबलीगी जमात’ को ‘तबलीगी जमात’ ही बुलाते रहे!
लेकिन वाह रे तबलीगी जमात का रुतबा, कि एक एंकर जोर-जोर से मांग करता रहा कि तबलीगी जमात के मौलाना पर उसके वीडियो के आधार पर और उनके प्रेरित तबलीगियों के आवागमन से बढ़े संक्रमण मामलों के आरोप में ‘केस’ क्यों नहीं किया गया? और अगर मुकदमा किया भी गया तो उसे ‘नान कल्पेबिल होमीसाइड’ वाली दफा में क्यों किया गया?
और वाह रे प्रवक्ता! वे इसी में मगन रहे कि मुकदमा किया तो! जब एंकर ने ठोंका कि ‘कल्पेबिल’ क्यों नहीं किया, तो कहने लगे कि कोरोना संकट की इस घड़ी में हम दंगे नहीं चाहते!
आप ‘निहंग’ को निहंग नहीं कह सकते! तबलीग को तबलीग नहीं कह सकते और मौलाना के वीडियो के बावजूद उन पर सही दफा में मुकदमा नहीं कर सकते! तब आप कर क्या सकते हैं?
फिर एक दिन मुरादाबाद के एक मुहल्ले की औरतों ने एक संक्रमित की जांच करने गई डॉक्टर और पुलिस टीम पर र्इंटें बरसार्इं, तो मालूम हुआ कि कुछ तत्व ऐसे हैं, जो कोरोना को फैलाने के पक्ष में ईटें बरसाने में यकीन करते हैं और जब पकड़े जाते हैं तो कुछ तत्व अल्पसंख्यक का कार्ड खेलने लगते हैं!
आप कोरोना संक्रमित को बचाने जाएं और आपको ही लोग मारने आएं, ऐसा किस देश में संभव है?
नहीं बचाओ तो पिटो और बचाओ तो पिटो! यही है कोरोना की दोधारी राजनीति!
