प्रत्येक मनुष्य के जीवन में उनका जीवनसाथी एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। जीवन साथी अगर अनकूल हो तो व्यक्ति बड़ी से बड़ी कठिनाइयों का सामना आराम से कर लेता है। वहीं अगर जीवनसाथी प्रतिकूल मिल जाये तो वह जीवन भर परेशानियों से घिरा रहता है। हमनें अक्सर देखा है जब भी किसी लड़का और लड़की की शादी के संबंध की शुरूआत होती है तो सबसे पहले उनकी जन्मपत्रिकाओं का मिलान किया जाता है। जिसमें सप्तम भाव, सप्तमेश, नवांश, गुरु और शुक्र ग्रह का विचार किया जाता है। जिसमें सबसे अहम भूमिका होती है नवांश कुंडली की।
अगर नवांश कुंडली का सप्तम भाव सकारात्मक है तो मनुष्य का वैवाहिक जीवन अच्छा चलेगा और अगर नकारात्मक है तो लड़ाई, झगड़े के साथ संबंध विच्छेद तक की नौबत आ सकती है। आइये आज जानते हैं नवांश कुंडली के बारे में खास बातें…
नवांश कुंडली खोलती है वैवाहिक जीवन के राज:
नवांश कुंडली का वैदिक ज्योतिष में बड़ा महत्व माना गया है। जन्म कुंडली के बाद ज्योतिषी सबसे अधिक नवांश कुंडली का विश्लेषण करते हैं। जिसे D9 चार्ट भी कहा जाता है। इस कुंडली का विश्लेषण करके व्यक्ति का वैवाहिक जीवन, पति- पत्नी के बीच संबंध और तालमेल का पता लगाया जाता है। कहा जाता है जिस तरह लग्न कुंडली आपके शरीर को दर्शाती है उसी तरह नवांश कुंडली आपकी आत्मा के बारे में जानकारी देती है। वहीं लग्न कुंडली को बीज के रूप में देखा जाता है जबकि फल के रूप में नवमांश को देखा जाता है।
नवांश कुंडली के शुभ और अशुभ योग-
- कोई ग्रह लग्न कुंडली और नवमांश में एक ही राशि में बैठा हुआ है तो उसे वर्गोत्तम माना जाता है। वर्गोत्तम ग्रह सकारात्मक फल देते हैं। यदि सूर्य ग्रह वर्गोत्तम है तो व्यक्ति को प्रतिष्ठा और सम्मान की प्राप्ति होती है।
- चंद्र ग्रह के वर्गोत्तम होने पर व्यक्ति शालीन होता है और उसकी स्मरण शक्ति भी अच्छी होती है, मंगल के वर्गोत्तम होने पर व्यक्ति में उत्साह की अधिकता और नेतृत्व की क्षमता देखी जाती है।
- बुध का वर्गोत्तम होना व्यक्ति को बुद्धिमान और तार्किक बनाता है। गुरु के वर्गोत्तम होने से व्यक्ति ज्ञानी और सम्मान प्राप्त करने वाला बनाता है। शुक्र व्यक्ति को सौंदर्य और कला प्रेमी बनाता है। (यह भी पढ़ें)- 2022 में शनि की इस राशि में बनने जा रहा है त्रिग्रही योग, इन 4 राशि वालों के जीवन में होंगे कई बड़े बदलाव
- यदि किसी जातिका की नवांश कुंडली के अष्टम भाव में पाप ग्रह हो या यह भाव पाप ग्रहों से दृष्ट हो तो यह योग वैधव्य कहलाता है। इस योग के कारण पति- पत्नी एक दूसरे से दूर रह सकते हैं। या उन दोनों में आपसी समझ की कमी हो सकती है।
- किसी जातक की नवांश कुंडली की लग्न में मंगल स्थित हो और सप्तम भाव में शनि स्थित हो तो जातक का जीवनसाथी रोगी व शारीरिक रूप से कमजोर हो सकता है।
- नवांश का स्वामी यदि जन्मांग में द्वितीय स्थान में हो तो उसे विवाह बाद धन की प्राप्ति हो सकती है।