नीम करोली बाबा का नाम देश के चर्चित संतों में शुमार है। नैनीताल के पास पंतनगर में उनके समाधि स्थल पर आज भी हजारों की तादाद में भक्त इकट्ठा होते हैं, पूजा-अर्चना करते हैं। नीम करोली बाबा के भक्तों में दुनिया के तमाम दिग्गज शामिल हैं, मसलन-फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग से लेकर एपल के संस्थापक रहे स्टीव जॉब्स आदि।
नीम करोली बाबा को लेकर तमाम किवदंतियां और कथाएं प्रचलित हैं। ऐसा ही एक रोचक किस्सा उनके कंबल से जुड़ा है। बाबा हमेशा मोटा कंबल ओढ़े रहते थे। साल 1967 में नीम करोली बाबा से प्रभावित होकर अमेरिका के रहने वाले रिचर्ड अल्पर्ट नाम के शख्स कैंची धाम आश्रम पहुंचे।
रिचर्ड अल्पर्ट बाबा से इतने प्रभावित हुए थे कि वे बाबा से दीक्षा लेकर, उनके शिष्य बन गए और अपना नाम अल्पर्ट रामदास रख लिया। अल्पर्ट रामदास ने अपने गुरु बाबा नीम करोली के ऊपर लगभग 15 पुस्तकें लिखीं, इनमें सबसे अधिक मिरिकल ऑफ लव ( The Miracle of Love ) नामक किताब प्रसिद्ध हुई। इसी किताब के जरिये बाबा नीम करोली को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली। इस किताब में बाबा के कंबल ओढ़ने को लेकर एक किस्सा है, जो काफी फेमस हुआ।
कहानी बाबा नीम करोली के कंबल की
‘मिरिकल ऑफ लव’ में एक घटना का जिक्र किया गया है और इसे साल 1943 का बताया गया है। उस समय द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था। युद्ध में ब्रिटिश सेना की तरफ से कई भारतीय भी लड़ रहे थे। इसी युद्ध में वर्मा फ्रंट पर एक बुजुर्ग दंपति का इकलौता बेटा भी था। एक दिन बाबा उस दंपति के घर पहुंचे। बुजुर्ग दंपति ने अपना दुख बाबा को बताया तो बाबा बोले कि चिंता मत करो, तुम्हारा बेटा एक माह में वापस आ जायेगा।
उस रात बाबा अपना कंबल लपेटकर बिना खाए पिये दंपति के घर सो गए थे। रात में बाबा के कराहने की आवाज आई, दंपति ने सोचा कि बाबा भूखे सोए हैं और ऊपर से इस तरह से कराह रहे हैं, जरूर उन्हें कोई कष्ट होगा। किताब में दंपति के हवाले से लिखा है कि बाबा ऐसा कराह रहे थे जैसे उनपर कोई लाठियां बरसा रहा हो। इसे देखकर दंपति भी रात भर काफी परेशान थे।
अगली सुबह बाबा ने उठते ही सबसे पहले अपना कंबल मोड़कर दंपति को देते हुए कहा कि इसे बिना देखे, बिना खोले ले जाकर गंगा जी में प्रवाहित कर दो। दंपति ने बाबा की आज्ञा का पालन करते हुए कंबल उठा लिया, कंबल बहुत भारी था, जैसे उसमें कोई बहुत वजनी सामान रखा हुआ हो। लेकिन बाबा की आज्ञा मानते हुए उन्होंने उस भारी कंबल को गंगा जी मे प्रवाहित कर दिया। जब युद्ध खत्म हुआ तो दंपति का बेटा सकुशल वापस लौटा। उसने अपने माता-पिता को एक बात वाकया सुनाया, जो ठीक उसी दिन का था जिस दिन बाबा दंपति के यहां ठहरे थे। इसे सुनकर वे दंग रह गए।
वापस वतन लौटे बेटे ने क्या बताया था
बेटे ने बताया कि युद्ध के दौरान वह जापानी सैनिकों के बीच अकेला फंस गया था, लेकिन कुछ ऐसा चमत्कार हुआ था कि उस रात जापानी सैनिक उसके ऊपर गोलियां बरसाते रहे, लेकिन उसे एक गोली छू तक नहीं पाई थी। दूसरे दिन सुबह ब्रिटिश फौज उसकी सहायता के लिए आई और वह सकुशल वापस आ गया।
इसके बाद बूढ़े दंपत्ति की आंखें भर आईं, क्योंकि उनका बेटा जिस रात का जिक्र कर रहा था वह वही रात थी जब बाबा नीम करोली उनके घर आये थे। उनको बाबा के कराहने और भारी कंबल का राज समझने में देर ना लगी। नीम करोली बाबा के तमाम भक्त इसीलिये उनके कंबल को ‘बुलेटप्रूफ’ कंबल भी कहते हैं।
कौन थे नीम करोली बाबा?
नीम करोली बाबा का मूल नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था। उनका जन्म सन 1900 के आसपास फिरोजाबाद के अकबरपुर गांव में हुआ था। पिता का नाम दुर्गा प्रसाद शर्मा। बाबा नीम करोली की प्रारंभिक शिक्षा अकबरपुर में ही हुई थी, लेकिन 11 वर्ष की उम्र में उनका विवाह हो गया था। बाद में वे आध्यात्म की तरफ मुड़ गए। नीम करोली बाबा को उनके भक्त हनुमान जी का अवतार मानते हैं। बाबा हनुमान जी के परम भक्त थे। नीम करोली बाबा ने अपने जीवनकाल में दुनिया भर में हनुमान जी के 108 मंदिर बनवाए थे।