शास्त्री कोसलेन्द्रदास

वैदिक काल से आज तक जो चार उत्सव-त्योहार भारतीय समाज में जीवित हैं, उनमें विजयादशमी भी एक है। रक्षाबंधन, दीपावली और होली के अतिरिक्त विजया दशमी उन सर्वप्राचीन उत्सवों में शामिल है, जो अनादि काल से भारतीय समाज को सम्मोहित किए हुए है। यह बात जरूर है कि विजयादशमी का वैदिक महत्त्व अब बहुत जरा-सा रह गया है। इसे मनाने की परंपरा जितनी बिगड़ी, बदली और बनी, उतनी किसी दूसरे प्राचीन त्योहार की नहीं। विजया दशमी को आम बोलचाल में दशहरा कहा जाता है।

लोगों की धारणा में यह दिन धर्मावतार श्रीराम की राक्षसराज रावण पर विजय से जुड़ा है। लोगों का मानना है कि दशहरे के दिन ही भगवान श्रीराम ने वेदधर्म के विरोधी दुराचारी रावण का संहार कर सनातन धर्म की विजय का ध्वज फहराया था। अत: वे इसे अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक कहने लगे हैं। आजकल तो दशहरे का सीधा-सा मतलब रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले जलाकर श्रीराम की विजय का हर्ष-उल्लास मनाना मात्र रह गया है। इससे आगे-पीछे के तथ्य इतने समाज में इतने अल्पज्ञात हो गए हैं, जिन्हें जाने बिना विजया दशमी को समझ पाना बहुत कठिन है।

दशहरा और रामलीला

दशहरे को समझने के लिए देश में चल रही रामलीला और उसके इतिहास को जानना जरूरी है। विद्वानों का मानना कि आज के दौर में चल रही रामलीला की शुरुआत पंद्रहवीं शताब्दी के आसपास काशी में हुई। जब गोस्वामी तुलसीदास ने कालजयी ग्रंथ रामचरितमानस की रचना की तो रामलीला के आयोजनों में यकायक भारी वृद्धि हुई। काशी से शुरू होकर रामलीला का व्यापक असर उत्तरप्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, हरियाणा सहित आधे भारत में फैल गया। याद कीजिए, थोड़े समय पहले तक रामलीला मनोरंजन के साथ ही ज्ञानवृद्धि का बड़ा साधन था। उत्तरी भारत से लेकर मध्य भारत में रामलीला के उत्सव शारदीय नवरात्र के नौ दिनों में चलते हैं। रामलीला में श्रीराम दसवें दिन यानी दशहरे को राक्षसराज रावण का वध करते हैं। इस कारण रावण वध के प्रसंग को रोचक बनाने के लिए खपच्चियों और घास-फूस से उसका पुतला बनाकर दहन करने का रिवाज रामलीला में चल पड़ा। पहले यह उल्लास और हंसी-खुशी के लिए जोड़ा गया अभिनय मात्र था जो धीरे-धीरे यह मंचन इस विश्वास के रूप में स्थापित हो गया कि दशहरे को ही श्रीराम ने रावण को मारा था।

दशहरे को श्रीराम ने किया प्रस्थान

वाल्मीकि रामायण में श्रीराम ने किष्किंधा (महाराष्ट्र) के ऋष्यमूक पर्वत पर चातुर्मास अनुष्ठान किया था। श्रीराम का यह अनुष्ठान आषाढी पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन मास में शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि तक चला था। इसके ठीक तुरंत बाद विजया दशमी को श्रीराम ने अनुज लक्ष्मण, वानरपति सुग्रीव और वीर हनुमान के साथ किष्किंधा से लंका की ओर प्रस्थान किया। पद्मपुराण के अनुसार श्रीराम का राक्षस रावण से युद्ध पौष शुक्ल द्वितीया से शुरू होकर चैत्र कृष्ण तृतीया तक चला। पौराणिक मान्यतानुसार चैत्र कृष्ण तृतीया को श्रीराम ने अधर्मी रावण का संहार किया था। इसके बाद अयोध्या लौट आने पर नव संवत्सर की प्रथम तिथि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को श्रीराम का राज्याभिषेक हुआ। अत: दशहरे को रावण वध की बात न केवल अतार्किक है बल्कि पौराणिक मान्यता के भी विरुद्ध है। हां, रामलीला के उल्लास के लिए रावण का वध सुखद व मनोरंजक अवश्य है।

शस्त्रपूजन का दिन है दशहरा

आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में प्रतिपदा से लेकर नवमी तक दुगार्पूजा का उत्सव, जिसे नवरात्र भी कहते हैं, किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। आश्विन का दुर्गोत्सव धूमधाम के साथ मनाया जाता है, विशेषत: बंगाल, बिहार एवं कामरूप में। वैसे शक्ति को पूजने का नवरात्र-उत्सव वर्ष में दो बार आता हैं फिर भी आश्विन मास का दुर्गा पूजा-उत्सव ही पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। नौ दिन तक चलने वाले इस दुर्गा अनुष्ठान का उत्थापन-विसर्जन जिस तिथि को होता है, वह है-विजया दशमी। यह सदियों से शौर्य, पराक्रम और राष्ट्र व धर्म के प्रति समर्पित भावनाओं को प्रदर्शित करने के लिए महत्वपूर्ण तिथि है। एक ओर, ज्योतिष शास्त्र व कर्मकांड की मान्यतानुसार इस दिन श्रवण नक्षत्र होने से यह देवी प्रतिमा के विसर्जन का दिन है। वहीं धर्मशास्त्रीय नियमों के हिसाब से अपराजिता पूजन, शमी पूजन, सीमोल्लंघन, गृह-पुनरागमन, घर की नारियों द्वारा अपने समक्ष दीप घुमाने, नए वस्त्र व आभूषण खरीदने या धारण करने के साथ ही क्षत्रिय-राजपूतों द्वारा घोड़ों, हाथियों, सैनिकों व शस्त्रों को पूजने का दिन भी विजया दशमी ही है।

क्षत्रियों का विजय पर्व
दशहरा या विजयादशमी सभी जातियों के लोगों के लिए एक महत्त्वपूर्ण दिन है किन्तु राजाओं, सामन्तों एवं क्षत्रियों के लिए यह विशेष रूप से शुभ दिन है। संस्कृत के रसरिद्ध महाकवि कालिदास के रघुवंश में अनुसार विजया दशमी पर शरद ऋतु का आगमन हो जाने से महाराज रघु ‘वाजिनीराजना’ शांति कृत्य का अनुष्ठान करते थे। आचार्य वराहमिहिर ने बृहत्संहिता में दशहरे पर राजाओं द्वारा शस्त्र व अश्व पूजन का शास्त्रीय विधान किया है। वर्षा की फसलों के पक जाने पर विजया दशमी को उन्हें भगवान को समर्पित करने के साथ ही खाने की शुरूआत भी की जाती है। आज भी अनेक प्रांतों में नए धान को दशहरे पर ही पहली बार खाया जाता है। स्पष्ट है कि यह कृषि पर्व भी है।