नरपतदान चारण
ब्रजभूमि में मौजूद कोकिलावन में शनि देव की कृपा बरसती है। हर शनिवार को लाखों श्रद्धालु कोकिलावन धाम की परिक्रमा करते हैं। मान्यता है कि यहां बने सूर्य कुंड में स्नान के बाद शनिदेव के दर्शन करने वाले व्यक्ति पर शनिदेव की काली छाया कभी नहीं पड़ती। कोकिलावन धाम का यह सुन्दर परिसर 20 एकड़ में फैला हुआ है।
इसमें श्री शनिदेव मंदिर, श्री देव बिहारी मंदिर, श्री गोकुलेश्वर महादेव मंदिर, श्री गिरिराज मंदिर, श्री बाबा बनखंडी मंदिर प्रमुख हैं। यहां दो प्राचीन सरोवर और गोशाला भी हैं। प्रत्येक शनिवार को यहां श्रद्धालु शनि भगवान की तीन किमी की परिक्रमा करते हैं। शनिश्चरी अमावस्या को यहां पर विशाल मेले का आयोजन होता है। इसके महत्व को लेकर प्रचलित एक कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के समय सभी देवतागण उनके दर्शनों के लिए आए। उनके साथ शनिदेव भी आए लेकिन मां यशोदा और नंदबाबा ने शनिदेव की वक्र दृष्टि के कारण उन्हें श्रीकृष्ण के दर्शन नहीं कराए।
इसके कारण, शनिदेव बहुत आहत हो गए। भगवान श्रीकृष्ण ने शनिदेव के दुख को समझकर उन्हें स्वप्न में दर्शन दिए और कहा कि नंदगांव से उत्तर दिशा में एक वन है, वहां जाकर उनकी भक्ति करने पर वह उन्हें स्वयं दर्शन देंगे। शनिदेव ने वहां जाकर भगवान श्रीकृष्ण की आराधना की। इससे प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने शनिदेव को कोयले के स्वरूप में दर्शन दिए। इसी कारण, इस वन का नाम कोकिलावन पड़ा। मान्यता के अनुसार श्रीकृष्ण ने शनिदेव से कहा था कि वह इसी वन में विराजें और यहां विराजने से उनकी वक्र दृष्टि नम रहेगी। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने शनिदेव से कहा था कि वे राधा के साथ उनके बाईं दिशा में विराजमान रहेंगे। यहां आने वाले भक्तों की परेशानियां शनिदेव को दूर करनी होंगी और कलयुग में उनसे अधिक शनिदेव की पूजा की जाएगी। जो भी भक्त पूरी श्रद्धाभक्ति के साथ इस वन की परिक्रमा करेगा उसे शनिदेव कभी कष्ट नहीं पहुचाएंगे।
कहा जाता है कि यहां राजा दशरथ द्वारा लिखा शनि स्तोत्र पढ़ते हुए परिक्रमा करने से शनि की कृपा प्राप्त होती है। गरुड़ पुराण व नारद पुराण में भी कोकिला बिहारी जी का उल्लेख आता है। मथुरा-दिल्ली नेशनल हाइवे पर मथुरा से 21 किलोमीटर दूर कोसीकलां है। कोसीकलां से एक सड़क नंदगांव तक जाती है। बस यहीं से कोकिलावन शुरू हो जाता है। यह स्थान दिल्ली से 128 किमी दूर है। श्रद्धालु यहां बस, रेल और अपने वाहन से आसानी से पहुंच सकते हैं। देश के लगभग सभी राज्यों से मथुरा तक रेलगाड़ी की व्यवस्था है। यहां पर वाहनों को खड़ा करने की बेहतर व्यवस्था है और पूजा की सामग्री की दुकानें भी हैं।
