`एयरलिफ्ट’ उस आधुनिक इतिहास पर आधारित है, जिसे हम भूल गए थे। करीब 26 साल पहले अगस्त 1990 में सद्दाम हुसैन की अगुआई वाले इराक ने पड़ोसी देश कुवैत पर हमला कर दिया था। जंग से घिरे कुवैत में उस समय लगभग एक लाख सत्तर हजार भारतीय फंस गए थे। एयर इंडिया ने भारतीय सेना के सहयोग से 59 दिनों में इतने सारे भारतीय को वहां से निकाला। भारत की यह कोशिश गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज है और दुनिया में अब तक का सबसे बड़ा बचाव अभियान है। उस पूरे अभियान में कोई अकेला नायक नहीं था। कई स्तरों पर बनी योजना और उसे पूरा करना ही इस मिशन की कामयाबी की वजह बना।

फिल्म इसी घटना पर आधारित है और ये अलग से कहने की जरूरत नहीं कि ये उस मामले का फिल्मीकरण है, जिसमें हीरो हीरोइन ( अक्षय कुमार और निमरत कौर) का रोमांस और नाच गाना भी शामिल किया गया है। इस फिल्मीकरण के बावजूद`एयरलिफ्ट’ एक ऐतिहासिक वाकये की याद दिलाती है। जिस समय ये घटना हुई थी, उस वक्‍त भारत और इराक के रिश्ते अच्छे थे, इसलिए कुवैत पर इराकी हमले ने क्या तबाही मचाई, फिल्‍म में इसकी ज्‍यादा चर्चा नहीं हुई। ये भी सही है कि बिना इराक के सहयोग के इतना बड़ा ऑपरेशन चलाना और एक लाख सत्तर हजार भारतीयों का वापस लाना  मुमकिन नहीं था। इंद्र कुमार गुजराल उस समय विदेशमंत्री थे और उनका राजनयिक प्रयास कारगार रहा था।

खैर, फिलहाल फिल्म की बात करें। अक्षय कुमार ने इसमें रंजीत कात्याल नाम के भारतीय मूल के एक ऐसे सफल कारोबारी की भूमिका निभाई है जो कुवैत में रहता है और उसे ही अपना देश मानता है। उसे भारत या भारतीयों से खास लेना देना नहीं है। उसकी एक खूबसूपरत पत्नी अमृता कात्याल (निमरत कौर) और एक छोटी बच्ची है। सब कुछ ठीक से बीत रहा होता है कि अचानक कुवैत पर इराक का हमला होता है। हमले के बाद आम कुवैती की ही हालत खराब है, ऐसे में प्रवासी भारतीयों की स्थिति का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। ऐसे माहौल में रंजीत कात्याल की दुनिया बदल जाती है औऱ साथ ही उसके सोचने का तरीका भी। उसके ड्राइवर को गोली मार दी जाती है। उसे सदमा लगता है, फिर वह खुद को संभालता है और भारतीयों को वहां से बाहर निकालने की जुगत में लग जाता है।

अक्षय जज्‍बाती दृश्यों में कम ही जमते हैं। हालांकि, फ‍िल्‍म में ड्राइवर के मारे के जाने के बाद उनके चेहरे पर दिखा खौफ और सदमे का भाव अलग तरह का प्रभाव छोड़ता है। यहां एक नए तरह के अक्षय दिखते हैं। निमरत कौर का चरित्र भी बेहतर तरीके से उभरकर आता है। शुरुआत में वो एक ऐसी पत्नी होती हैं, जिसे पति से कोई मतलब नहीं, लेकिन बाद में वे ही उसकी मदद करती हैं। पूरब कोहली ने इब्राहीम दुर्रानी नाम के शख्स का किरदार निभाया है। फिल्म मे भारतीयों की निकासी वाला हिस्सा थोड़ा जल्दबाजी में फिल्‍माया गया है। उसे थोड़ा और विस्तार देने की जरूरत थी। इसलिए इस दृश्‍यों में ज्‍यादा गहराई नहीं आ पाई है। निर्देशक राजा कृष्ण मेनन ने दावा किया था कि इस फिल्म में बॉलीवुड की परंपरागत फॉर्मूलेबाजी नहीं है। इसके उलट, फिल्म के पहले हिस्से में नाच-गाने कई दृश्य हैं जिनकी खास जरूरत नहीं थी। असल में फार्मूलेबाजी छोड़ने का दावा तो कई निर्देशक करते हैं लेकिन आखिर में आत्मविश्वास की कमी या फाइनेंसर के दबाव आद‍ि की वजह से उसमें फंस जाते हैं। मेनन के साथ भी ऐसा ही हुआ है। हालांकि, इन सबके बावजूद, `एयर लिफ्ट’ अपेक्षाकृत बेहतर फिल्म हैं। ये भी जोड़ा जाना चाहिए कि इस फ‍िल्‍म पर हॉलीवुड की कई फिल्मों का असर द‍िखता है, जिसमें 2012 में बनी `आर्गो’ प्रमुख है।

निर्देशक- राजा कृष्ण मेनन

कलाकार- अक्षय कुमार, निमरत कौर, पूरब कोहली, फेरना वजीर, कुमद मिश्रा