जब कुछ बड़े लोग टीवी में ‘तू तू मैं मैं’ करते हैं, तो दर्शक टूट के देखते हैं। यह देख कर अच्छा लगता है कि बड़े लोग भी अंतत: उसी गली छाप भाषा में हिसाब-किताब करते हैं, जिसमें आम लोग करते हैं। जैसे कि एक दिन एक ने ताल ठोक दी कि मैं उनकी इमेज को ध्वस्त करके रहूंगा। तुरंत जवाब आया कि ये इमेज ‘खान मार्केट’ में नहीं बनी, लंबी तपस्या से बनी है। लेकिन, तपस्या पर भी चुटकी ली गई कि अगर कुछ घंटे भी तपस्या की होती, तो इतनी घृणा न होती। घृणा के बोल बड़े उत्तेजक होते हैं। किसने कितनी घृणा घोली, किसने कितना गुस्सा दिखाया, किसने कितनी हिकारत से दूसरे को कुछ कहा।… हमारा नागरिक शब्दकोश नित्य नए-नए घृणावाची शब्दों से संपन्न होता जाता है। एंकर चर्चा के बहाने घृणा का मुरब्बा बनाने लगते हैं।
घृणा का मुरब्बा बनाने के शौकीन एक एंकर ने ‘इमेज को ध्वस्त करने’ और जवाब में ‘खान मार्केट गैंग’ की कुटाई करने का अखाड़ा खोल दिया।
फोटोफे्रमों में लाइव लटकायमान अंग्रेजी विचारकों के बीच ‘लटयन्स दिल्ली’ और ‘खान मार्केट गैंग’ को ध्वस्त करने का आह्वान हो चुका था। एक ओर लटयन्स और खान मार्केट के हमदर्द कह रहे थे कि वह तो एक ‘खाने-पीने की एक जगह’ है। सभी जाते हैं। राहुल जाते हैं, तो भाजपा वाले भी तो जाते हैं। तब उससे परेशानी क्यों? लटयन्स और खान मार्केट गैंग का ध्वंस चाहने वालों की राय थी कि चूंकि यह एलीट का ‘सहेट स्थल’ है, इसलिए हिकारत के योग्य है!
इसी बीच चीख-चीख कर चर्चा कराती हुई एक एंकर जोर से चीख पड़ी और एक ‘ब्रेकिंग सीन’ दिखाने लगी : देखिए देखिए! यहां सबके सब हथियारबंद हैं। किसी के पास पिस्तौल है, तो किसी के पास स्टेनगन है। सबने अपने चेहरे ढंके हुए हैं। देखिए देखिए, हमी सबसे पहले इनको रिपोर्ट कर रहे हैं। यह बंगाल का पुरुलिया इलाका है।… एक विचारक बोला, अगर ये पुरुलिया में हैं, तो पुलिस इनको गिरफ्तार क्यों नहीं कर रही? लेकिन अगले ही पल एंकर को बताना पड़ा कि ये चित्र पुरुलिया के नहीं, झारखंड के हैं। यह लोकल पत्रकार का कारनामा है। पुलिस ने बताया है। अरे भई! ऐसी ‘फेक न्यूज’ को ‘फेंकने’ से पहले इसे चेक कर लिया होता, तो क्या बेहतर न होता।
मतदान के छठे चरण के निपटते ही एक एंकर जी अपने पीआर में लग गए : देखिए, वे वोट डाल कर आए, तो कितने कान्फीडेंट दिखे। ये आए तो लापरवाह दिखे। साफ है, कौन जीत रहा है!
जब आप सिर्फ देहभाषा देख जीत-हार के बारे में बता सकते हैं, तब उन्नीस मई की शाम एक्जिट पोल दिखाने के पीछे क्यों पड़े हैं?
यों तो अपने नेताओं के मुखारबिंद से नित्य अनमोल बोल झरते हैं, लेकिन चुनाव के इन आखिरी चरणों में जैसे मोती झरे वैसे कभी न झरे! उनको सुन-सुन कर हम सब कुछ अधिक सभ्य ही हुए!
एक दिन कांग्रेस के खरगे जी को जोश आ गया और बोल पड़े कि अगर कांग्रेस को चालीस से अधिक सीटें मिलीं तो क्या वे फांसी लगाएंगे?
फिर एक दिन कमल हासन ने बताया कि नाथूराम गोडसे पहला हिंदू आतंकवादी था। इसके तुरंत बाद भाजपा के चार वक्ताओं ने लाइन लगा कर इस बयान के लिए कमल हासन को कंडेम किया।
कांग्रेस के एक नेता ने मानो गहन तुलनात्मक अध्ययन करके बताया, जैसे अरब दुनिया में आइएसआई, वैसे ही भारत में आरएसएस है। गनीमत कि किसी ने इसे न छुआ, वरना एक दिन और तू-तू मैं-मैं में जाता।
कमल हासन के नाथूराम गोडसे को आतंकवादी कहने के जवाब में हिंदू महासभा के एक नेता ने टीवी में आकर धमकी भरे स्वर में कहा : कमल हासन का अगर जीने से जी भर गया हो, तो हमें बता दें, हम उनको भी गांधी के पास पहुंचा देंगे। भगवान गोडसे का अपमान हम बर्दाश्त नहीं कर सकते।
ऐसे धमकी भरे वचनों का नोटिस किसने लिया? हमारी जानकारी में किसी ने नहीं!शायद यही अच्छा है!
कमल हासन के कथन के मानो जवाब में साध्वी प्रज्ञा सिंह ने कह दिया कि नाथूराम गोडसे देशभक्त थे, हैं और रहेंगे! इसके बाद सब चैनलों में भाजपा की पिटाई शुरू। संभालने के लिए भाजपा के प्रवक्ता ने सफाई दी कि ऐसे वचनों से भाजपा सहमत नहीं। बाद में साध्वी ने भी माफी मांग ली!
एक अंग्रेजी चैनल ने लाइन लगाई कि कांग्रेस ने भागवत की तुलना बगदादी से की!मगर यह तुलना किसी एंकर का ध्यान नहीं खींच सकी।
फिर आए कांग्रेस के परम हितैषी जी के ‘नीच’ वचन! एक अखबार में ‘नीच’ की व्याख्या करते हुए वे कह दिए कि ‘नीच’ के मामले में क्या उनके ‘नीच’ वचन भविष्यवाची नहीं थे?
जिस कांग्रेस में ऐसे आत्ममुग्ध हितैषी हों, उसे दुश्मनों की क्या जरूरत!
अगला बड़ा सीन कोलकाता ने दिया। भाजपा अध्यक्ष का लंबा रोड शो। वह जैसे ही विद्यासागर कॉलेज पहुंचा कि पथराव और आगजनी शुरू हो गई। इस हंगामे में ईश्वरचंद्र विद्यासागर की मूर्ति तोड़ दी गई। शाह ने कहा, टीएमसी के गुंडों ने तोड़ी। टीएमसी ने चौवालीस वीडियोज में से कुछ को दिखा कर कहा कि भाजपा के गुंडों ने तोड़ी! पुलिस ने कुछ ‘गुडों’ को गिरफ्तार कर लिया। ‘किसने तोड़ी’ की बहस जारी ही थी कि चुनाव आयोग अपने असली रूप में आया और दो बड़े अफसर तुरंत हटा दिए, ताकि कानून-व्यवस्था नियंत्रण में रहे। फिर भी भाजपा और टीएमसी की हुंकार-फुंकार जारी है। एक ओर से नारा आता है ‘जय श्रीराम’ तो दूसरी ओर से जवाबी नारा आता है ‘जय काली कलकत्ते वाली!’

