शुक्रवार! एक ही वक्त तीस शहरों में हिंसक प्रदर्शन और चैनलों में उनके वकील! लुधियाना, शोलापुर, दिल्ली, प्रयागराज, हैदराबाद, रांची, फिरोजाबाद, मुरादाबाद, लखनऊ, औरंगाबाद, मुंबई… कुल तीस शहरों में एक ही समय पर प्रदर्शन और हंगामा! पुलिस ठोंके तो मानवाधिकार, न ठोंके तो सरकार बेदम बेकार! शिकारी कब शिकार बन कर रोने लगे, कब शिकारी बन कर दहाड़ने लगे! किसे मालूम?
एक चैनल की बहस में एक पूछता है : नूपुर को गिरफ्तार क्यों नहीं करते? तो एंकर पूछता है : क्या ओवैसी को गिरफ्तार किया? सबा नकवी को गिरफ्तार किया? जरा देखिए: इकतीस पर एफआइआर और एक भी बड़ा नाम गिरफ्तार नहीं! सारी एफआइआर हवा में और ‘नफरत’ का बाजार गरम!
शुक्रवार के दिन को एक चैनल ने दिया नया नाम: ‘फ्राइडे फ्यूरी’! शुक्रवारी रोष! शुक्रवार इन दिनों एक डर का नाम भी है! फिर एक दिन भद्रवाह से भी एक धार्मिक नेता के नफरतिया कुबोल फूटे कि जो अजान के खिलाफ बोले, उसे पकड़ो…।
चैनल की एक बहस में आठ मुसलिम वक्ता प्रवक्ता। चार गरम चार नरम। कुछ अतिवादी, तो कुछ माफीवादी कि उसने माफी मांग ली और क्या? नूपुर के मामले पर मुसलिमों में भी मतभेद हैं। एक अन्य चर्चा में एक मुसलिम महिला वक्ता एक मुसलिम पुरुष वक्ता से पूछती है कि ‘गुस्ताखे-रसूल’ पर जैसा आक्रोश दिखा, वैसा ‘गुस्ताखे-शिवलिंग’ पर तो नहीं दिखा। क्यों? इतने में एक मुसलिम पुरुष वक्ता उस महिला पर ही बरस पड़ता है और एंकर को उसे डपटना पड़ता है।
एक चैनल की बहस में एक चर्चक सारे माहौल को देख दर्द के साथ कटाक्ष कर उठता है: ‘इस्लामिक रिपब्लिक आफ इंडिया’ में आपका स्वागत है। दाएं देखो, तो तलवारें हैं, सामने देखो तो पत्थर हैं…
एक ने कहा कि यह ‘गली की निषेधाज्ञा’ (स्ट्रीट वीटो) है। धार्मिक भीड़ें तय कर रही हैं कि आप क्या कहें? राज्य सत्ताएं भी एकदम बेदम हैं। वे कुंभकर्णी नींद सो रही हैं…
कई बहसों को देख-सुन कर लगता है कि नूपुर-चर्चा भी मना है! आपने पक्ष या विपक्ष में कुछ भी कहा, आप गए! इस पर न कोई कथित लिबरल बोलता है, न कथित सेक्युलर! ये निराला ‘जनतंत्र’ है प्यारे!
इधर प्रयागराज में दंगारोपित जावेद के मकान पर बुलडोजर चलता है, उधर इसके खिलाफ एक मुसलिम संगठन सुप्रीम कोर्ट में अपील करता है, तो कोर्ट कहता है कि कानून के अुनसार ही सब कुछ होना चाहिए… बदले की कार्रवाई नहीं लगनी चाहिए… एक चैनल ‘बदले की कार्रवाई’ वाले वाक्य को ज्यादा तरजीह देता है, जबकि अन्य चैनल ‘बुलडोजर पर स्टे नहीं’ वाली लाइन पर अधिक जोर देते हैं। चैनलों की भी अपनी राजनीति है न!
फिर एक चर्चा में एक एंकर पूछता है : क्या हिंदुओं के अधिकार नहीं? यानी ‘हिंदू लाइफ मैटर्स’! ईशनिंदा पर तो हाहाकार, लेकिन ‘हिंदू हेट’ पर चुप्पी! क्यों? लेकिन एक दिन जैसे ही राहुल भैया को नेशनल हेरल्ड मामले में ईडी पूछताछ के लिए बुलाती है, त्यों ही कांग्रेस में जान पड़ जाती है। उसके प्रवक्ता शहादत की मुद्रा में आ जाते हैं कि गांधी के अनुयायी गोडसे के अनुयायियों से नहीं डरने वाले…
एक एंकर ने रगड़ा कि भाई आप लोग काहे के स्वतंत्रता सेनानी? कहां वो गांधी और कहां ये गांधी? तीन दिन पूछताछ, तो तीन दिन कांग्रेसियों के दर्जनों शहरों में प्रदर्शन! किसी ने दिल्ली में टायर जलाए, तो किसी ने हैदराबाद में पुलिस का कालर पकड़ा!
बहरहाल, सरकार ने जैसे ही ‘अग्निपथ’ भर्ती योजना के अंतर्गत ‘अग्निवीर’ बनाने की घोषणा की, त्यों ही बिहार, यूपी और हरियाणा समेत दस राज्यों के शहरों में हिंसक प्रदर्शन दिखने लगे। आक्रोशित युवा रेल की पटरियों पर लेटते दिखने लगे। रेलों और स्टेशनों को जलाते दिखने लगे। कई गाड़ियां और कई स्टेशन धू धू कर जलते दिखे। देर तक, न कहीं पुलिस नजर आई, न फायर ब्रिगेड! दो लोगों की मौत भी हो गई!
इस ‘विरोध’ के बीज तभी पड़ गए, जब खबर चैनलों पर चार साल की भर्ती वाली यह योजना घोषित की गई। कई चैनलों पर कई पूर्व सेनाधिकारियों ने इस योजना की जम कर आलोचना की कि न ‘अग्निवीर’ को पेंशन है, न पद! चार साल बाद वह करेगा क्या? इसके बरक्स, योजना का पक्ष लेने वाले एकाध पूर्व सेनाधिकारी रक्षात्मक ही बने रहे।
जाहिर है, सरकार ने मीडिया के जरिए इस योजना को सही तरीके से समझाया ही नहीं! शुक्रवार की दोपहर जब बहुत कुछ जल चुका, तब एक बड़े सेनाधिकारी ने भर्ती की उम्र-सीमा तेईस वर्ष तक बढ़ाते हुए कहा कि ‘24 जून’ से ‘अग्निपथ’ की भर्ती शुरू हो रही है। तैयारी करो! यह ‘अग्निपथ’ की ‘अग्नि’ है, सरजी!