Somvar Vrat Katha In Hindi: देवों के देव महादेव को अत्यंत सरल स्वभाव वाला माना जाता है, इसी कारण उन्हें भोलेनाथ कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किसी विशेष या जटिल पूजा-पाठ की आवश्यकता नहीं होती। वे इतने दयालु हैं कि भक्त की सच्चे मन से की गई थोड़ी-सी भक्ति भी उन्हें तुरंत प्रसन्न कर देती है। ऐसे में यदि आप भी शिवजी की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए सोमवार का व्रत रखते हैं, तो आपको इस दिन व्रत कथा का पाठ भी अवश्य करना चाहिए। मान्यता है इस कथा के बिना व्रत का फल प्राप्त नहीं होता है। जानें सोमवार की व्रत कथा…
सोमवार की व्रत कथा (Somvar Vrat Katha In Hindi)
व्रत कथा के अनुसार, प्राचीन समय में एक नगर में एक धनवान साहूकार रहता था। उसके पास संसार की हर सुख-सुविधा थी, फिर भी वह मन से अत्यंत दुखी रहता था। इसका कारण था, उसके यहां संतान का न होना। संतान प्राप्ति की इच्छा से वह पूरे नियम और श्रद्धा के साथ सोमवार का व्रत करता था तथा भगवान शिव और माता पार्वती की सच्चे भाव से पूजा करता था। एक दिन माता पार्वती ने भगवान शिव से उस साहूकार की मनोकामना पूरी करने की प्रार्थना की। इस पर भगवान शिव ने कहा कि संसार में हर व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार ही फल मिलता है, और जिसके भाग्य में जो लिखा है, वही उसे प्राप्त होता है। लेकिन माता पार्वती के आग्रह करने पर शिवजी ने अंततः उस साहूकार को पुत्र प्राप्ति का वरदान दे दिया। हालांकि उन्होंने यह भी कह दिया कि वह बालक केवल 12 वर्ष की आयु तक ही जीवित रहेगा।
कुछ समय बाद साहूकार को एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई। जब वह बालक लगभग ग्यारह वर्ष का हुआ, तो उसे शिक्षा के लिए काशी भेजने का निर्णय लिया गया। साहूकार ने अपने साले को बुलाकर काफी धन दिया और कहा कि वह बालक को काशी ले जाए तथा मार्ग में जहां भी रुकें, वहां यज्ञ कराएं और ब्राह्मणों को भोजन और दक्षिणा देकर यात्रा जारी रखें। इस प्रकार दोनों मामा-भांजे यज्ञ कराते और दान-दक्षिणा देते हुए काशी के लिए अग्रसर हुए। यात्रा के दौरान वे एक ऐसे नगर पहुंचे जहां राजा की कन्या का विवाह आयोजित किया जा रहा था। लेकिन जिस राजकुमार से उसका विवाह तय हुआ था, वह एक आंख से काना था, और यह बात लड़की तथा उसके परिवार को पता नहीं थी। राजकुमार के पिता ने अपने पुत्र की कमी को छुपाने के लिए एक योजना बनाई। साहूकार के पुत्र की सुंदरता और सादगी देखकर उसने सोचा कि क्यों न इसी बालक को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दिया जाए। विवाह के बाद वह इसे धन देकर विदा कर देगा और राजकुमारी को अपने नगर ले आएगा। उसकी योजना के अनुसार बालक को दूल्हे के वस्त्र पहनाए गए और राजकुमारी से उसका विवाह करा दिया गया। लेकिन साहूकार का पुत्र सत्यनिष्ठ और ईमानदार था। अवसर मिलते ही उसने राजकुमारी की चूनरी के कोने पर लिख दिया, ‘तुम्हारा विवाह वास्तव में मुझसे हुआ है, लेकिन जिसके साथ तुम्हें विदा किया जाएगा, वह एक आंख से काना है। मैं तो काशी शिक्षा प्राप्त करने जा रहा हूँ।’
राजकुमारी ने चुन्नी पर लिखी हुई बात अपने माता-पिता को बताई। यह पढ़कर राजा बहुत दुखी हुए और उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह आगे टाल दिया। उधर साहूकार का बेटा और उसका मामा काशी पहुंच गए। वहां पहुंचकर उन्होंने विधि-विधान से एक बड़ा यज्ञ आयोजित किया। जैसे ही बालक की आयु 12 वर्ष पूरी हुई, उसी दिन यज्ञ का शुभारंभ किया गया। यज्ञ के बीच अचानक लड़के ने अपने मामा से कहा, ‘मामा, मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा है, मैं अंदर जाकर थोड़ा विश्राम कर लूँ?’ मामा ने कहा, ‘हाँ बेटा, जाओ आराम कर लो।’ शिवजी के वरदान के अनुसार थोड़ी ही देर में उस बालक के प्राण शरीर से निकल गए। अपने भांजे को मृत देखकर उसका मामा विलाप करने लगा। इसी समय संयोग से भगवान शिव और माता पार्वती वहां से गुजर रहे थे। मामा के रोने-बिलखने की दर्दभरी आवाज माता पार्वती को सुनाई दी। उन्होंने शिवजी से कहा – ‘स्वामी, इस व्यक्ति का विलाप मेरे हृदय को विचलित कर रहा है। कृपया इसके दुख को अवश्य दूर करें।’
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