अरविंद केजरीवाल से जब पिछले साल पूछा गया प्रदूषण के बारे में, तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा था कि दिल्ली के मुख्यमंत्री होने के नाते वे अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन पंजाब में पराली जलाने पर जब तक पूरी पाबंदी नहीं लगती, दिल्ली में प्रदूषित हवाएं आती रहेंगी। इस साल ऐसा नहीं कह सके, इसलिए कि पंजाब में अब आम आदमी पार्टी की सरकार है।

सो, केजरीवाल पर दोष मढ़ने में लग गए भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता और आला नेता। कब आएगा वह दिन, जब हमारे राजनेता समझ पाएंगे कि प्रदूषण राष्ट्रीय समस्या है, शहरी नहीं? देश की राजधानी में अगर हवा इतनी गंदी है कि नीले आसमान की जगह एक मैली चादर बिछी है, जो इतनी जहरीली है कि स्कूल बंद करने पड़े हैं, डीजल गाड़ियों और ट्रकों पर पाबंदियां लग गई हैं।

मलहम है यह, समाधान नहीं, सो सवाल बनता है कि ऐसा हो क्यों नहीं रहा है? एक अनुभवी रणनीतिक पंडित होने के नाते मैंने सीखा है कि जब समस्या ऐसी हो, जिसका समाधान कठिन और पेचीदा हो, तो सरकारी अफसर अदृश्य हो जाते हैं, और राजनेता एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने में लग जाते हैं।

क्या अपने भारत महान में ऐसा होता है, क्योंकि हम-आप उनसे जवाब नहीं मांगते हैं। अंग्रेजी में कहावत है कि लोगों को वैसी ही सरकारें मिलती हैं, जो उनके लायक हों, सो क्या गलती हमारी है?

कुछ हद तक हो सकती है, लेकिन यह भी सच है कि कुछ ऐसी चीजें हैं, जिनमें आम लोग कुछ नहीं कर सकते हैं। गंभीर लापरवाही, जो साफ दिख रही है प्रदूषण को लेकर, वह हमारे शासकों की है। नीतियां बनाने का काम हमने उनको सौंपा है। शहरों की आबोहवा स्वच्छ रखना सरकारों की सबसे महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारियों में से है, लेकिन बावजूद इसके कि देश के आला राजनेता दिल्ली में रहते हैं, ऐसा क्यों है कि पर्यावरण के बारे में प्रधानमंत्री की आवाज सिर्फ अंतरराष्ट्रीय सभाओं में सुनने को मिलती है?

इन दिनों मिस्र में चल रहा है काप-27 सम्मेलन, जहां भारत उन देशों में से है, जो पर्यावरण के बिगड़े हाल का सारा दोष डाल रहे हैं विकसित पश्चिमी देशों पर और मांग रखे हैं कि इसका मुआवजा उनको देना पड़ेगा। यह बात कुछ हद तक सही है, लेकिन क्या हमारे शहरों की हवा को साफ रखना हमारी अपनी जिम्मेदारी नहीं है? क्या गंगा और यमुना जैसी पवित्र नदियों को साफ करना हमारी जिम्मेदारी नहीं है?

जब तक हमारे राजनेता इसको स्वीकार नहीं करते, तब तक भारत माता का हाल बिगड़ता रहेगा। ऐसा नहीं कि हमारे राजनेताओं ने हमारे करोड़ों रुपए लगाए न हों नदियां और शहरों की हवा साफ करने पर, लेकिन ऐसा जरूर है कि ये करोड़ों रुपए तकरीबन पूरी तरह बेअसर रहे हैं। किसकी जिम्मेदारी है यह? किससे मांगें जवाबदेही?

दिल्लीवासी होने के नाते यकीन मानिए कि मैंने अपने बचपन में देखे हैं सर्दियों के वे दिन, जब इस शहर की हवा इतनी साफ थी कि रात को आसमान में तारे दिखते थे, प्रदूषण की चादर नहीं। यकीन यह भी कीजिए कि उस समय भी यमुना का पानी इतना प्रदूषित हो चुका था कि उसको सिर्फ बागों में इस्तेमाल किया जाता था और जब माली डालते थे पानी पौधों को, तो बदबू घरों के अंदर तक आती थी। सवाल यह है कि इस नदी को आज तक साफ क्यों नहीं कर पाए हैं, हमारे शासक?

रही बात गंगाजी की, तो गंगा कार्य योजना जब पहली बार बनी थी राजीव गांधी के दौर में तो इंटैक नाम की संस्था के लिए मैंने एक रिपोर्ट लिखी थी, एक दोस्त के कहने पर। उसके बाद सरकारें आईं, सरकारें गईं और इस नदी की सफाई के लिए पानी की तरह पैसा बहाया गया, लेकिन आज भी गंगा में डुबकी वही बहादुर लोग लगाते हैं, जिनकी आस्था इतनी महान है कि वे अपने स्वास्थ्य की परवाह नहीं करते हैं।

ये बातें मैंने पहले भी अपने कई लेखों में लिखी हैं। पर्यावरण में विशेष रुचि रखने वाले पत्रकार हर दूसरे लेख में जिक्र करते हैं इन चीजों की, लेकिन राजनेताओं से अभी तक हम केवल झूठे वादे ही सुनते आए हैं, और कुछ नहीं। आज जब देश की बागडोर एक ऐसे प्रधानमंत्री के हाथ में है, जो संसद में पूरी बहुमत लेकर दो बार आए हैं, समझना मुश्किल है कि हमारे शहरों की हवा क्यों इतनी प्रदूषित है कि बच्चे-बूढ़े बीमार हो जाते हैं सिर्फ सांस लेकर। हमारी पवित्र नदियों का पानी इतना प्रदूषित क्यों है?

अपनी बात कहूं तो यह कहना पड़ेगा कि दिल्ली का हाल देख कर मुझे रोना आया इस बार और यादें आर्इं मेरे बचपन की दिल्ली की, जब सर्दी शुरू होते ही हम बाहर बागों में बैठ कर दिन भर ठंडी, ताजा हवा का मजा लेते थे।

दिल्ली का जो आज हाल है, वही हाल कभी देखने को मिलता था लंदन, न्यूयार्क जैसे महानगरों में कोई बीस बरस पहले। वहां अगर आज हवा साफ हुई है, तो इसलिए कि उन देशों के राजनेताओं ने पर्यावरण को साफ करने में न सिर्फ पैसे खर्च किए ईमानदारी से, बल्कि अपना ध्यान भी दिया।

केजरीवाल दोष देते हैं रोज केंद्र सरकार को और केंद्रीय मंत्री दोष देते हैं दिल्ली के मुख्यमंत्री को। कब तक हम बर्दाश्त करते रहेंगे अपने राजनेताओं की लापरवाहियां? कब तक बर्दाश्त करते रहेंगे उनकी बेकार बातें? क्या समय नहीं आ गया है अब असली समाधान मांगने का?