India’s Most Wanted Movie Review and Rating: इस फिल्म में अर्जुन कपूर को छोड़कर कोई बड़ा स्टार नहीं है। कह सकते हैं कि ये फिल्म की बड़ी खूबी है। पर इसमें इससे अधिक खूबी ढूंढना काफी मुश्किल होगा। फिल्म कुछ हद तक अक्षय कुमार वाली फिल्म `बेबी’ का एक नया संस्करण लगती है। उसमें जिस आतंकवादी को एक अरब देश में जाकर जाकर पकड़ा गया था वो हाफिज सईद से मिलता जुलता था। इस फिल्म में यासीन भटकल जैसे शख्स को पकड़ने का ड्रामा रचा गया है जो शुरू से अंत तक बहुत ढीले ढाले तरीके से संपन्न होता है।

भटकल को 2013 में भारत नेपाल सीमा पर बिहार के मोतीहारी के पास गिरफ्तार किया गया था। फिल्म में ज्यादातर घटनाएं घटती हैं नेपाल में, खासकर वहां के शहर पोखरा में। और प्रभात (अर्जुन) नाम के खुफिया अधिकारी के साथ जो और लोग उसकी टीम में है वो बेहद साधारण हैं और अपना पैसा लगाकार इस मिशन पर गए हैं। किसी ने चार हजार दिए हैं तो किसी से बीस हजार। पूछेंगे क्यों? इसलिए कि भारत सरकार और उसकी खुफिया एजेंसी इंटेलीजेंस ब्यूरो को भरोसा ही नहीं है कि प्रभात के पास जो जानकारी है वो सही है, इसलिए सारा इंतजाम खुद करना पड़ा।

और हां। फिल्म में जो इंटेलीजेंस ब्यूरो के जो अधिकारी और कर्मचारी इस काम में लगे हैं वो दिल्ली ऑफिस के नहीं है बल्कि पटना के हैं। इसलिए पटना के गोलघर के दृश्य भी इसमें हैं। ये शायद इसलिए हैं कि दिल्ली मे शूटिंग करने मे काफी पैसे खर्च होते हैं। इसलिए निर्देशक ने सोचा है कि चलो कम पैसे में काम चला लेते हैं। अर्जुन कपूर के अलावा किसी कलाकार पर भी ज्यादा खर्च नही हुआ होगा। और जिस शख्स को यहां पकड़ने के लिए सारा तामझाम किया गया है वो एक मदरसे का मौलवी दिखता है, हिंदुस्तान में कई जगहों पर बम विस्फोट करानेवाला कोई आतंकवादी नहीं। हां, नेपाल में जिस व्यक्ति ने मुखबिर काम किया है, यानी जीतेंद्र शास्त्री का काम बहुत अच्छा है और उनकी हरकत को जिस के दृश्यों में बांधी गया है उसमें पर्याप्त रहस्य दिखता है। बाकी फिल्म के गाने, संगीत या सिनेमेटोग्राफी में कोई खास दम नहीं है। अर्जुन कपूर भी बेहद बोदे लगे हैं। उनको दो चार अच्छे एक्शन सीन भी दे दिए होते तो शायद फिल्म जम जाती।

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