संजय लीला भंसाली की ये फिल्म भव्यता और इतिहास में लिपटी एक ऐसी प्रेम कहानी है जो धर्म या मजहब की दीवार से टकराती है और इसी टकराहट की वजह इसमें षड़यंत्र का ताना बाना भी है। भंसाली ने अठारहवीं सदी के पूर्वार्द्ध के मराठा नायक बाजीराव पेशवा और बुंदेला राजा छत्रसाल की बेटी (एक मुसलिम औरत से, हालांकि यहां भी इतिहासकारों में मतभेद है) मस्तानी के रिश्तों को आधार बनाकर फिल्म की कहानी रची है। छत्रसाल अपने राज्य की रक्षा के लिए बाजीराव से अनुरोध करते हैं और बाजीराव उनकी तरफ से लड़ाई के लिए आते हैं वहीं उनकी मुलाकात मस्तानी से होती है। मस्तानी खुद भी एक योद्धा हैं और वीरांगना भी। उसकी तलवारबाजी के आगे बड़े बड़े सूरमा फीके हैं पर उसकी अदाएं भी कातिल है। फिर बाजीराव कैसे बच जाते। बाजीराव और मस्तानी के बीच प्रेम पलता है। बाजीराव की शादी हो चुकी है। काशीबाई से। पर बाजीराव मस्तानी को पत्नी का दर्जा देना चाहते हैं। ये न बाजीराव की मां राधाबाई को स्वीकार है और न पेशवा के दूसरे कई दरबारियों को। वजह ये नहीं कि मस्तानी दूसरी औऱत है। वजह ये है कि वो मुसलिम है। एक द्वंद्व शुरू होता है और कई जिंदगियों पर असर डालता है। वीरांगना मस्तानी का दिल आहत होता है।
`बाजीराव मस्तानी’ में रणभूमि में लड़ा जानेवाला युद्ध भी है, जो बेहद प्रभावशाली है, और राजमहलों के भीतर होनेवाली राजनैतिक पैंतरेबाजी भी। और इन दो छोरों के बीच हैं एक पुरुष और दो स्त्रियां- बाजीराव, मस्तानी और काशी।। बाजीराव ने मस्तानी को चाहा है और वो भी बाजीराव को उसी जज्बे से चाहती है। और काशी? वह क्या करे? वो भी बाजीराव से प्रेम करती है पर मस्तानी से कैसा संबंध ऱखे? उसे स्वीकार करे या अस्वीकार? अस्वीकार किया नहीं जा सकता और स्वीकार करना कठिन है। काशी दोनों को बीच झूलती है।
इन्हीं और ऐसे ही कई जजबाती किनारो को छूती बाजीराव मस्तानी मानवीय भावनाओं के कई पहलुओं को दिखाती है। रनबीर सिंह ने बाजीराव का किरदार निभाया है और दीपिका पादुकोण ने मस्तानी का। रनबीर बाजीराव के चरित्र के कई सूक्ष्म मनोभावों के पकड़ते हैं और साथ ही उनके रणबांकुरे रूप को भी सामने लाते हैं। प्रियंका चोपड़ा बाजीराव की पत्नी काशी बनी हैं। प्रियंका हालांकि कम दृश्यों में दीखी हैं पर जितना दिखीं उसमें वे एक ऐसी किरदार को सामने लाती है जो अपनी गरिमा भी स्थापित करती है और उदारता भी। और मस्तानी की भूमिका में दीपिका एक तरफ युद्ध के मैदान में अपनी बहादुरी दिखाती है तो दूसरी तरफ बाजीराव के लिए संपूर्ण समर्पण। जिस `पिंगा’ गाने के दृश्य में प्रियंका और दीपिका एक साथ दीखी हैं वो भंसाली की एक और फिल्म `देवदास’ की याद दिलाती है जिसमें माधुरी दीक्षित और ऐश्वर्या राय एक साथ `डोला रे डोला’ गाते हुए दीखी थीं।
भंसाली अपनी फिल्मों में गाने को जिस तरह फिल्माते हैं वो सिर्फ संगीतात्मक नहीं होता बल्कि कहानी के भीतर निहित सघनता को बढ़ाने वाला होता है। बाजीराव मस्तानी के कई गाने ऐसे हैं। `तुझे याद कर लिया है आयत की तरह’ और `अलबेला सजन आयो री’ बोल वाले गाने ऐसे है। पर बात सिर्फ बोल और भावों की सघनता की नहीं है। भंसाली जिस तरह गाने को दृश्यों से सजाते हैं उससे लगता है कि कोई पेंटर एक बड़े कैनवास पर रंग बिरंगी दृश्यावली को उकेर रहा है। उनके गानों की कोरियोग्राफी और उनका फिल्मांकन भी लाजबाब होता है। इन गानों को सुनने का आनंद तो हैं लेकिन देखते हुए सुनने का अलग मजा है। भंसाली की ये फिल्म वस्त्रसज्जा यानी कॉस्ट्यूम के खयाल से भी लुभावनी है। कुछ साल पहले भंसाली की फिल्म `सांवरिया’ और शाहरुख खान की `ओम शांति ओम’ एक ही दिन रिलीज हुई थीं और इसमें जीत हुई थी `ओम शांति ओम’ की। इस बार `बाजीराव मस्तानी’ और `दिलवाले’ आमने सामने हैं। देखते हैं किसकी जीत होती है।
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